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स्त्री: एक विवशता

पिता का अभिमान हूँ, माँ के दिल का अरमान हूँ, जो नहीं हूँ, वह है इस अप्रत्याशित समाज का हिस्सा।

पिता का अभिमान हूँ, माँ के दिल का अरमान हूँ, जो नहीं हूँ, वह है इस अप्रत्याशित समाज का हिस्सा।

मेरी विवशता कहो या अधिकार,

कि मैं एक स्त्री हूँ।

ना तो कमजोर हूँ, ना जाबांज़ हूँ,

पर दिल में दबी, सबकी आवाज़ हूँ।

पिता का अभिमान हूँ,

माँ के दिल का अरमान हूँ,

जो नहीं हूँ,

वह है इस अप्रत्याशित समाज का हिस्सा।

जिस सीता को सतीत्व के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी,

विवाह के नाम पर दहेज़ की चिता मिली,

मेरी दुर्बलता कहो या सशक्तता,

मैं एक स्त्री हूँ।

लेकिन…

तमाम नियमों और कायदों में बँधी,

जिसकी अपनी सोच अमान्य है।

मूल चित्र : Pexels

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