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तभी तो! जो ज्यादा हो, उसे खोंस लेती है, नाभि के निकट! ताकि जुड़ी रहे उस नाल से, जिसने उसे मूर्त रूप दिया और भर दिए हैं संस्कार!
तभी तो! जो ज्यादा हो, उसे खोंस लेती है, नाभि के निकट! ताकि जुड़ी रहे उस नाल से, जिसने उसे मूर्त रूप दिया और भर दिए हैं, संस्कार!
पाँच गज की साड़ी मेंलिपटी स्त्री,किसी को रूढ़िवादीतो किसी को गंवईलगती है।
पाँच गज को तन सेलपेट कर स्वछंदचलने वाली स्त्रीयह संदेश देती है;कि अपने विशालहृदय में वो समेटलेगी पूरा घर-परिवार।
जैसे एक गांठ केऊपर टिका होता है,पूरी साड़ी का अस्तित्व।उसी प्रकारउसे धारण करनेवाली स्त्रीगांठ बाँध करचलती है,मर्यादा की।
पाँच गज को संभालना,कोई मामूली काम नहीं।तभी तो जो ज्यादा हो उसे,खोंस लेती है, नाभि के निकट।ताकि जुड़ी रहे उसनाल से जिसने उसेमूर्त रूप दिया औरभर दिए हैं संस्कार।
घर आँगन को अन्न-धनसे भरे रखने के लिएकमर को स्पर्श करतीसाड़ी उभार देती है,उसकी सुंदरता।और छाती से लग करसलीके से कितने रंगउभारती है, साड़ी।
नारीत्व की शोभा!ममत्व की सुंदरता!को इंगित करतीसभ्यता को बदन परलपेटे हरी-भरी!सृष्टि सी लगती है, स्त्री!
पल्ला सीधा हो या उल्टा,दोनों में ही दुनिया के सारेसुख निहित होते हैं।
रूप माँ का हो!प्रेमिका या पत्नी!या फिर बहन और बेटी का!
मूल चित्र : Canva
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