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चलो एक काम करते हैं, परीक्षा तुम्हारी लेते हैं! क्या दे पाओगे? बोलो कुछ तो बोलो, यूँ न हारो, डरो नहीं, मेरा भरोसा तुम्हें हारने न देगा, आखिर...
चलो एक काम करते हैं, परीक्षा तुम्हारी लेते हैं! क्या दे पाओगे? बोलो कुछ तो बोलो, यूँ न हारो, डरो नहीं, मेरा भरोसा तुम्हें हारने न देगा, आखिर…
परीक्षा से डरना मेरी फितरत नहीं, मैं स्त्री हूँ, मेरा तो जीवन ही परीक्षा है!
जन्म पाने से जन्म देने की, अपनी जीत को हराने की, तुम्हारी हार पर विश्वास की, ज़ुल्म चुपचाप सहने की, तुम्हें क्षमा करने की, अश़्क पी कर मुस्कुराने की, अंजान रिश्ते में बँधने की, अपने भरोसे की, मैंने तो अग्नि परीक्षा तक दी है।
और तो और… कटे परों से आसमान छुआ है!
तुम केवल घर चलाने की परीक्षा देते हो, हाँ… उत्तीर्ण भी हो ही जाते हो, पर कभी सोचा है… अगर मैं घर बनाने की परीक्षा में फेल हो जाऊँ, मैं रिश्तों में बँध ही न पाऊँ, तुम्हें क्षमा न करूं?
हाँ… जन्म ही न दूँ? तो तुम्हारी परीक्षा का क्या मोल रहेगा, किताबी ज्ञान कितना काम आयेगा?
चलो एक काम करते हैं… परीक्षा तुम्हारी लेते हैं, तुम्हारी वफ़ा की परीक्षा, मुझे क्वालिटी समय देने की परीक्षा, मुझे सम्मान देने की परीक्षा, मुझे भोग्य नहीं योग्य समझने की, मेरे सपनों को साकार करने की परीक्षा मुझे मैं रहने देने की परीक्षा।
क्या दे पाओगे? बोलो कुछ तो बोलो? यूँ न हारो, परीक्षण स्थल तक तो चलो? डरो नहीं, मेरा भरोसा तुम्हें हारने न देगा! आखिर… तुम्हारी इसी जीत में, मेरी जीत भी छिपी है, …हमारी जीत छिपी है।
मूल चित्र : Unsplash
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