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डिग्री से कक्षा 5 पास लेकिन जज़्बे से पीएचडी मिलिए सुधा चाची से

“मेरा यही संदेश है कि महिलाओं को जितना हो सके पढ़ाएं और सशक्त बनाएं” - सुधा पांडे

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“मेरा यही संदेश है कि महिलाओं को जितना हो सके पढ़ाएं और सशक्त बनाएं” – सुधा पांडे

सच ही कहा है किसी ने महिलाओं को अगर खुला आसमान दिया जाए तो उनकी चहचहाहट से पूरे विश्व में गूंज हो सकती है। महिलाओं को सशक्त बनाने एवं उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक कई जनकल्याणकारी योजनाएं चला रहे हैं, उसी को ध्यान में रखते हुये हम आपको आज ऐसी महिला से मिलाने वाले हैं जिनका नाम है सुधा पांडे। वह डिग्री से कक्षा 5 पास है लेकिन जज्बे और जुनून से पीएचडी किए हुए हैं जो अपने बच्चों को आज बेहतर शिक्षा दिला रही हैं, बल्कि अपने गांव वालों को भी बेहतर शिक्षा मुहैया करवा रही हैं और आने वाली पीढ़ी को एक अच्छा भविष्य देने की कोशिश कर रही हैं।

सुधा पांडे जी बताती हैं, “आज मैं सीतापुर जिले की सबसे बड़ी डेयरी किसान हूं और पांच बार नंदबाबा पुरस्कार भी मिल चुका है, लेकिन यह सब ऐसे ही संभव नहीं हो पाया इसके पीछे मैंने बहुत संघर्ष झेला है।”

वह बताती हैं कि “कुछ समय पहले जब मैंने कुछ जानवरों से डेयरी की तरफ कदम बढ़ाया था तब गांव वाले बहुत ताने मारते थे, पति के द्वारा पिटाई मिलती थी। गांव की महिलाएं कहती थी पता नहीं कहां जाती है, क्या करती है, दुनिया भर का प्रपंच बनाती थी। पति के कान भरती थी कि ‘ये महिला पति को घुटनों के समान मानती है’ बहुत प्रकार की बातें बनाते थे। लेकिन आज जब मुझे गांव के किसी भी फ़ैसले में निर्णय लेने के लिए बुलाया जाता हैं तो उन्ही प्रपंच बनाने वाली महिलाओं के मुंह पे तमाचा पड़ता है।”

आगे सुधा पांडे बताती है कि “आज भी मैं 4:00 बजे सुबह उठ जाती हूं। पहले मैं 3:00 बजे उठा करती थी पूरे परिवार के साथ में और सारा काम करती हूं चाहे कोई मजदूर मेरी सहायता ना भी करे तो भी मैं पूरा काम करने की हिम्मत रखती हूं और मैं पूरा काम कर डालती हूं जैसे चारा हो जानवरों का, भूसा हो, घास काटनी हो या साफ सफाई हो, सारा काम मैं खुद ही कर डालती हूं।

लोगों को मैं संदेश देना चाहती हूं कि महिलाओं को सशक्त बनाए, पुरुष भी आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो और मैं अपने गांव में बहुत सारी महिलाओं को शिक्षित भी कर रही हूं क्योंकि मैं जब मै ब्याह करके आई थी तो मैं कक्षा 5 पास थी लेकिन बाद में मैंने बी.ए. किया है। तो मैं सभी महिलाओं से गुजारिश करती हूं कि सभी पढ़े व अपने बच्चों को खूब पढ़ाएं समाज में बदलाव लाने के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है, और मैं गोबर पे लगी हुई हूं कि कैसे भी करके मैं गोबर को बेचना चाहती हूं क्योंकि जब से जानवरों का मार्केट में बिकना बंद हो गया है तब से उनकी कीमत कूड़ा करकट हो गई है, तो मैं चाहती हूं कि गोबर की कीमत हो जाए जिस दिन गोबर की कीमत हो जायेगी तो उस दिन से कोई भी जानवर घूमता हुआ नहीं पाया जाएगा।

लॉकडाउन के समय में बहुत से लोगों को गांव में दिक्कत का सामना करना पड़ा, लेकिन मेरे घर में हमारा दूध ही हमारा बैंक बैलेंस था और नोटबंदी के समय में भी हमारा दूध जो था हमारा बैंक था और बहुत सी महिलाएं इससे लाभ प्राप्त कर रही हैं।

तो मेरा यही संदेश है कि महिलाओं को जितना हो सके पढ़ाएं और सशक्त बनाएं, मेरे पीछे कोई भी हिम्मत देने वाला नहीं था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अवार्ड मिलेंगे पुरस्कार मिलेंगे लेकिन मैंने कर दिखाया क्योंकि मेरे पीछे मेहनत का हाथ था। संघर्ष जीवन का एक अंग है बिना संघर्ष के जीवन नहीं तो संघर्ष से कभी मत घबराइए हमेशा समस्या के समाधान के बारे में सोचिए।”

मूल चित्र: via youtube ( for representational purpose only) 

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