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मैंने सोचा अब बस, और उसके 2-4 मुक्के जड़ दिए…

भुवनेश रात को नशे में झूमता हुआ आता, मारपीट कर, कोमल की मर्जी के खिलाफ उसके साथ जबरदस्ती करता और सिगरेट से उसे जगह-जगह से दाग देता।

भुवनेश रात को नशे में झूमता हुआ आता, मारपीट कर, कोमल की मर्जी के खिलाफ उसके साथ जबरदस्ती करता और सिगरेट से उसे जगह-जगह से दाग देता।

नोट : विमेंस वेब की घरेलु हिंसा के खिलाफ #अबबस मुहिम के चलते हमने आपसे अप्रकाशित कहानियां मांगी थीं, उसी श्रृंखला की चुनिंदा कहानियों में से ये कहानी है रूचि मित्तल की!

उसकी दोनों बेटियाँ मेरे पास पढ़ने आती थीं। शाम को वह उन्हें लेने आती। एक दिन दुपट्टे से अपने मुँह का निचला हिस्सा ढाप कर आई।

मैंने पूछा, “यह क्या हुआ?”

मुँह ढांपे ही बोली, “कुछ नहीं मैडम, गिर गई थी। थोड़ा सूज गया।”

मैं एक अध्यापिका, जो घर पर बच्चों को पढ़ाती हूँ और वह कोमल, जिसकी दोनों बेटियाँ पढ़ने मेरे पास आती थीं। अगले दिन उसके बच्चों ने मुझे बताया, “मैडम आज मम्मी लेने नहीं आएँगी, क्योंकि उनका दाँत टूट गया। पापा ने लात मारी थी। जोर से गिर गयी।”

सुनकर बड़ा दुख हुआ और गुस्सा भी आया। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि पापा रोज मम्मी को मारते हैं। लातों से, बेल्ट से, घूंसों से।

कोमल पढ़ने के लिए गांव से शहर आई थी। यहीं उसे एक लड़के से प्यार हुआ और शादी भी।लड़का ज्यादा पढ़ा- लिखा नहीं था। घरवालों ने बहुत समझाया। परंतु कहते हैं ना कि प्यार में इंसान अंधा हो जाता है, ऐसा ही कुछ कोमल के साथ भी हुआ। नाराज घरवालों ने कोमल से सभी रिश्ते तोड़ लिए।

बहुत खुश थी कोमल अपने मनचाहे जीवन साथी के साथ नए जीवन की शुरुआत करके। सब कुछ अच्छा चल रहा था। इधर कोमल को भी वही यूनिवर्सिटी में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी और उसका पति भुवनेश वहीं की कैंटीन में काम पर लग गया।

दिन गुजरे, महीने, फिर साल। दो बेटियों को जन्म दिया कोमल ने। दूसरी बेटी के जन्म के बाद से कोमल के दुर्भाग्य के दिन शुरू हो गए। बात-बात पर उसके ससुराल वाले ताना मारने लगे,
“दूसरी भी बेटी ही जन दी तूने? कहाँ से लाएंगे इसके लिए दहेज?”

उसकी सास छोटी बहू के बेटे को मुट्ठी भर-भर सूखे मेवे देती। कोमल की दोनों बेटियाँ मुँह ताकती ही रह जातीं। कोमल से जितना हो सकता अपनी बेटियों के लिए करती, परंतु यदि पति साथ दे, तो पत्नी पूरी दुनिया का सामना कर ले। यहाँ तो अब उसके पति ने ही आँखे फेर ली।

अब कोमल का पति गलत संगत में पड़ चुका था। रोज रात को देर तक दोस्तों के साथ दारू पीता, जुआ खेलता। उसकी सारी कमाई इन्हीं व्यसनों में चली जाती। शराब के नशे में कोमल से मारपीट, गाली-गलौज करता और उसके पैसे भी छीनता। नहीं देने पर वही सब लात-घूंसे चलते।

