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इंतज़ार

बच्ची की माँ ने कहा "वो तो जा रही है अगर वो हमारे जाने के बाद आये तो कह देना, हमने बहुत देर इंतज़ार किया और चले गए"।

बच्ची की माँ ने कहा “वो तो जा रही है अगर वो हमारे जाने के बाद आये तो कह देना, हमने बहुत देर इंतज़ार किया और चले गए।”

भरी दोपहर थी, यही कोई दो बजे का वक़्त था। खूब सारी झालरों वाली छोटी सी सुनहरी फ्रॉक पहने हुए वो उस प्रांगण में खेल रही थी। कभी दौड़कर, कभी वहाँ खड़े दुपहिया वाहनों और सीढ़ियों पर चढ़-उतर कर। अपनी माँ के सिलाई मशीन वाले छोटे से घर के उलट, उधड़ते रिश्तों की रफूग़री के लिए बनी यह बड़ी सी इमारत उसके लिए तो खेलने की नयी जगह थी। इस दौड़-भाग से उसके माथे और नाक पर पसीने की बूंदें टिमटिमाने लगी थी। भोली सी आँखों में करीने से लगाया काजल आँखों से फिसलकर धूप में लाल हो चुके गालों पर लुढ़कने लगा था। हाथों-पैरों और कपड़ों में थोड़ी धूल लिपट गयी थी। ढाई या तीन बरस की वो बच्ची इस सबसे बेपरवाह थी।

नज़दीक ही, एक टूटी बेंच पर बैठी, उसकी कृशकाय माँ को देखकर लगता था, वो वहाँ होकर भी, वहाँ नहीं थी। वो बेचैनी में बार-बार पहलू बदल रही थी। तभी बच्ची माँ के पास आकर धीरे से बोली “अम्मी, चिज्जी दो ना।” माँ ने प्यार से समझाते हुए कहा-“यहाँ चिज्जी नहीं मिलती है, बस अभी अपने घर चलेंगे, वहाँ चिज्जी दूँगी।”
बच्ची ने मासूमियत से पूछा-“ये किसका घर है!” माँ ने इंकार में सर हिलाकर कहा-“ये किसी का घर नहीं है”।
बच्ची मुँह में एक उँगली दबाए सवालिया नज़रों से माँ का चेहरा देखती रही फिर वहाँ अपने जवाब की जगह और कई सवाल देखकर, पार्किंग में खड़ी गाड़ियों पर चढ़ने-उतरने का खेल जारी रखने चली गयी।

बच्ची की माँ, वहाँ बैठी दूसरी महिलाओं से मुख़ातिब हो बड़बड़ाने लगी-“काम-धंधा छोड़कर ऐसे कब तलक बेठे रहेंगे? सुबह 11 बजे के आये हैं। छोटी बच्ची हे साथ में, भूखे-प्यासे कब तक बेठे रहें?” उन औरतों ने उसकी तरफ़ देखकर एक ठंडी सांस भरी। जो कह रही थी, “और रास्ता भी क्या है, हम सब एक ही कश्ती में सवार हैं!”  बच्ची की माँ खड़ी हो गयी, उसने दफ़्तर के दरवाज़े के सामने जाकर वही बात ज़ोर से दोहराई। थोड़ी देर में अंदर से एक महिला बाहर आयी, पहले उसने सबको मास्क ठीक से लगाने की ताक़ीद की, फिर महिला से पूछा 

“क्या हुआ, पति आया नहीं तुम्हारा?”

महिला ने एक सांस में दोहराया कि “वो 11 बजे से आयी है, पति को कई बार फोन कर चुकी है। वो हर बार कहता है रास्ते में है। कई घंटे बीत गए हैं, अब तक नहीं आया है। लगता है वो नहीं आएगा इसलिए मैं अब जा रही हूँ। मेरी साथ छोटी बच्ची है। बच्ची को भूख लग रही है, उसने खाना नहीं खाया है।”

महिला कर्मचारी ने थोड़ी रुखाई से कहा कि इंतज़ार तो करना पड़ता है। बच्ची की माँ ने कहा “वो तो जा रही है अगर वो हमारे जाने के बाद आये तो कह देना, हमने बहुत देर इंतज़ार किया और चले गए”। महिला कर्मचारी ने कहा-“अरे! थोड़ा रुको अभी, मैं मैडम से पूछकर बताती हूँ।” इधर महिला कर्मचारी दफ्तर के अंदर की ओर मुड़ी, उधर महिला अपनी खेलती हुई बच्ची को गोद में उठाकर बाहर जाने के लिए मुड़ गयी, उसने अपना फैसला ले लिया था। बच्ची ने कौतूहल से पूछा- “घर जा रहे हैं?” माँ ने झुंझलाकर कहा-“ओर नई तो क्या यही रहेंगे?”

