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लक्ष्मी से द्रौपदी तक सफर मैंने तय किया…

लक्ष्मी से सीता, सीता से द्रौपदी का सफर मैंने हर दौर में यहाँ है जिया, टूटी गर तलवार बनूंगी मैं दोधारी, ये प्रण मैंने कर लिया।

लक्ष्मी से सीता, सीता से द्रौपदी का सफर मैंने हर दौर में यहाँ है जिया, टूटी गर तलवार बनूंगी मैं दोधारी, ये प्रण मैंने कर लिया।

लक्ष्मी है! कह कर,
बाबा ने एक बोसा
मेरे नन्हें पाँव पर रख दिया।

लक्ष्मी है! सुन कर,
झाँझर बंधे महावर लगे
पाँव से ससुराल में प्रवेश किया।

लक्ष्मी से सीता, सीता से द्रौपदी,
का सफर मैंने
हर दौर में यहाँ है जिया।

लक्ष्मी रूपी पंकज,
कह कर समाज ने जब
मनमर्ज़ी मेरा मान पंकिल किया।

तब तोड़ के छवि
लक्ष्मी की मैंने,
रुप काली का धर लिया!

प्रसून से मन को मैंने,
तपते लावे की
हिम्मत से फिर भर लिया।

हाँ! आईने सी नाजुक हूँ मैं नारी,
टूटी गर तलवार बनूंगी मैं दोधारी।
ये प्रण मैंने कर लिया।

मूल चित्र: Still from Show Namah Laxmi Narayan 

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