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दहेज प्रथा को बढ़ावा देते हुए, पत्नी के परिवार से ऐंठी हुई धनराशि और संपत्ति पर इतराने की बजाय पति और उसके परिवार वालों को शर्म आनी चाहिए।
हमारे समाज ने न जाने कितनी कुप्रथाओं को गले से लगा रखा है और उन्हें किसी पौधे की तरह सींचा जाता है। पर कुप्रथाओं के ये पौधे न तो ऑक्सीजन देते हैं न ही इनकी हरियाली से वातावरण में शुद्धता फैलती है।
ऐसी ही अनेकों कुरीतियों और कुप्रथाओं में से एक है ‘दहेज प्रथा’। ये वो ज़हरीला पौधा है जो समाज में सिर्फ़ भयंकर और जानलेवा गैस फैलाता है और बढ़ने व फलने फूलने के लिए अनगिनत बेटियों की बलि माँगता है।
बेटी की शादी करने निकलिए तो बाज़ार लगा पड़ा है। बेटों की बोली तो लोग ऐसे लगाते हैं जैसे वो वाकई कोई सामान हों और इस काम में उन्हें कोई शर्म भी नहीं आती।
लड़के के माँ-बाप उसकी परवरिश और पढ़ाई-लिखाई का मोल ऐसे लगाते हैं जैसे लड़की के पिता ने उसे उनके पास रख छोड़ा हो।
लड़का सरकारी नौकरी में हो या किसी बड़ी एमएनसी में काम करता हो उसकी कीमत उसी हिसाब से तय होती है। कमाल की बात तो ये है कि आत्मनिर्भर लड़कों को भी शर्म नहीं आती और वो पूरी ठसक के साथ अपना दाम बताते हैं।
असल में सिर्फ़ लालच ही नहीं हमारे समाज में दहेज की राशि और सामान की कीमत अब एक स्टेटस सिंबल बन गया है। जिस लड़के को अपने ससुराल से ज़्यादा दहेज मिला उसका सीना वैसे ही चौड़ा हो जाता है। पत्नी के पिता से ऐंठी हुई धनराशि और संपत्ति पर इतराने कि बजाय उन्हें शर्म आनी चाहिए।
समाज में ऐसे भी लोगों की कमी नहीं जिनके पास रीढ़ की हड्डी नहीं है। ये वो लोग हैं जो दहेज की माँग अधूरी रह जाने पर शादी तोड़ देते हैं। यहाँ तक कि इनका लालच इतना बड़ा होता है कि इन्हें शादी तोड़ने का बस बहाना चाहिए होता है।
शादी के इंतज़ामात में कमी निकालना, मेहमानों के तोहफ़ों में कमी निकालना यहाँ तक कि अगर दहेज में माँगी गई धनराशि में कुछ कमी हो या कार उनकी मनपसंद न हो तो भी ये शादी तोड़ देते हैं।
ऐसे लोगों को सबक सिखाना बहुत ज़रूरी है। इसीलिए हमारे कानून में दहेज प्रथा के खिलाफ़ सख़्त दंडविधान मौजूद है।
हमारी न्यायपालिका के अनुसार दहेज निषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत किसी भी प्रकार से दहेज लेना, देना या उसके लेन-देन में सहयोग करना एक दंडनीय अपराध है।
इसमें 5 वर्ष की क़ैद और 15000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसी अधिनियम की धारा 2 में दहेज निषेध संशोधन अधिनियम 1984 और 1986 के तहत बदलाव किया गया जिसके अंतर्गत वधु पक्ष द्वारा, वर पक्ष को दिया गया धन, संपत्ति या कोई भी सामान दहेज की श्रेणी में आता है – ये सामान चाहे सीधे दिये गया हो या तोहफ़ों के रूप में, शादी से पहले, शादी के दौरान या फिर शादी के बाद।
यदि किसी प्रकार की धन संपत्ति वर के माता-पिता, संबंधी या दोस्तों को वधू पक्ष द्वारा दिये जाते हैं, वो भी दहेज की श्रेणी में ही आते हैं।
हमारे कानून में सिर्फ़ दहेज लेने और देने वालों के लिए ही दंड प्रक्रिया नहीं है बल्कि इसके लिए उकसाने पर भी कड़ा दंडविधान है।
जो भी व्यक्ति किसी और को दहेज लेने व देने के लिए उकसाने का दोषी पाया जाता है उसके लिए 6 माह का अधिकतम कारावास और 5000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान था। हालांकि बाद में जब दहेज निषेध अधिनियम में संशोधन किया गया तो कारावास की न्यूनतम अवधि 6 माह और अधिकतम दस वर्ष तक कर दी गई। साथ ही जुर्माने की राशि 10000 रुपये कर दी गई।
वधु के साथ आया समस्त धन, संपत्ति और सामान उसका अपना स्त्रीधन होता है और उस पर उसके अतिरिक्त किसी और का अधिकार नहीं होता।
