कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मर्दानगी और मेल ईगो पे तंज़ कस रहा है तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर की नई फ़िल्म ‘सांड की आँख’ का टीज़र

सीन से साफ़-साफ़ पता चल रहा है कि मर्दों को औरतों का घर की चार दीवारी से बाहर  निकलकर ‘मर्दों वाले' काम करना उनकी मेल ईगो को कितना खलता है।

सीन से साफ़-साफ़ पता चल रहा है कि मर्दों को औरतों का घर की चार दीवारी से बाहर निकलकर ‘मर्दों वाले’ काम करना उनकी मेल ईगो को कितना खलता है।

हाल ही में फिल्म ‘सांड की आंख’ का टीज़र रिलीज़ हुआ। यह फिल्म दिवाली पर रिलीज़ होगी। इस फिल्म के लीड रोल्स में हैं, पिंक जैसी मूवीज़ में अपनी अदाकारा का प्रदर्शन दिखा चुकीं तापसी पन्नू, और, अक्षय कुमार के साथ टॉइलेट में अपनी अच्छी अदाकारा साबित कर चुकी, भूमि पेडनेकर। प्रकाश झा, विनीत कुमार और शाद रंधावा भी इस फिल्म का हिस्सा हैं। अनुराग कश्यप-तुषार हीरानंदानी की इस फिल्म की सबसे ख़ास बात यह है कि यह फिल्म मेल-ईगो और पितृसत्ता के नाम पर एक करारा तमाचा है।

यह फिल्म दो बुज़ूर्ग औरतों पर बनी है। ख़ास बात यह है कि यह कहानी यूपी के बागपत जिले के जौहड़ी गांव में रहने वाली एक देवरानी-जेठानी जोड़े की असली कहानी है। तापसी और भूमि इस फिल्म में देवरानी-जेठानी की भूमिका निभा रही हैं और उनके किरदारों के नाम हैं,  प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर। दोनों पूरे शहर में ‘शूटर दादियों’ के नाम से मशहूर हैं। अब ज़ाहिर सी बात है कि फिल्म दो औरतों पर ही बनी है, तो टीज़र में उन्हें जगह देना सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। यह चीज़  ‘सांड की आंख’ के टीज़र में दिख रही है। तापसी पन्नू, जो प्रकाशी के रोल में हैं, और भूमि जो चंद्रो के रोल में हैं, टीज़र में काफी दमदार दिख रही हैं। 

ना ही सिर्फ शूटिंग, टीज़र देखकर लग रहा है, कि फिल्म में घूंघट का रोल भी काफी अहम है। चंद्रो और प्रकाशी की जवानी के एक सीन में, दोनों फोटो खिंचाते वक्त अपना घूंघट उठा लेती हैं। तब उनके पति भयंकर गुस्से में उन्हें घूरते हैं और वे दोनों जल्दी से घूंघट से दोबारा सिर ढक लेती हैं। लेकिन वहीं बुजुर्ग चंद्रो और प्रकाशी जब शूटिंग रेंज पर जाती हैं, तब बिना डरे बड़े शान से घूंघट उठाती हैं। दोनों सीन देखकर लग रहा है कि फिल्म समाज की दुपट्टे और घूँघट प्रथा पर भी तंज़ कस रही है।

हमारे देश में औरतों के ऊपर बहुत सारे प्रतिबंध हैं। घूँघट की प्रथा उनमें से एक हैं। हमारे देश में आज भी कई हिस्सों में औरतों को घूँघट रखने पर, पितृसत्ता की वजह से, मजबूर किया जाता है।

इस मूवी के 1.23 मिनट के टीज़र में, घर में औरतों पर होने वाले अत्याचारों को भी दिखाने की कोशिश की गई है। एक सीन में घर का एक आदमी, चंद्रो या प्रकाशी दोनों में से किसी के हाथ से मेडल छीनकर ज़मीन पर फेंक देता है, एकदम तमतमाते चेहरे के साथ। इस सीन से साफ़-साफ़ पता चल रहा है कि कैसे मर्दों को औरतों का घर की चार दीवारी से बाहर निकलकर ‘मर्दों वाले’ काम करना उनकी मेल ईगो को कितना खलता है। लेकिन उसके तुरंत बाद वाले सीन में, दोनों औरतें हँसते हुए शूटिंग की प्रैक्टिस करते दिख रही हैं। इसका मतलब साफ है, कि मर्दों के गुस्सा होने पर भी दोनों औरतें रुकी नहीं।

इन दोनों किरदारों के अलावा, विनीत कुमार का किरदार भी काफी मजबूत दिख रहा है। विनीत दोनों दादियों के ‘शूटिंग इंस्ट्रक्टर’ लग रहे हैं।

टीज़र को देखकर ये लगता है कि फिल्म में दो औरतों की असल कहानी को दिलचस्प तरीके से दिखाने की काफी अच्छी कोशिश की गयी है। आज के ज़माने में जहाँ फिल्में वायलेंस, अब्यूज़ और रेप कल्चर  फैला रही हैं, वहीं  ‘सांड की आँख’ एक सशक्त उम्मीद लगती है।

मूलचित्र : Movie Promo Image/Trailer

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Nishtha Pandey

I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...

18 Posts | 65,938 Views
All Categories