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बीते हफ्ते सुष्मिता सेन की 21 साल की बेटी रिनी सेन की शॉर्ट फिल्म सुट्टाबाजी रिलीज़ हुई जो धीरे-धीरे नोटिस की जा रही है।
हिंदी के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी अपनी कविता संग्रह चांद की वर्त्तनी की एक कविता में लिखते हैं, जब भी मैं एक सिगरेट जलाता हूं, धमकाती है पैकट पर छपी चेतावनी, ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ बिना मांगे सलाह देता है रास्ते में मिला दोस्त, ‘बहुत एतियात बरतनी होती है सिगरेट पीने वाले को।’ किसी गीत के स्थायी बोल के तरह बोलती है प्रेमिका, ‘छोड़ क्यों नहीं देते हो सिगरेट पीना, देखो पैकट पर भी लिखा है, सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।’
बेशक सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इसके बारे में कोई दो राय हो ही नहीं सकती है। पर सिगरेट से पहले हानिकारक है वह तनाव जो हमारी जीवन में आते रहते हैं और हम उनसे लड़ते रहते हैं। दूसरी सच्चाई यह भी है जो पैकट पर वैधानिक चेतावनी सभी देखते हैं फिर भी पीते हैं। इसके कारण को पहचान कर उस दिशा में भी काम करना ज़रूरी है, सिर्फ लोगों को चेतावनी देकर जागरूक नहीं किया जा सकता है।
शार्ट फिल्म “सुट्टाबाजी” इस विषय पर बात करती है पर वह केवल प्रतिकात्मक रूप में सामने आ पाता है। जाहिर है दर्शकों को मां-बेटी का एक साथ सुट्टेबाजी करना कूल लगेगा। पर फिल्म कहना यह चाह रही है कि हमें अपना तनाव कम करने के लिए लोगों के साथ बात करने की जरूरत है न कि तनाव कम करने के लिए सिगरेट पर निर्भर होने की। इसके साथ एक सच्चाई यह भी है कि सुट्टाबाजी के आदत ने न जाने कितने ही दोस्त, सहकर्मी और दो पीढ़ियों के लोगों के बीच उस स्पेस का निमार्ण किया है जो कई वज़हों से कभी बन ही नहीं पाता है।
बीते हफ्ते सुष्मिता सेन की 21 साल की बेटी रिनी सेन की शार्टफिल्म “सुट्टाबाजी” रिलीज़ हुई जो धीरे-धीरे नोटिस की जा रही है। इस शार्टफिल्म में सुट्टाबाजी के कारण दो सुट्टाबाजों के बीच जो स्पेस बनता है उसको ही बयां किया गया है। अंतर बस इतना है कि ये सुट्टाबाजी का स्पेस मां-बेटी के बीच का है जिनके बीच एक पीढ़ी का अंतर तो है ही, एक-दूसरे के बीच विश्वास की डोर भी कमोबेश टूटी हुई है। सुट्टाबाजी के आदत को पिता-पति से छिपाने के लिए दोनों एक-दूसरे के दोस्त बनते है और बनती है फिर टूटी हुई विश्वास की डोर…।
सुट्टाबाजी की कहानी कबीर खुराना ने डायरेक्ट की है जो कमोबेश 14 मिनट में खत्म हो जाती है। कहानी में मुख्य किरदार रिनी सेन का है और राहुल वोहरा-कोमल छाबड़िया माता-पिता के किरदार में हैं। कहानी बस इतनी सी है कि रिनी जो मात्र 19 साल की लड़की है स्मोक करती है जो लॉकडाउन में अपने माता-पिता के साथ फंस गई है, जिसके चलते उससे काफी दिक्कतें हो रही हैं। मजेदार बात यह जानने की है कि परिवार के तीनों सदस्य एक दूसरे से छोटी-मोटी खरीदारी के लिए बाज़ार जाने के लिए एक-दूसरे से झगड़ते हैं, एक-दूसरे पर यह तोहमत लगाते हुए कि टमाटर और शिमला मिर्च किस रंग का होता है? और ये बाहर क्यों जाना चाहते हैं ये तो आप फिल्म देख कर समझ सकते हैं।
कहानी अपने दूसरे पड़ाव पर जब आती है तो बेटी घर के जिस कोने पर सिगरेट पीने पहुंचती है वहां कुछ लाइटर जलने की आवाज आती है और वह चौक जाती है। जब वह वहां पहुंचती है तो मां भी सिगरेट पीते दिखती है। उसके बाद तो कहानी एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लेती है। और वो मोड़ क्या है इसके लिए आपके लिए फिल्म का लिंक दिया गया है।
फिर बेटी के ब्रांड पूछने पर एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाते है, फिर मां अपनी लालन-पालन को कोसती है, फिर दोनों एक-दूसरे से सवाल पूछते है क्यों पीते है दोनों सिगरेट। महत्पूर्ण बात ये है कि सिगरेट की अदला-बदली के साथ अपने तनाव की अदला-बदली हो जाती है और माँ-बेटी का रिश्ता दोस्ती में बदल जाता है।
मूल बात यही है सुट्टाबाजी तो बस एक माध्यम है कहानी कहने का। हम अपने घर-परिवार में एक-दूसरे के तकलीफों को साझा नहीं करते हैं जिसके तकलीफें तनाव का रूप लेती हैं और तनाव सुट्टाबाज बना देता है। इन सबसे मजेदार तीसरा पार्ट है जो आपको फिल्म देखने पर ही समझ आएगा।
शॉर्ट फिल्म सुट्टाबाजी कहना यही चाहती है कि कोविड के कारण हुए लॉकडाउन ने हम सब के जीवन में एक अतिरिक्त तनाव पैदा कर दिया है। उस तनाव को खत्म करने के लिए हम अपने परिवार के सदस्यों से बात करें। क्या पता उनके पास उसका इलाज ही हो? वैसे भी अपने तनाव को कम करने के लिए हम किसी नशा पर अपनी निर्भरता बढ़ा कर अपना आर्थिक और शारीरिक नुकसान तो कर ही रहे हैं। यह कोशिश शायद हमको और हमारे परिवार को फिर से आत्मनिर्भर करने में मददगार हो जाए।
साथ ही साथ इस शॉर्ट फिल्म सुट्टाबाजी में एक बात अंडरकरेन्ट चल रही है वह यह कि सिगरेट पीने से लोगों को रोकने के लिए तमाम कोशिश हो चुकी है, पैकट पर वैधानिक चेतावनी, पब्लिक स्पेश में नो स्मोकिंग, जुर्माना, नशे के उत्पाद को बढ़ावा देने वाले विडियों के साथ डिस्क्लेमर, क्यों न एक कोशिश भावनात्मक स्तर पर भी की जाए? इन कारण के मूल को खत्म करने का वह है तनाव। यह तरीका शायद थोड़ी बहुत जागरूकता लोगों में ला सके।
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