कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माँ की मज़दूरी…

भरी दोपहरी तपती गर्मी में पसीना बहाती, कोमल तो है कमजोर नहीं, यही याद दिलाती, फिर कुछ सोच पत्थर दिल के लिए आँसू बहाती!

भरी दोपहरी तपती गर्मी में पसीना बहाती, कोमल तो है कमजोर नहीं, यही याद दिलाती, फिर कुछ सोच पत्थर दिल के लिए आँसू बहाती!

भरी दोपहरी तपती गर्मी में पसीना बहाती,
महल नहीं तो कुटिया की ही छांव देना चाहती!
तार-तार चीथड़ों से लाल को लू से बचाती,
खुदा की प्यास भूल, सपनों के पतंग उड़ाती।

निर्लज्ज शराबी पति का सोच दिल धड़काती,
क्या समेटूं, क्या खरीदूं? यही सोच सताती!
बिन थके पत्थरों पर चोट लगाते जाती,

चलती हथौड़े की हत्थी शायद ढाढस थी बंधाती।

कोमल तो है कमजोर नहीं, यही याद दिलाती,
फिर कुछ सोच पत्थर दिल के लिए आँसू बहाती!
पत्थर तोड़ना सरल पर वही दिल कैसे पिघलाती?
ढीठ फिर लाल के उज्जवल भविष्य के स्वप्न सजाती।

मूल चित्र : Pexels

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

41 Posts | 211,270 Views
All Categories