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मेरी बहु सिर्फ संडे को ही काम करती है…

जब रागिनी ने उसकी तरफ देखा तो उसने शांत रहने का इशारा कर समझा दिया कि अभी मेहमान घर पर हैं, बाद में बात करेंगे। 

जब रागिनी ने उसकी तरफ देखा तो उसने शांत रहने का इशारा कर समझा दिया कि अभी मेहमान घर पर हैं, बाद में बात करेंगे। 

“अरे बेटा कितना कुछ बना लिया, कुछ हल्का फुल्का ही रहने देती, रोजाना तो व्यस्त रहती ही हो।  आज संडे को भी हम लोग आ गए तुम्हे परेशान करने!”

रागिनी के घर आयी मेहमान मधु आंटी ने कहा, तो इससे पहले वह कुछ कहती उसकी सासूमाँ नीलम बीच में ही बोल पड़ी, “कोई बात नहीं मधु, तुम कौन सा रोज-रोज आती हो! आज तुम्हारी बहू का परीक्षा केंद्र यहाँ न होता तो क्या तुम आतीं? इतने साल हम लोग पड़ोसी रहे हैं, अब इतना हक़ तो तुम्हारा बनता है कि तुम कभी भी आओ! और रही बात आज रागिनी के व्यस्त होने की तो नौकरी वाली बहुएं तो सिर्फ संडे को ही घर का काम करती हैं, इसलिए ज्यादा चिंता न करो।”

इस बात को सुनकर जहां रागिनी अपने गुस्से और दुःख, दोनों को कंट्रोल करने की कोशिश करने के लिए वहां से अपने कमरे में चली गयी। वहीं दूसरी तरफ मधु भी हैरान परेशान थी कि नीलम ने ये क्या कह दिया? उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे? बस अच्छा नहीं लगा। घर के एक ओर सदस्य को ये बात नागवार गुजरी जो रागिनी का पति अरुण नहीं बल्कि उसके ससुर रमेश थे।

अरुण का तो एक ही फंडा था कि इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर कोई प्रतिकिर्या न ही दी जाये, क्योंकि ये उन दोनों के बीच की बात है। जब तक बहुत ज़रूरी न हो, अलग ही रहें। हालाँकि आज उसे भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि वह जनता है कि रागिनी अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करती है। फिर भी मम्मी को कोई न कोई कमी मिल ही जाती है। इसलिए जब रागिनी ने उसकी तरफ देखा तो उसने शांत रहने का इशारा कर समझा दिया कि अभी मेहमान घर पर हैं, बाद में बात करेंगे।

परन्तु रमेश जी से न रहा गया और आज उन्होंने अपनी बात कह ही दी, “नीलम मैंने कभी भी तुम्हारे घर चलाने के तौर तरीकों पर कोई सवाल नहीं उठाया, क्योकि मुझे हमेशा यही लगता था कि ये तुम्हारा घर है और तुमसे बेहतर इसे कोई नहीं संभल सकता। पर जब अरुण की शादी की बात चली तो मैं खुश होने के साथ-साथ थोड़ा डरा भी था क्योंकि तुम हमेशा खुद को परफेक्ट मानती आयी हो, तो बहू के साथ कैसे निभाओगी! परन्तु रागिनी का व्यवहार देखकर मुझे लगा कि इतना परेशान होने की जरुरत नहीं है।

आज तुम कहती हो कि वह तो बस संडे को ही काम करती है, तो जब अपनी शान दिखाने के लिए नौकरी वाली बहू ढूंढ़ रही थीं तब ये सब क्यों नहीं सोचा? रोज देखता हूँ कैसे वह ऑफिस जाने से पहले नाश्ता बनाना, अपना और अरुण का टिफ़िन लगाना, आरव (उनका पोता, जो अभी दो साल का है) के कपड़ों से लेकर उसकी जरुरत का हर सामान तुम्हारे पास रखना, फिर शाम को आकर तुम्हारे साथ रसोई में लग जाना और भी कितने काम होते हैं घर में जिन्हे शायद मैं न बता सकूँ, सारे काम करती है। ज़रा सोचो अगर वो सिर्फ संडे को ही काम करे, तो बाकि दिन तुम सब देख सकोगी?”