बात यहीं तक खत्म नहीं थी। अब भुवनेश, कोमल के साथ बेवफाई भी करने लगा था। वहीं की रहने वाली एक शादीशुदा महिला के चक्कर में पड़ गया था। अब वह कोमल का सामान ले जाकर उस दूसरी औरत को देता। इंकार करने पर और भी ज्यादा मारपीट। दोंनों बच्चियाँ डरी-सहमी रहतीं।हैवानियत दिन पे दिन बढ़ती जा रही थी। क्लर्क की तनख्वाह इतनी नहीं कि वह अपने व अपने बच्चों के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकें।

कोमल सब कुछ खामोशी से सहन कर रही थी बच्चों की खातिर। दिन-ब-दिन कपड़ों की परतें उसके चेहरे पर चढ़ती जा रही थी। एक दिन बच्चों ने बताया  कि माँ का हाथ जल गया। मैंने पूछा, कैसे? तो बच्चों ने बताया कि पापा ने गर्म चाय में हाथ डाल दिया। बच्चे बहुत डरे हुए थे।

क्योंकि कोमल इस बारे में किसी से बात नहीं करती थी, इसलिए मेरी भी हिम्मत नहीं होती थी उससे कुछ भी पूछने की। परंतु जब चाय से जलने की बात सुनी तो रहा नहीं गया। एक दिन मैंने हिम्मत करके पूछ लिया, “कोमल, सच बताना। क्या चल रहा है ये सब?”

मेरे बार-बार पूछने पर उसके सब्र का बाँध टूट गया और जो सब उसने बताया, उसे सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएँ।

भुवनेश रात को नशे में झूमता हुआ आता, मारपीट कर, कोमल की मर्जी के खिलाफ उसके साथ जबरदस्ती करता और सिगरेट से उसे जगह-जगह से दाग देता। मुँह को हथेली से भींच देता। चीखें भी घुट कर रह जाती थीं उसकी।

मैंने उसको बोला, “क्यों सहती हो यह सब? पुलिस से शिकायत करो उसकी। अपने बच्चों की खातिर बोलो। जुल्म करने से ज्यादा गुनहगार जुल्म सहने वाला होता है। मेरी मदद चाहिए तो बताओ मैं तुम्हारा साथ दूँगी।”

वह बोली, “मैडम, मेरी बच्चियाँ अभी छोटी हैं। उनको लेकर कहाँ जाऊँगी?”

बहुत समझाया मैंने कि गलत का प्रतिकार करो वरना उसकी जुल्म करने की हिम्मत और बढ़ती जाएगी। कोमल ने हाथ जोड़ लिए और बोली, “मैडम प्लीज जाने दीजिए। यूनिवर्सिटी में बदनामी के चलते उन्हें निकाल दिया गया।” अब बच्चियाँ भी पढ़ने नहीं आती थीं।

मुझे पता चला कि बच्चे स्कूल भी नहीं जाते क्योंकि फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे। फिर उसकी कोई खबर नहीं मिली। धीरे-धीरे तीन साल बीत गए।

एक दिन अचानक मेरी डोर बेल बजी। देखा, कोमल अपने बच्चों के साथ खड़ी थी। खुश दिख रही थी।

“मैडम आप सही कह रही थीं। मैं जितना सहन करती जाती रही, उतने जुल्म बढ़ते जा रहे थे। परंतु जब बच्चियों को मारा उसने, तो मैं सहन नहीं कर नहीं कर पाई। सोच लिया अब बस! धक्का दिया और 2-4 मुक्के भी जड़ दिए और बच्चों को लेकर चली आई।

मैं एक एनजीओ से जुड़ गई। उन्होंने मेरी बहुत मदद की, नौकरी दिलवाई। अब मैं अपने बच्चों की अच्छे से परवरिश कर हूँ। अब मैं स्वाभिमान के साथ सिर उठाकर जी रही हूँ। उसके चेहरे की चमक देखने लायक थी।

मूल चित्र : davidf from Getty Images Signature via CanvaPro

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Ruchi Mittal

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