आधे मिनिट बाद ही महिला गेट से वापस लौट आयी। उसने मुख्य द्वार की तरफ मुँह किये बिना, हाथ से इशारा करते हुए बताया कि पति दूर से आता दिख गया, इसलिए वह लौट आयी। बच्ची गोद से मचलकर नीचे उतर गई और फिर से खेलने लगी।

तभी एक स्वस्थ दिखने वाला नौजवान, धीमी चाल से एक प्रौढ़ औरत के साथ वहाँ आया। वो औरत, एक हाथ से नौजवान का बाजू थामकर, दूसरे हाथ से उसकी पीठ पर हाथ फिराती जा रही थी, मानो नौजवान बहुत बीमार हो और वो उसे संभाल कर ला रही हो। वो शायद नौजवान की माँ थी। नौजवान, उसके साथ वहीं वेटिंग एरिया में लगी बेंच पर बैठ गया।

महिला कर्मचारी फिर से दफ्तर के दरवाज़े पर आयी और वहीं खड़े रहकर, बाहर बैठे लोगों का मुआयना किया। नौजवान को देखकर गुस्से से बोली-“मास्क क्यों नहीं लगाया तुमने, मास्क लगाओ पहले और तुम तो अच्छे-भले दिख रहे हो, फोन पर तो कह रहे थे कि बुखार आ रहा है, तबियत बहुत खराब है!”
नौजवान से पहले उसकी माँ ने तपाक से जवाब दिया- “हाँ, आ रिया था ना, कोई झूठ थोड़े ही के रिये हैं, अभी बाटल लगवाकर आये हैं।” नौजवान ने सर झुकाकर धीरे से कहा-“आज नहीं, कल आया था बुख़ार।”

“यहाँ आने के नाम पर बुखार आ जाता है लोगों को!” महिला कर्मचारी तंज़ कसते हुए भीतर चली गयी। नौजवान की माँ जालिम दुनिया में मासूम बच्चे की रक्षक वाली मुद्रा में बेटे का बाजू थामकर, लाड़ लुटाने लगी लेकिन बेटे का ध्यान उस पर नहीं था, उसकी नज़रें कुछ ढूँढ रही थीं। तभी उसकी नज़र बच्ची पर पड़ी, उसकी निगाहें शायद बच्ची को ही खोज रहीं थीं। जब उसने बच्ची को पास आने का इशारा किया, तब एक परखने वाली नज़र से बच्ची की माँ की ओर भी देखा, वो बच्ची को उसके पास आने देगी या नहीं। बच्ची की माँ ने अपना चेहरा दूसरी तरफ़ घुमाकर, मौन स्वीकृति दे दी।

बच्ची खेलने में मग्न थी, उसने नौजवान के इशारे पर ध्यान नहीं दिया। नौजवान थोड़ा मायूस हो गया। उसने दोबारा कोशिश की तो बच्ची ने उसकी तरफ देखा, एक पल वो देखती रही जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो, फिर उसकी आँखों में जैसे तारे जगमगा गए हों, वो किलकारी मारकर चिल्लायी -“पापा!” दौड़कर आयी और कलेजे से लिपट गयी। नौजवान ने अपनी माँ के हाथ से अपना बाजू छुड़ाकर बच्ची को गले से लगा लिया। उसके धूल-पसीने से सने माथे और गालों को कई बार चूमा। फिर अपनी माँ के थैले से पानी की बोतल निकालकर बच्ची को पानी पिलाया। बच्ची ने पानी पीकर नौजवान से लिपटते हुए पूछा- “पापा, हमको चिज्जी खाना है, आप जल्दी से घर ले जाओगे ना?” यह सुनकर नौजवान सोच में पड़ गया और उसकी माँ ने तुनक कर मुँह फेर लिया।

मूल चित्र: Dan Gold from Burst

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