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मुझे जीना नहीं आया…

सिखाया तो, बहुत कुछ था माँ ने, पर! मुझे अमल करना, नहीं आया! अपने जज़्बातों को, दिल में कैद कर, मुझे मुस्कुराना, नहीं आया!

सिखाया तो, बहुत कुछ था माँ ने, पर! मुझे अमल करना, नहीं आया! अपने जज़्बातों को, दिल में कैद कर, मुझे मुस्कुराना, नहीं आया!

थक गई उम्मीदों पर, खरा  उतरकर,
नहीं आया, गुलाब बन, काँटों में खिलना,
नहीं आया, काँटों में खिलना।

लाड़-प्यार से पली बड़ी थी,
लाड-प्यार से पली बड़ी थी, मैं।
कलियों की तरह, टहनियों से,
अलग होकर, जीना नहीं आया!
अलग होकर, मुझे जीना, नहीं आया!

वो कहते हैं, बेटी है, मेरी!
शायद बेटी शब्द का मतलब, बदल गया,
या फिर, मेरे जज़्बातों को, दिलासा देने,
इन्हें बेटी शब्द का, मरहम मिल गया!

सहे होंगे, इन्होंने भी, पर!
मुझे इनकी तरह,                                                                                                                उम्मीदों भरी पर्वत मालाओं पर,
चढ़ना, नहीं आया!

सिखाया तो, बहुत कुछ था माँ ने, पर!
मुझे अमल करना, नहीं आया!
अपने जज़्बातों को, दिल में कैद कर
मुझे मुस्कुराना नहीं आया!

मुझे इस नई जिंदगी को, जीना नहीं आया!
गले लगाकर, आगे बढ़ना, नहीं आया!
मुझे जीना नहीं आया!

मूल चित्र : Canva

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