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जब घर गये इस बार, तो सब अधूरा मिला इस बार, सब अधूरा मिला इस बार, न कहा न सुना, बस यूं ही चले गए आप...
जब घर गये इस बार, तो सब अधूरा मिला इस बार, सब अधूरा मिला इस बार, न कहा न सुना, बस यूं ही चले गए आप…
जब घर गये इस बार, तो सब अधूरा मिला इस बार..
चारपाई भी खाली दिखी, और कोने पर पड़ा दिखा अखबार भी इस बार।
न चाय की फरमाइश हुई, और वो रेडियो भी, बंद ही रहा इस बार।
न पौधों को पानी मिला, और न उस मोटर को चलाने का शोर मचा इस बार।
न कहा न सुना, बस यूं ही चले गए आप, ‘पापा’ क्यों यूँ ही चले गए आप।
इसलिए जब घर गये इस बार, तो सब अधूरा मिला इस बार, सब अधूरा मिला इस बार….
(In memory of my father-in-law who passed away a few weeks ago)
Postgraduate in CSE with 10 years experience in academics and corporate industry. On break after birth of my second kid. I love teaching,cooking,reading. Have recently discovered my love for writing articles based on read more...
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