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न्याय के लिए न नेता खड़े हों और न नियम कड़े हों, तो वोट देने क्यों मैं जाऊँ? न समय पर न्याय न कठोर दंड, तो न्यायालय पर विश्वास कहाँ से जगाऊँ?
क्या लिखूं और क्यों लिखूं जब कुछ बदलाव होता ही नहीं न स्कूल सुरक्षित न कॉलेज सुरक्षित तो क्यों मैं पढ़ने जाऊ?
न मंदिर न मस्जिद सुरक्षित तो क्यो मैं वंदन करने आऊँ? न घर सुरक्षित न दफ्तर में सुरक्षित तो फिर कहाँ काज करने कहाँ मै जाऊँ?
न अपना सगा न पराया सगा तो रिश्ते निभाने कहाँ मैं जाऊँ? न बच्ची बचे न बूढ़ी बचे तो क्या मैं लाज बचाने के लिए आत्मा बन जाऊँ?
न कोख में सुरक्षित, न गोद मे सुरक्षित तो जन्म लेने कहाँ मैं जाऊँ? न डायपर सुरक्षित न साड़ी में सुरक्षित तो द्रौपदी को चीर से कैसे बचाऊँ?
समय पर न अस्त्र उठे न शास्र पढ़े तो क्यों खुद को शिक्षित कहलाऊँ अपनी बहन की लाज बचाऊँ और दूसरे की लाज उड़ाऊँ तो रक्षा बंधन क्यों मनाऊँ?
न लड़की को खुल के चलने, न बोलने की आज़ादी तो स्वंत्रता दिवस मैं क्यों मनाऊँ नारी को तुम हवस का सामान समझो तो तो देवी मैं क्यों कहलाऊँ?
कुछ भी पेशा अपना लूँ मैं फिर भी आबरू बचा न पाऊँ तो ओलंपिक में मेडल जीत क्यों देश का गौरव मैं बढ़ाऊँ? जानवर से भी ईमानदारी सीख न पाओ तो तुम को क्यों मैं इंसान कहलाऊँ?
लड़की को बस शरीर ही समझो तो माँ बनकर क्यों तुम्हारी जननी बन जाऊँ? जब हकीकत में लड़की सुरक्षित नहीं तो क्यों कागज़ पर बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ सिखाऊँ?
न वेद पर चलना न कुरान को पढ़ना तो धर्म निभाने कहाँ मैं जाऊँ? न देश मे सुरक्षित न विदेश में सुरक्षित तो चाँद पर फिर क्यों मैं जाऊँ?
न्याय के लिए न नेता खड़े हों और न नियम कड़े हों तो वोट देने क्यों मैं जाऊँ? न समय पर न्याय न कठोर दंड तो न्यायालय पर विश्वास कहाँ से जगाऊँ?
न गांव में न शहर में सुरक्षित तो अपने भारत को महान कहाँ से कहलाऊँ?
मूल चित्र : Canva
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