कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कैसे ढूंढें ऐसा काम जो रखे ख्याल आपके कौशल और सपनों का? जुड़िये इस special session पर आज 1.45 को!
इन 5 महिलाओं ने भारतीय संविधान को बनाने में एक अहम भूमिका निभाई, इस संविधान ने हमें मौलिक अधिकार प्रदान किये और ये हमारे लिये एक उपहार स्वरूप है।
अनुवाद : पल्लवी वर्मा
हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। (संविधान सभा स्वयं एक निर्वाचित निकाय थी, जिसमें प्रत्येक राज्य के विधान सभाओं के सदस्य चुने जाते थे।) जबकि हम में से अधिकांश संविधान के प्रमुख सदस्यों से परिचित हैं, इनमें हम ज़्यादातर पुरुष सदस्यों और विशेष रूप से इसके वास्तुकार, डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर की बात करते हैं। हालाँकि, शुरुआत से ही इसमें महिलाओं को शामिल करने का प्रयास किया गया था।
इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर, मैं कुछ प्रसिद्ध महिलाओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं और इन भूली हुई नायिकाओं को, जो इस ऐतिहासिक प्रक्रिया का हिस्सा थीं, श्रद्धांजलि देना चाहती हूँ।
15 जुलाई 1909 को राजामुंदरी में जन्मी, दुर्गाबाई देशमुख की शादी 8 साल की उम्र में, उनके चचेरे भाई से हो गई थी। उन्होंने अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया क्योंकि, वे अपनी शिक्षा पूरा करना चाह रही थीं। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र मे असहयोग आंदोलन और बाद में नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया।
उन्होंने 1936 मे आंध्र महिला सभा की स्थापना की और कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष बनीं। उन्होंने उस समय के मद्रास प्रांत से संविधान सभा में भेजा गया था। वे संसद सदस्य होने के साथ-साथ योजना आयोग भी थीं। साक्षरता के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए, उन्हें 1971 में चौथे नेहरू साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1975 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य, रसूल का जन्म मलेरकोटला के राजसी परिवार में हुआ था। वे अपने पति के साथ मुस्लिम लीग में शामिल हो गईं और 1937 के चुनावों में, संविधान सभा के सदस्य के रूप में, यूपी विधान सभा के लिए चुनी गयीं।
उन्होंने विपक्ष के उप नेता की भूमिका भी निभाई। बाद में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गईं और 1952 में राज्य सभा के सदस्य के रूप में चुनी गईं। वह समाज कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री थीं और 2000 में सामाजिक कार्यों में योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
हंसा मेहता एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह एक शिक्षिका, लेखिका और एक नारीवादी भी थीं जिन्होंने गुजराती में बच्चों की कई किताबें लिखीं और गुलिवर्स ट्रेवल्स सहित कई अंग्रेज़ी कहानियों का अनुवाद किया।
वे 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं। हैदराबाद में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का एक घोषणापत्र प्रस्तावित किया। वे सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य थीं। उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए समानता और न्याय की वकालत की।
सरोजनी नायडू अधिकांश भारतीय पाठकों के लिए एक परिचित नाम है। सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष और भारतीय राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थीं। इंग्लैंड में अध्ययन के दौरान, उन्हें नारियों के मताधिकार अभियान का कुछ अनुभव हुआ, जिसे बाद में भारत के कांग्रेस आंदोलन और महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के लिए इस्तेमाल किया गया था।
उन्होंने अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका सहित कांग्रेस के काम के बारे में बात करने के लिए व्यापक रूप से यात्रा की। उनकी ब्रिटिश-विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें कई बार कारावास मिला और 1931 में गोलमेज़ सम्मेलन के अनिर्णायक दूसरे सत्र के लिए वे गांधीजी के साथ लंदन भी गईं। नायडू को उनकी साहित्यिक दक्षता के कारण जाना जाता है और वे ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
लखनऊ में जन्मीं अमृत कौर भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं और वे दस साल तक इस पद पर रहीं। इंग्लैंड से भारत लौटने के बाद, उन्होने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। 1919 में महात्मा गांधी के साथ उनकी बैठक ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वे कांग्रेस में शामिल हो गईं और 1927 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-स्थापना की। वह बाद में सचिव बनी और अंत में इस सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं।
1930 में दांडी मार्च में भागीदारी के लिए ब्रिटिश राज ने उन्हें कारावास में डाल दिया। उनकी अर्थिक पृष्ठभूमि काफी संपन्न होने के बावजूद, उन्होंने गांधी के आश्रम में आजीवन काम किया और सोलह वर्षों तक उन्होंने उनके सचिव के रूप में भी कार्य किया। यहां तक कि उन्होंने अशिक्षा को कम करने और बाल विवाह की प्रथा और महिलाओं की पर्दा प्रथा को खत्म करने के लिए भी काम किया।
स्वतंत्रता के बाद वे कैबिनेट रैंक रखने वाली पहली महिला थीं। 1950 में वे विश्व स्वास्थ्य सभा की अध्यक्ष चुनी गईं और यह पद संभालने वाली पहली महिला और पहली एशियाई बनीं। उन्होंने चौदह वर्षों तक भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और उनके नेतृत्व में रेड क्रॉस ने कई अग्रणी कार्य किए।
भारत में औसत महिला के लिए राजनीति में भागीदारी हमेशा कठिन रही है। यह उन महिलाओं को याद करने का समय है, जो सभी मानकों से ऊपर रहीं और सार्वजनिक जीवन में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना पायीं।
मूल चित्र : YouTube
An avid reader. An adventurous soul and a risk taker. A feminist to the core
कमला चौधरी के नारीवादी लेखन को आकर्षक और बोल्ड क्यों माना गया?
महिला प्रावधान और 2019 के इलेक्शन मैनिफेस्टो
अम्मू स्वामीनाथन : संविधान सभा में महिला अधिकार को बुलंद करने वाली थीं
महिलायें एवं राजनीति
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!