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अगर बेटियां घर में ना होंगी…

कभी कदम-कदम रोके, कभी कतर दिए पँख उनके, मासूम के ख्वाब आखिर चुभते हैं आँखों में किनके। नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें आसमाँ में उड़...

कभी कदम-कदम रोके, कभी कतर दिए पँख उनके, मासूम के ख्वाब आखिर चुभते हैं आँखों में किनके। नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें आसमाँ में उड़…

अपनी तितलियों सी रंगीन नाज़ुक होती हैं ये बेटियां,
क्यों उड़ान नहीं भर पाती, पैरों बंधी कैसी बेड़ियाँ।

कभी कदम-कदम रोके, कभी कतर दिए पँख उनके,
मासूम के ख्वाब आखिर चुभते हैं आँखों में किनके।

नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें आसमाँ में उड़ दुनिया देखने की,
और जरा सी चाहत दुनिया में वजूद अपना खुद बनाने की।

बंजर जमीं हो जायेगी, कमी ही कमी कायनात में होगी,
भयावह ये विचार कर के देखो, अगर बेटियां घर में ना होंगी।

मूल चित्र : Samarth Singhai via Unsplash

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