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काफ़ी दूर है मेरी मंज़िल, कदमों से उस फासले को मिटाने दो। कश्ती लगी है किनारे, मुझे उतर जाने दो।
कश्ती लगी है किनारे, मुझे उतर जाने दो।
कहीं दरिया में सैलाब न आ जाये,
बहा के मेरे अरमानो का जनाज़ा अपने साथ न ले जायें।
काफ़ी दूर है मेरी मंज़िल,
कदमों से उस फासले को मिटाने दो।
मूल चित्र : Pexels
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