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कभी-कभी मन होता है कि खुद के भी शौक पूरे करूँ…

नौकरी करने के बावजूद मेरे पास एक भी पैसा नहीं जो मैं अपनी मर्जी से खर्च कर सकूँ। हर छोटी-बड़ी बात के लिए पति से ही पैसे लेने पड़ते हैं।

नौकरी करने के बावजूद मेरे पास एक भी पैसा नहीं जो मैं अपनी मर्जी से खर्च कर सकूँ। हर छोटी-बड़ी बात के लिए पति से ही पैसे लेने पड़ते हैं।

“मुझे फ्रेशर्स पार्टी में पहनने के लिए एक नई ड्रेस चाहिए।” नव्या ने अपनी माँ रति से मचलते हुए कहा तो रति मुस्कुराये बिना न रह सकी। फिर अगले ही पल गंभीर होकर बोली “बेटा, पिछले साल ही तुमने अपनी फ्रेशर्स पार्टी में नई ड्रेस ली थी न, वही पहन लेना।”

“माँ वो पहला साल था, अब मैं सीनियर हूँ तो एक नई ड्रेस तो बनती है। वैसे भी आप और पापा हमेशा मेरे लिए ही कंजूसी करते हैं। नकुल (उसका भाई) के लिए तो बिना कहे ही सब कुछ आ जाता है।” नव्या ने नाराज होकर कहा।

“ऐसी बात नहीं है बेटा, हमारे लिए तुम दोनों ही बराबर हो। अब देखो तुम कॉलेज में हो, अकेले आती-जाती हो, हमने कभी रोका है क्या? या कभी ऐसा हुआ कि तुम्हे ज़रुरत का सामान नहीं मिला? और रही बात नकुल की, तो वो टेनिस खेलता है और उसी में अपना करियर बनाना चाहता है। उसके गेम के लिए ज्यादा खर्चा होता है, तो ध्यान तो रखना होगा न! तुम्हारे पापा हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात कितनी मेहनत करते हैं, तुमने कभी महसूस किया?” रति ने समझाने की कोशिश की।

“हाँ माँ, मैं जानती हूँ कि पापा बहुत कोशिश करते हैं और हम सब का बहुत ध्यान रखते हैं लेकिन मैं ये कहना चाहती हूँ कि कभी-कभी आप पापा से अलग भी कुछ किया करो, आप भी विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन हो, अच्छा कमाती हो, तो कभी तो अपनी मर्जी से खर्च भी किया करो! अगर पापा ड्रेस नहीं दिला सकते तो आप दिला दो” नव्या ने लगभग खीजते हुए कहा।

“तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि हम दोनों अलग हैं? जब घर एक है तो खर्च भी एक जगह से ही होगा, वरना तो सब अलग-अलग दिशाओं में भागेंगे और सब बेकार हो जायेगा। तुम अभी छोटी हो, घर चलाना नहीं जानती, जब मेरी उम्र में आओगी, तो पता चलेगा कि कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं।” रति ने थोड़े गुस्से से कहा।

“अच्छा अगर ऐसा है तो आपने कल क्यों कहा कि नौकरी करने के बावजूद मेरे पास एक भी पैसा नहीं जो मैं अपनी मर्जी से खर्च कर सकूँ। हर छोटी-बड़ी बात के लिए निशांत (रति का पति) से ही पैसे लेने पड़ते हैं। याद है पिछले महीने जब आप अपने लिए एक हैंड बैग खरीदना चाहती थी, पर नहीं ले पायी, क्यों?

या जब आप काम वाली बाई की बेटी की पढाई खर्च में मदद करना चाहती थी तो भी नहीं कर पायी और भी जाने कितनी ऐसे बातें होंगी जिनका हमें किसी को भी नहीं पता। माँ यहाँ बात मुझे ड्रेस दिलाने की नहीं है, बल्कि आपकी आर्थिक आजादी की है। आपको अपनी आय का एक हिस्सा अपने पास रखना चाहिए, जिसे आप अपनी मर्जी से खर्च कर सकें। आपने सही कहा कि मैं अभी छोटी हूँ, पर इतनी भी नहीं कि अपनी माँ के मनोभाव न समझ सकूँ।”

नव्या ने माँ के गले में हाथ डालकर कहा तो न चाहते हुए भी रति की आँखों में आंसू आ गए और बोली “मुझे तो पता ही नहीं चला कि मेरी छोटी सी गुड़िया कब इतनी बड़ी हो गयी कि अपनी माँ की परेशानी समझ सके! पर तुमने सच कहा, मुझे अपना हिस्सा रखना चाहिए परन्तु पिछले बाईस सालो से निशांत ही सब कुछ देख रहे हैं। सारी चीज़ें समय से मिलती आई हैं, कई बार उन्होंने मेरे कहने से काम भी किये हैं।

कभी ऐसा नहीं लगा कि मेरी अपनी भी कोई जरुरत है, अगर कभी ऐसा ख्याल भी आया तो झिटक दिया क्योंकि बात निशांत के प्यार और विश्वास की थी। मुझे हमेशा यही लगता था कि वो जो भी करेंगे सही होगा। हमने साथ घर लिया, तो किश्ते चुकाने के लिए मैंने अपना एटीएम दे दिया। हमने मिलकर ही ये सब कुछ बनाया है। अब सब कुछ ठीक है, सब अच्छा चल रहा है, तो कभी-कभी मन होता है कि खुद के वो शौक पूरे करूँ जो जिम्मेदारियों के चलते पहले न कर पाई। मुझे ज्यादा की जरुरत नहीं, बस अपनी मर्जी से छोटे-छोटे पल समेट लेना चाहती हूँ। लेकिन समस्या ये है कि ये सब अब कैसे बदलूँ?”

“माँ, एक कहावत है ना ‘अ थाउजेंड माइल्स जर्नी स्टार्टस विद अ सिंगल स्टेप’ तो कदम तो आपको उठाना ही पड़ेगा, चाहे कितना भी अजीब लगे। आज रविवार है, बढ़िया दिन है, कल से नए सप्ताह की शुरुआत, नए नियम से करिए और मुझे पूरी उम्मीद है कि पापा आपकी बात समझेंगे। शायद आपने ही कभी अपने अधिकार का अहसास नहीं दिलाया क्योंकि लेडीज़ की सबसे खास बात है कि हर परिस्थिति में सहयोग करना। माँ अब जमाना बदल गया है, आपने पापा के साथ मिलकर इस घर के लिए बहुत कुछ किया, अब आपकी बारी है आपकी कमाई पर पहला हक़ आपका है” नव्या पूरे जोश में थी।

“नव्या, मैं आज निशांत से इस विषय पर जरूर बात करुँगी और मुझे अहसास दिलाने के लिए तुमने जो ड्रेस का ड्रामा किया तो अब वो ड्रेस तुम्हे जरूर मिल जायेगा” रति ने कहा तो नव्या ख़ुशी से उसके गले लग गयी।

कहानी यहाँ जरूर एक अच्छे मोड़ पर पूरी हुई है, पर असल जिंदगी में आज भी न जाने कितनी रति अपनी आर्थिक आजादी के लिए लड़ रही हैं। इस समस्या के लिए आपके सुझाव आमंत्रित है

मूल चित्र : Deepak Sethi from Getty Images Signature via Canva Pro 

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Abhilasha Singh

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