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भारत में वेश्यावृति की बात करें तो हर महिला का उसके शरीर पर पूरा अधिकार है। यह एक संविधान प्रदत्त अधिकार है, लेकिन...
भारत में वेश्यावृति की बात करें तो हर महिला का उसके शरीर पर पूरा अधिकार है। यह एक संविधान प्रदत्त अधिकार है, लेकिन…
स्त्री द्वारा अपनी देह का आर्थिक लाभ के लिए किया गया व्यापार वेश्यावृति कहलाता है। यह एक पेशा है जिसमें महिला स्वेच्छा से पुरुषों के साथ शारीरक संबंध बनाती है और उसके एवज़ में उसे धनलाभ होता है। भारत में यह पेशा आदिकाल से चला आ रहा है।
पुरातन काल में वेश्याओं को नगर वधू कहा जाता था। देवदासी प्रथा भी इसी का एक रूप हुआ करता था। परंतु देवदासी प्रथा न होकर एक कुप्रथा थी। जिसमें स्त्री स्वेच्छा से नहीं बल्कि ज़बरदस्ती धकेली जाती थी।
स्त्री के लिए कभी भी देह का व्यापार सरल नहीं रहा होगा। पर ऐसे अनगिनत कारण और परिस्थितियाँ हैं जो स्त्री को इस पेशे को अपनाने की तरफ़ धकेल देती हैं। हालांकि अधिकतर स्त्रियाँ स्वेच्छा से इस व्यापार में नहीं आतीं। इनमें से ज़्यादातर महिलाएँ मानव तस्करी का शिकार होती हैं या छोटे गाँव-कस्बों से बहला-फुसलाकर लाई गई लड़कियाँ होती हैं।
हाँ, यह सच है कि भारत में वेश्यावृति अवैध और गैर कानूनी नहीं है। पर यह केवल तब तक वैध है जब तक महिला अपनी मर्ज़ी से इस पेशे में हो और वेश्यावृति कानून का उल्लंघन न हो रहा हो। न्यूज़ 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार मुंबई हाई कोर्ट ने वेश्यावृति को कानूनी घोषित किया है। न्यायालय का कहना है कि हर बालिग महिला को अपना पेशा स्वयं चुनने का अधिकार है। साथ ही अनैतिक आवागमन (रोकथाम) अधिनियम 1956 (पीटा) के अनुसार वेश्यावृति का पेशा अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि असल में पीटा का मकसद महिलाओं की तस्करी और उनका दैहिक शोषण रोकना है। यदि कोई महिला स्वेछा से वेश्यावृति के पेशे को अपनाती है तो वह निरपराध मानी जाएगी।
लीगल सिलेक्शन्स के एक ब्लॉग में वर्णित है कि ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2 करोड़ से अधिक लोग वेश्यावृति में सक्रिय हैं। पर यह आंकड़ा ये नहीं बताता कि कौन वैध पेशे में है और किसे मजबूर किया गया है।
भारत में वेश्यावृति वैध होने के बावजूद भी कुछ परिस्थितियाँ ऐसी हैं जो कानून का उल्लंघन करती हैं। जैसे:
ज़ाहिर सी बात है कि वेश्यावृति कोई सम्माननीय पेशा नहीं है और इस पेशे को अपनाने के पीछे गंभीर कारण होते हैं।
आज भी हमारा देश एक बड़े पैमाने पर अशिक्षा से जूझ रहा है। छोटे गाँव और कस्बों तक आज भी पूरी तरह से शिक्षा का उजाला नहीं पहुँच पाया है और पुरुषों के मुक़ाबले अशिक्षित महिलाओं की संख्या कहीं अधिक है। इसी अशिक्षा के चलते गाँव-कस्बों से लड़कियाँ प्रेम और शादी के बहाने या नौकरी दिलाने के बहाने बहला फुसला कर बड़े शहरों में लाई जाती हैं और वेश्यावृति में धकेल दी जाती हैं।
ख़राब आर्थिक स्थिति भी इसका एक बहुत बड़ा कारण है। जब महिला के सामने अपना जीवन चलाने के लिए और धन कमाने का कोई उचित मार्ग नहीं बचता तो वह इस पेशे को चुन लेती है।
वेश्याओं का अपना एक समुदाय होता है और जब वे वर्षों से इस पेशे में संलग्न रहती हैं तो उनकी संतान भी इसी पेशे में स्वेछा या अनिक्षा से शामिल हो जाती है। हालांकि यह ज़रूरी नहीं कि हर वेश्या अपनी संतान के लिए उसी पेशे को चुने या चुनने के लिए उसे मजबूर करे।
भारत में सही समय पर यौवन की ओर बढ़ते हुए बच्चों को यौन शिक्षा नहीं दी जाती। जिसके अभाव में अक्सर युवा वर्ग भटक जाता है और अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए अनुचित मार्ग पर चल पड़ता है। इसमें मनोविज्ञान का भी एक बड़ा योगदान है। इसी के चलते अनेकों लड़कियाँ न चाहते हुए भी या अनजाने में वेश्यावृति को अपना लेती हैं।
जल्दी और आसानी से पैसा कमाने की चाह और जीवन में सारे शौक पूरे करने की ललक भी एक बड़ा कारण है कि कुछ महिलाएँ इस पेशे को अपना लेती हैं।
देवदासी कुप्रथा से हम भली भांति परिचित हैं। भगवान की सेवा में समर्पित कर दिये जाने के नाम पर महिलाओं का दैहिक शोषण होता रहा है। धर्म के नाम पर आज भी न जाने कहाँ कोई महिला वेश्यावृति में धकेली जा रही होंगी।
हर महिला का उसके शरीर पर पूरा अधिकार है। यह एक संविधान प्रदत्त अधिकार है। वह कानूनन अपने शरीर को अपनी मर्ज़ी से धनोपार्जन के लिए इस्तेमाल कर सकती है। किसी भी महिला का वेश्यावृति में आने का कारण जो भी हो पर उन्हें भी समाज में इज्ज़त से जीने का अधिकार है। इंसानों को इस दुनिया में ज़िंदा रहने के लिए बहुत से संघर्ष करने पड़ते हैं।
ज़िंदा रहना ही काफ़ी नहीं होता, साथ ही जीवन के अनगिनत उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए आजीविका कमानी पड़ती है। आजीविका कमाने का कौन सा साधन इंसान चुनता है यह पूरी तरह से उसका निजी चयन होता है। यदि वह चयन संविधान और कानून की दृष्टि में वैध है तो उसपर सवाल खड़े करने का या उंगली उठाने का किसी कोई कोई हक़ नहीं।
मूल चित्र: Still from short film Vaishaly via Youtube
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