यदि वधु के अतिरिक्त किसी और को उसका स्त्रीधन प्राप्त हुआ है तो उस व्यक्ति को वह वधु को वापस दे देना चाहिए।
अगर उसे ये स्त्रीधन रूपी दहेज शादी के पहले, शादी के दौरान या शादी के बाद प्राप्त हुआ था तो उसे शादी के 3 महीने के अंदर वधु को लौटा देना चाहिए।
अगर वधु नाबालिग है तो उसके 18 वर्ष की आयु को पूर्ण करते ही 3 महीने के भीतर उसका स्त्रीधन दे देना चाहिए।
ऐसा न कर पाने की अवस्था में वह व्यक्ति दोषी पाया जाएगा और उसे 5 साल तक के कारावास के साथ 15000 रुपये या दहेज की कुल राशि के बराबर जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
आईपीसी की धारा 498ए के तहत दहेज के लिए महिलाओं पर की गई हिंसा या प्रताड़णा दंडनीय अपराध है।
इस धारा के अनुसार शादी के बाद विवाहिता पर उसके पति, ससुरालवालों या रिशतेदारों के द्वारा की गई प्रताड़णा या शारीरक व मानसिक हिंसा के लिए उन्हें दोषी पाया जाने पर अधिकतम 3 वर्ष के कारावास का दंड विधान है।
अगर शादी के 7 वर्षों के भीतर ही विवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है तो आईपीसी की धारा 304 बी के अनुसार दहेज हत्या के अंतर्गत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और यह एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है इसलिए इस पर बेल का प्रावधान नहीं है (it’s a non bailable offence)
न्यूज़ 18 के एक लेख के अनुसार मई 2019 के एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया कि दहेज और घरेलू हिंसा के खिलाफ़ पीड़ित महिला या उसका कोई भी रिश्तेदार किसी भी शहर में शिकायत दर्ज करा सकता है।
पहले पीड़ित महिला उसी शहर में शिकायत दर्ज करा सकती थी जहाँ उसका ससुराल है और जहाँ उसपर अत्याचार की घटना घट रही है।
जिस प्रकार इन गंभीर अपराधों के लिए सख़्त दंड विधान मौजूद होने पर भी अपराध रुके नहीं हैं उसी प्रकार इनका दुरुपयोग भी होता है।
हालांकि 498ए एक नॉन बेलेबल ऑफेंस है और गिरफ़्तारी पर रोक नहीं है, पर लड़के और उसके घरवाले अग्रिम ज़मानत के लिए अर्ज़ी दे सकते हैं।
अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी स्वीकार करना या नहीं पूरी तरह से न्यायधीश के विवेक पर निर्भर होता है। इसके साथ ही लड़के के पिछले पुलिस रिकॉर्ड का होना या न होना भी ज़मानत दिये जाने के निर्णय को प्रभावित करता है।
हमारे समाज से मेरा बस एक यही सवाल है कि हम कब ऐसी कुप्रथाओं के चलन पर पूरी तरह रोक लगाएंगे। कब तक माँ-बाप दहेज को बेटियों की खुशी समझेंगे? कब माँ-बाप के मन से ये डर निकलेगा कि दहेज न दिया तो बेटी की शादी में अड़चन आएगी या वो कुँवारी रह जाएगी?
होना ये चाहिए कि दहेज लोभियों का सिरे से बहिष्कार करना चाहिए। जो लड़के और उनके माता-पिता परवरिश, पढ़ाई-लिखाई का खर्च और सरकारी नौकरी के नाम पर दहेज में मोटी रकम माँगते हैं उनके घर तो कोई बेटी न ब्याही जाए।
समय आ गया है कि अब पिता अपने और अपनी बेटी के आत्मसम्मान को सर्वोपरि रखें, धैर्य रखें और उचित वर की प्रतीक्षा करें पर किसी दहेज लोभी को अपनी बेटी न ब्याहे।
लेख का अंत मैं प्रेम में डूबी बेटियों को संबोधित किए बगैर कर ही नहीं सकती। तो सुनो लड़कियों किसी लड़के के प्रेम में चाहे जितना भी डूबी हो, वो चाहे लाखों ही क्यों न कमाता हो, अगर शादी के समय तुमसे और तुम्हारे परिवार से पैसे, घर या गाड़ी की माँग या अपेक्षा करे तो प्रेम नहीं आत्मसम्मान चुनना।
इसे खतरे की घंटी समझकर उस रिश्ते के भँवर में फँसने से पहले ही निकल जाना। अपनी भावनाओं को खुदपर हावी न होने देना और उचित मार्ग चुनना।
मूल चित्र : undefined from Getty Images via Canva Pro
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