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अपनी नज़र लक्ष्य पर साधे हुयी हैं तीरंदाज दीपिका कुमारी

दीपिका कुमारी कहती हैं, “समाज में कई जगहों पर पुरुष लेडीज फर्स्ट का जुमला उछाल देते हैं। महिलाएं भी बेहतर कर सकती हैं उनको पहले मौका तो दो।"

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दीपिका कुमारी कहती हैं, “समाज में कई जगहों पर पुरुष लेडीज फर्स्ट का जुमला उछाल देते हैं। महिलाएं भी बेहतर कर सकती हैं उनको पहले मौका तो दो।”

पेरिस में चल रही विश्व तीरंदाजी प्रतियोगिता के मिक्स्ड डब्ल्स में दीपिका कुमारी ने जो कीर्तिमान स्थापित किया है। नौ साल पहले भी, जब दीपिका कुमारी मात्र 18 साल की थीं, तब भी वह कुछ समय के लिए वर्ल्ड नम्बर वन बन चुकी थीं।

ऎसा करने वाली वह भारत की पहली महिला है। इस बार विश्व नबंर वन तीरंदाज का खिताब उनके साथ कुछ समय तक रहने वाला है इसमें भी कोई शक नहीं है।

अब दीपिका कुमारी पर सबकी नज़र अगले महीने होने वाले टोक्यो ओलम्पिक पर रहेगी जिसके लिए क्वालीफाई करने वाली वह एक मात्र भारतीय महिला तीरंदाज हैं।

जो खेल के दुनिया से जुड़े हर खिलाड़ी का सपना होता है कि अपने बेहतरीन परफोर्मेस से वह देश का मान-सम्मान, तिरंगा नबंर वन पर देखे और अपना राष्ट्रीय गान पूरी दुनिया के सामने सबसे पहले सुने, वह दीपिका पूरा करने के रास्ते पर है। 

आसान नहीं रहा, दीपिका कुमारी का सफर

झारखंड के राजधानी रांची के नजदीक एक छोटे से गांव में 1994 को जन्मी इस असाधारण चैम्पियन का सफर आसान तो कतई नहीं रहा होगा।

वज़ह हम सभी जानते है कि हमारे भारतीय समाज में किसी महिला को अपने लिए कुछ अलग करना, आसान तो बिल्कुल ही नहीं होता है,। खासकर तब जब उनको अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल भी बनना होता है।

दीपिका के लिए यह सफर और अधिक चुनौतिपूर्ण तब बन जाता है जिस उम्र में दीपिका ने तीरंदाजी के लिए मन बनाया होगा, उस उम्र में उनके आस-पास मौजूद सभी लड़कियों की शादी कर दी जाती है।

उनसे ये पूछना कि तुम्हारे जीवन में क्या सपना है, तुम क्या करना चाहती हो, उसके सामने दूर की कौड़ी के बराबर है। क्योंकि उनको पता ही नहीं है जीवन में वह अपने अंदर मौजूद हुनर से कुछ कर भी सकती है और वो हुनर थोड़ी सी बेहतर ट्रेनिंग और कुछ भी कर जाने की मेहनत के बाद अगर निखर जाए, तो वह दुनिया भर में अपना नाम कमा सकती है।

आटो ड्राइवर पिता शिवनारायन महातों और नर्स माँ गीता महातों के संसाधनहीन घर में जन्मी दीपिका के लिए यह सफर तो और भी कई चुनौतियों से भरा हुआ होगा। दीपिका बताती है उनके पिता के अनुसार “वो समय से अस्पताल नहीं पहुंच सके थे जिसके कारण दीपिका का जन्म टैम्पो में ही हुआ था।”

लेडीज़ फ़र्स्ट में दर्शाया गया दीपिका का सफ़र

दीपिका के सफर को युराज बहल और शाना लेवी बहल ने अपनी 2017 अपनी डाक्यूमेंट्री में फिल्माया जिसका नाम “लेडीज फर्स्ट” है।

दीपिका बड़ी बेबाक अंदाज में कहती है, “समाज में कई जगहों पर पुरुष लेडीज फर्स्ट का जुमला उछाल देते हैं। पर शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल जैसे चीजों में जो महिलाओं का भी हक है, वहां लेडीज फर्स्ट क्यों नहीं कहते हैं? महिलाएं भी बेहतर कर सकती हैं उनको पहले मौका तो दो।”

दीपिका खुद बताती है कि, “घर में आर्थिक तंगी के कारण बेहतर महौल नहीं था। खाने को लेकर भी दिक्क्ते थी। अगर वह घर से बाहर निकल सके तो शायद घर में एक आदमी कि जिम्मेदारी कम हो जाएगी।”

इस महौल में उन्होंने तीरनदांजी को अपना कैरियर बनाने का फैसला किया जिसके बारे में वह खुद भी नहीं जानती थी कि इस तरह का कोई खेल भी होता है। उनको नानी के घर, वहां के दोस्तों से पता चला कि तीरनदांजी एक खेल है, जिसमें प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ट्रेनिग भी देती है और वहां रहने-खाने को भी मिलता है।

अभी मंजिल पर पहुंचना बाकी है…

पेरिस में उनकी सफलता के बाद उनके पति अतानु दास, जो स्वयं भी एक तीरंदाज है, एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि “हम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं, इसलिए हमने शादी की है। मैदान पर हम एक दम्पति नहीं रह जाते, वहां हम प्रतिद्वंदी होते हैं। एक-दूसरे से सीखते हैं, एक-दूसरे को प्रेरणा देते है और साथ जीतते भी हैं।”

अर्जुन पुरस्कार, पद्म श्री प्राप्त कर चुकी दीपिका का अब एक मात्र सपना ओलंपिक में गोल्ड मैंडल जीतना और भारत का सम्मान तीरंदाजी में कायम करने का है।

आज देश के जरूरत है कि वह दीपिका के विश्व नंबर वन होने के जश्न में शामिल हो जाए और अगले साल टोक्यों ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के सपने के पूरा होने की दुआएं करे। दीपिका को भी अपने देश से इसकी उम्मीद होगी, तीरंदाजी को तो वह अपना सब कुछ दे ही रही है।


मूल चित्र: Via Twitter

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