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एक माँ की समझदारी – इज्ज़त दो, इज्ज़त लो!

मुग्धा पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। उसे दिख तो रहा था कि सब तंग हो रहे हैं लेकिन अपनी ऐश-परस्ती में उसने किसी की कद्र नहीं करी।

मुग्धा पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। उसे दिख तो रहा था कि सब तंग हो रहे हैं लेकिन अपनी ऐश-परस्ती में उसने किसी की कद्र नहीं करी।

सविता जी मुंबई में अपने फ्लैट में रहती हैं। उनके पति अविनाश एक सरकारी नौकरी करते हैं और बस साल भर तक रिटायर होने वाले हैं। उनका बेटा मेहुल और बहू रुचि भी उनके साथ ही रहते हैं। मेहुल और रुचि दोनों अच्छी कंपनियों में नौकरी करते हैं। उनका चार साल का बेटा शिवेश है जिसने अभी थोड़े समय पहले ही स्कूल जाना शुरू किया है। सविता जी की एक बेटी भी है-मुग्धा। वो शादी करके लंदन में सेट हो चुकी है और वहीं एक मल्टी-नेशनल कंपनी में नौकरी करती है। मुग्धा के एक छह साल की बेटी श्रिया है।

सविता जी का परिवार बड़ा सुकून से रहता है। दोनों सविता जी और उनके पति ‘इज्ज़त दो, इज्ज़त लो’ में विश्वास रखते हैं, इसलिए बहू रुचि भी ससुराल में बड़े आराम से रहती है। दोनों सास-बहू की खूब पटती भी है। रुचि भी अपने सास-ससुर को बहुत मान देती है और सुबह नौकरी पर जाने से पहले अपनी तरफ से सविता जी की पूरी मदद करती है और अपने बेटे को भी तैयार करके जाती है। हालांकि काम वाली तो उन्होंने लगा रखी थी पर घर सिर्फ कामवाली के भरोसे नहीं चलता, इसलिए दोनों सास-बहू मिलकर अच्छे से सब संभाल लेती हैं, जिसमें कभी-कभी अविनाश जी और मेहुल भी मदद कर देते हैं।

सविता जी आज बड़ी खुश हैं, इतनी की उनके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे। हो भी क्यों ना, आज उनकी बेटी मुग्धा ने उन्हें फोन पर बताया कि उसकी कंपनी उसे छः महीने के लिए भारत भेजने वाली है, किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में और वो ये छः महीने उनके साथ ही रहेगी। सविता जी तो इतने लंबे समय अपनी बेटी और नवासी के साथ रहने का सोच कर ही बल्लियां उछल गई।
करते-करते वो दिन भी आ गया जब मुग्धा मुंबई आ गई। उसके साथ उसकी बेटी श्रिया भी आई, जिसका एडमिशन अस्थायी तौर पर पास में ही एक अच्छे स्कूल में करा दिया। मुग्धा ने भी दो दिन आराम कर ऑफिस ज्वाइन कर लिया। सारा घर मुग्धा के आने से चहक उठा।

मुग्धा को रुचि के ऑफिस जाने के आधे घंटे बाद निकलना होगा, इसलिए सबको लगा कि जैसे घर पहले अच्छे से चल रहा था वैसे ही अब भी चल जाएगा। बस सविता जी को अब श्रिया को भी स्कूल से आने के बाद संभालना होगा, इसलिए उन्होंने चार-पांच घंटों के लिए एक और लड़की को रख लिया जो स्कूल से आने के बाद दोनों बच्चों को संभाल लेगी। बस सबका थोड़ा सा साथ और घर संभल जाएगा।

लेकिन मुग्धा तो अलग ही निकली। कहां रुचि खुद तैयार हो कर अपने बेटे को भी तैयार करती थी और घर के काम में भी पूरी मदद करने की कोशिश करती थी और कहां मुग्धा जो लेट उठकर सिर्फ खुद ही तैयार हो पाती है। ना वो अपनी बेटी को तैयार करती ना ही घर के काम में मदद करती।

रुचि को बुरा तो लगा लेकिन सबका ख्याल कर के वो चुप रह गई। और उधर सविता जी तो बेटी के साथ घुन की तरह पीस गईं। दो जन के आने से घर का काम भी बढ़ गया। ऐसे में मुग्धा अगर मदद करती तो सब ठीक चलता। सविता जी श्रिया को भी तैयार करती और दो टिफिन भी अतिरिक्त बनातीं, मुग्धा और श्रिया का।

उनका शरीर एक महीने में ही जवाब दे गया। लेकिन अपनी बेटी को वो कुछ कह नहीं पा रही थीं। करते-करते दो महीने निकल गए और साथ में ही सविता जी के बेटी को लेकर अरमान भी। एक दिन जब मेहुल और रुचि बाज़ार गए हुए थे, तब मौका देखकर उन्होंने मुग्धा से बात की। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “अगर ऐसे ही काम चलाना है, तो अलग घर लेकर रहो। जब रुचि काम करके, अपने बेटे को तैयार करके, ऑफिस जा सकती है तो तुम भी ये सब कर सकती हो। मेरे लिए तुम और रुचि एक जैसी हो। अपनी बेटी के चक्कर में मैं अपना खुशहाल घर बर्बाद नहीं करूंगी। वैसे भी तुम्हारी हरकतें देख कर ऐसा लगता है, जैसे तुम नहीं बल्कि रुचि मेरी बेटी है। तो अब ये तुम तय करो की तुमने ठीक तरीके से यहां रहना है कि अलग रहना है।”

मुग्धा पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। उसे दिख तो रहा था कि सब तंग हो रहे हैं लेकिन अपनी ऐश-परस्ती में उसने किसी की कद्र नहीं करी। लेकिन आज सविता जी ने उसकी आंखें खोल दीं। मुग्धा ने अपनी मां से माफी मांगी और बोली, “मां, अब आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।”

सविता जी की समझदारी ने आज उनके घर को बिखरने से बचा लिया नहीं तो अक्सर माएँ बहुओं के सामने कभी अपने बच्चों की गलती नहीं मानती। अगर सब माएँ सही का साथ दें और गलत का विरोध करें तो काफी घर खराब होने से बच जाएँगे।

मूलचित्र : Pexel

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