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कुछ लम्हों में ज़िन्दगी!

इस ज़िन्दगी से गिले कम हो जाते हैं, ख्वाबों से दोस्ती हो जाती है। उन लम्हों में खुद को पा जाते हैं और कमी कम हो जाती है।

कुछ लम्हों में ज़िन्दगी साफ़ नज़र आती है,
ऐसा लगता है पारदर्शी सी हो जाती है।

रूह अमन में होती है,सांस धीमी हो जाती है,
शब्द की ज़रुरत नहीं,सोच काफी हो जाती है।

सामान छोटे हो जाते हैं,
सुकून की चाह बड़ी हो जाती है।

लोग खो भी जाते हैं तो,
ज़िन्दगी पूरी हो जाती है।

ज़रुरत छोटी,
चाहत बड़ी हो जाती है।

इस ज़िन्दगी से गिले कम हो जाते हैं,
ख्वाबों से दोस्ती हो जाती है।

उन लम्हों में खुद को पा जाते हैं,
और कमी कम हो जाती है।

इमेज सोर्स : Still from Zindagi Gulzar Hai/YouTube

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Pragya Sugandha

Experimenting with experiences is the mantra of my life. Writing is a passion that helps me channel my emotions and recreate memories, publish points of view and create stories. A self-proclaimed creative soul, I read more...

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