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ये तो बस मेरे शब्दों की गूँज थी, मौका मिले तो, कभी सुनाऊँगी, अपनी आवाज़ की खनक को, मैं तो बस यूँ ही लिख देती हूँ, मेरे लेखन में भी एक सबक है!
न मैं तुमसे कम हूँ, न तुम मुझसे कम हो, यहाँ हर एक के पास कुछ न कुछ ख़ास है, तुम पढ़ो तो कभी खुद को!
तुममें भी कोई नया एहसास है, ये तो बस मेरे शब्दों की गूँज थी, मौका मिले तो, कभी सुनाऊँगी, अपनी आवाज़ की खनक को।
तुमने मुझे उतना देखा, जितना मैंने तुम्हें दिखाया, तुमने मुझे उतना जाना जितना मैंने तुम्हें जताया, कभी पढ़ो तो मेरी किताब को, पढ़ोगे तो जानोगे, किताब के हर पन्ने के एहसास को। वर्षों से बंद पड़ी थी जो, उसके हर शब्द भी स्तब्ध थे, ये तो बस मेरे शब्दों की गूँज थी , मौका मिले तो, कभी सुनाऊँगी, अपनों आवाज़ की खनक को।
मैनें जब पढ़ा खुद को, तो खुद से ही मुलाकात हुई, हर चीज मेरी थी, हर बात मेरी थी, हर अच्छाई मेरी थी, हर बुराई मेरी थी, अपने भी थे, और पराये भी थे, हर कुछ मुझसे शुरू, मुझ पर ही ख़त्म था,
सोचा कुछ नया, क्या है मुझमें, ये तो सभी के पास है, फिर क्या था, अपने मन को ही तीर बनाकर, एक प्रकाश की खोज में, क्योंकि जीवन में अँधेरा कुछ पल का, मन में न अँधेरा रह पाए, छोड़ दिया अन्धकार में, आगाज तो अच्छा है, अंजाम देखेंगे, ये तो बस मेरे शब्दों की गूँज थी, मौका मिले तो, कभी सुनाऊँगी, अपनी आवाज़ की खनक को!
मूल चित्र : Canva
Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ]
सुनो! मैं भी इंसान हूँ…बिल्कुल तुम्हारी ही तरह!
हाँ! तुम मेरे कातिल हो।
बेशक तुम मेरी माँ होंगी, मानती हूं, पर शायद …
शून्य हूँ मैं, सिफ़र हूँ मैं
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