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इक शिक्षित नारी अभिशाप है इस समाज में क्योंकि वो नहीं मानती तुम्हारी दकियानूसी सोच को, ललकारती है तुम्हारे पुरूषत्व को, जो नारी और वस्तु में भेद नहीं समझता।
इक शिक्षित नारी अभिशाप है इस समाज में क्योंकि वो नहीं मानती तुम्हारी दकियानूसी सोच को ललकारती है तुम्हारे तथाकथित पुरूषत्व को जो नारी और वस्तु में भेद नहीं समझता।
आघात करती है तुम्हारे अहम पर तुम्हारी प्रतिष्ठा पर इरादों की आंच से पिघला देती है वो बेड़ियाँ जिससे बांध रखा है तुमने उसे सदियों से।
वो जीती है अपने स्वपनों को तुम कटाक्ष करते हो उसकी हर उपलब्धि पर साधते हो निशाना उसके आत्मविश्वास पर प्रहार करते हो उसके चरित्र पर।
वो नहीं दबने देती अपनी आवाज को वो वाद-संवाद-प्रतिवाद करती है और तुम नाम देते हो उसे विवाद का रौंदते हो उसके विचारों को अपने स्वार्थ तले।
फिर उठाती है वो कलम और लिखती है लिख देती है वो सब जो उसे कहने न दिया इक शिक्षित नारी अभिशाप है समाज में…
मूल चित्र : Canva Pro
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