“तो आप कहना चाहते हैं कि मैं ही गलत हूँ! क्या गलत कहा मैंने? मैं भी सारा दिन आरव को संभालती हूँ, थक जाती हूँ, फिर दोपहर का खाना, वो कौन बनाता है? मैं ही न! अगर रागिनी एक दिन नाश्ता थोड़ा अलग बना ले या कुछ और काम ज्यादा कर ले तो क्या हुआ?” नीलम आवेश में आ गयी थीं।

“वैसे तो ये आप लोगो के घर का मामला है, पर जब बात मेरे सामने शुरू हो ही गयी है तो मैं सहेली होने के नाते यही कहना चाहती हूँ कि नीलम, तुम बहुत भाग्यवान हो जो इतना सब सुनकर भी तुम्हारी बहू चुपचाप चली गयी। भले ही मेरी वजह से, वरना आजकल कोई इतना नहीं सुनता।  दूसरी बात, तुम्हें क्या लगता है कि ऑफिस में रागिनी को कोई काम नहीं होता या वहाँ कोई स्ट्रेस नहीं है?

आजकल के बच्चे कितने दबाव में रहते हैं, तुमने कभी जानने की कोशिश की? फिर भी जैसा भाई साहब ने बताया कि वो आकर भी तुम्हारी मदद करती है तो तुम्हें तो उसकी सराहना करनी चाहिए। उसका छोटा बच्चा भी है, कई बार रात को नींद भी पूरी नहीं होती होगी।”

मधु ने कहा तो रमेश जी बोले, “बिलकुल ऐसा होता होगा, जबकि अरुण हमारा बेटा ऑफिस से आने के बाद कुछ भी नहीं करता। अगर तुम्हें याद हो तो मैं घर आने के बाद हमेशा तुम्हारी मदद करता था, भले ही छोटी सी ही, फिर तुम ये सब कैसे भूल गयीं?”

“हाँ बस सब सही हैं, एक मैं ही गलत हूँ, मधु तुम तो खुद एक सास हो फिर भी मेरा साथ नहीं दे रही हो। कैसी सहेली हो!” नीलम ने भावुक होते हुए कहा।

“सहेली और सास दोनों ही हूँ, इसीलिए समझा रही हूँ। देखो मेरी बहू की आज परीक्षा है, तो तुम्हें  क्या लगता है कि वह घर का सारा काम भी करे और पढ़ाई भी करे और पास भी हो जाये? नहीं बिलकुल नहीं, मुझे कहीं न कहीं तो उसे छूट देनी ही होगी, घर के काम में मदद करनी होगी। नहीं तो मुश्किल है, फिर ये हम सब का फैसला है कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखे, तो साथ तो सभी को देना होगा। ऐसा नहीं कि मुझे कोई परेशानी नहीं होती, पर बात घर में सुकून बनाये रखने की है और वह भी इस बात को समझकर हर संभव सहयोग करती है”, मधु ने समझया।

तभी रमेश जी बोले, “आरव को सँभालने का फैसला भी भी तुम्हारा ही था, वरना अरुण तुम्हारी मदद के लिए आया रखना चाहता था। तब तो तुम पोते को किसी और को देने को तैयार नहीं थीं? रागिनी के ऑफिस से आने के बाद तो तुम एक मिनट के लिए भी उसे नहीं रखतीं। मानता हूँ तुम थक जाती हो, पर क्या ही अच्छा हो जो हम सब इन परेशानियों का हल मिलजुल कर निकालें और हर संडे सब मिलकर काम करें ताकि सब न सिर्फ आराम कर सकें बल्कि साथ में समय भी बिता सकें। शुरू में थोड़ी परेशानी ज़रूर होगी, क्योंकि विचारों को बदलना इतना आसान नहीं होता, पर जमाना बदल रहा है नीलम जी, आप भी बदलाव की बयार का आनंद लीजिये।”

नीलम ने कुछ नहीं कहा, किसी सोच में डूबी थी। शायद आत्ममंथन कर रही थी।

“अच्छा है, खुद की गलतियों को समझना भी ज़रुरी है। फिर शायद वो दोबारा न होगी, रातों-रात चमत्कार तो नहीं होगा, पर आज एक छोटी सी शुरुआत हो ही गयी है। आज नहीं तो कल सुधार भी होगा”, रमेश जी मन ही मन सोच रहे थे।

उधर मधु मुस्कुरा रही थी क्योंकि आज की घटना उसके लिए नई नहीं थी, बस फर्क इतना था कि उस दिन नीलम की जगह वो खुद खड़ी थी और रागिनी की जगह उसकी बहू। वह खुश थी क्योंकि बदलाव अब निश्चित था, बस थोड़ा इंतजार करना था।

(रागिनी के मनोभाव आज की कहानी में सामने नहीं आ पाए क्योंकि उसके शब्दों को दूसरों ने आवाज़ दी, पर एक दिन उसके भावों की अभिव्यक्ति भी जरूर होगी, तब तक के लिए कहानी का आनंद लीजिये)

मूल चित्र : FatCamera from Getty Images Signature via Canva Pro 

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Abhilasha Singh

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