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तापसी पन्नू की नयी कविता ‘प्रवासी’ आपकी सुविधा पर नए सवाल उठाएगी

"हम तो बस प्रवासी है क्या इस देश के वासी हैं?" तापसी पन्नू की कविता 'प्रवासी' आपकी अंतरात्मा को झिंझोड़ेगी और पूछेगी, आखिर क्या दोष था प्रवासी मजदूरों का?

“हम तो बस प्रवासी है क्या इस देश के वासी हैं?” तापसी पन्नू की कविता ‘प्रवासी’ आपकी अंतरात्मा को झिंझोड़ेगी और पूछेगी, आखिर क्या दोष था प्रवासी मजदूरों का?

वर्तमान परिवेश से हम सभी बहुत अच्छे तरीके से अवगत हैं। प्रवासी मजदूरों की पीड़ा हर टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह है। वे घर वापस नहीं जा पा रहे थे , नहीं जाने कहाँ और किस हालत में बेबस फसे हुए थे  आर्थिक रूप से निर्बल, बिना भोजन और संसाधनों के साथ बस घर जाने की आस मैं प्रवासी मजदूरों बीते समय बहुत सहा।

सरकार की सहायता पूर्ण तरीके से  मददगार नहीं रही, , पुलिस की बर्बरता अपने चरम पर थी और एक बात जिसकी  किसी को परवाह नहीं थी कि ये प्रवासी आखिर जाए कहाँ? कोरोना के समाय कोरोना से भी बड़ी आपदा, समाज की बेपरवाही हमारे प्रवासी मजदूरों ने सही।

प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के बारे में बात करते हुए अभिनेत्री तापसी  पन्नू ने अपने सोशल मीडिया पर एक काफी संवदनशील कविता साझा की। कविता ‘प्रवासी’ में प्रवासी मजदूरों के संघर्ष का उन्होंने  वर्णन किया  है।

“हम तो बस प्रवासी है क्या इस देश के वासी हैं”

एनिमेटेड क्लिप की एक श्रृंखला के साथ तापसी की इस कविता की वीडियो पिछले कुछ दिनों में प्रकाश में आने वाली सभी दुर्भाग्यपूर्ण  घटनाओं की याद दिलाती है। दिहाड़ी मजदूरों के नंगे पैर घर जाने से लेकर,, पुलिस की बर्बरता,  15 साल के ज्योति कुमारी का  1200 किमी  साइकिल से घर तक का सफर तय करना , एक बच्चे  का अपनी मृत मां को ढँकने वाले कपड़े से खेलने तक।  तापसी की यह कविता और उसकी वीडियो प्रवासी मजदुरो पे गुजरी हर पीड़ा की याद दिलाती है।

तापसी  ने अपने इंस्टाग्राम और ट्विटर पर वीडियो को साझा  करते हुए कहा –

“प्रवासी। तस्वीरों की एक श्रृंखला जो शायद हमारे दिमाग को कभी नहीं छोड़ेगी। ये लाइन्स हमारे मन मै सदियों तक गूंजेंगी । यह महामारी भारत के लोगों के लिए सिर्फ एक वायरल संक्रमण से भी बतर थी। हम तो बस प्रवासी है, क्या देश के वासी है? ”

वीडियो के साथ, तापसी ने एक सवेदनशील कविता भी सुनाई जो हमसे सवाल करती है कि इन प्रवासी मजदूरों के लिए क्या किया जा सकता था? आखिर उनकी क्या गलती थी कि उन्हें  इस तरह बेबस रहना पड़ा ?  हमारे समाज में आखिर मानव अधिकारों का अभाव क्यों है? हम हमारी सुविधा का आनंद लेने में व्यस्त होकर दुसरो के बारें में सोचना क्यों छोड़ देते हैं ?

प्रतिक्रियाएँ

सोशल मीडिया पर उनकी कविता को कई लोगों ने सराहा।

हम अक्सर प्रवासी मजदूरों को उनकी जरूरत के संसाधनों को नहीं मिलने के लिए सरकार को दोषी मानते हैं। कुछ भी न करने के लिए सरकारें और पार्टियाँ एक दूसरे पे दोषी मढ़ती रहती  हैं। मीडिया हाउस और इन्फ्लुएंसर्स प्रवासी मजदूरों अपने प्रियजनों को बचाने की कहानियां साझा करते हैं। फिर एक समाज के तोर पर हम प्रवासी मजदूरों के  मानवीय संकट को एक सफल और प्रेरणादायक कहानी के रूप में प्रसिद्ध करते हैं।

लेकिन इस सब में, हम यह भूल जाते हैं कि समाज में  ऐसे भी  लोग हैं जो पीड़ित हैं। हम यह भूल जाते हैं कि जब हम अपनी सुविधा का आनंद ले रहे होते हैं, तो कोई संघर्ष कर रहा होता है। हम भूल जाते हैं कि हम कैसे उन्हें जिन्हे मदद की ज़रूरत हैं उनकी मदद कर सकते थे लेकिन हमने नहीं की । सोचिये क्यूंकि प्रवासी मजदूरों  लिए हम सब ज़िम्मेदार है।

मूल चित्र : Instagram 

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About the Author

Nishtha Pandey

I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...

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