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अपराधी हूँ मैं खुद की रख के ये मौन…

अपराधी हूँ खुद की रख के मौन, सहारे हैं ये अपने यही सोच रहती मौन, मगर अब ये ख़ामोशी चीखती है, सवाल कर के पूछे आखिर मैं हूँ कौन?...

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अपने उसूलों पर चलती, मैं हूँ बागी विचारों सी लड़की …

गलत-सही निर्णय जो आप ही लेती हूं, लोगों को कम ही भाती हूं, मैं आज़ाद ख्यालों सी लड़की, अपनी एक सोच लिये, अपने उसूलों पर चलती हूं, मैं आधुनिक ज़माने की लड़की।

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फ़िल्म थप्पड़ ने मुझसे कहा, “अब अपने रंग में ढल जाओ!”

हम में से ज़्यादातर महिलाएं अपनी ही ज़िंदगी किसी और की पसंद के हिसाब से जीना शुरु कर देते हैं और हम उसमें सहजता महसूस करते हैं।

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ये परीक्षा है, कभी धैर्य की तो कभी आत्मसम्मान की

किसी को नहीं लेकिन जैसे जैसे जीवन रुपी इस परीक्षा से गुज़रने लगी हूँ, डिग्री के लिए दिए जाने वाले वो एक्साम्स बहुत छोटे और आसान लगते हैं।

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वह अजीब औरत कहीं आप और मैं तो नहीं?

कल! देखा मैंने, उस अजीब औरत को! सोचा कभी जाने क्यों इतनी अजीब होती हैं ये औरतें? इतनी सशक्त होते हुए भी, असहाय सी दिखती हैं, ये औरतें।

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तुम्हीं बता दो ना, कहां हूँ मैं?

अपने ही घर में पहचान ढूंढती, प्यार के दो शब्द को तरसती, पल भर गले लगा कर सारी थकान भूलने वाली मशीन उर्फ 'औरत' पूछती है तुमसे, कहाँ हूँ मैं?

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