कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अच्छा तो आप अकेले रहते हो! आखिर एक औरत कैसै रह सकती है बिना पति के?

हम औरतें ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं और उन्हें किसी भी बात से ताना मारने से नहीं चूकतीं। अकेली हूँ लेकिन असहाय नहीं।

हम औरतें ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं और उन्हें किसी भी बात से ताना मारने से नहीं चूकतीं। अकेली हूँ लेकिन असहाय नहीं।

‘आप क्या अकेले रहते हो?’ चौंकने वाली आवाज में।

‘ओह आप अकेले रहते हो!’ दुख भरी आवाज में।

‘अच्छा तो आप अकेले रहते हो!’ भौंहें ऊपर उठी हुईं।

अक्सर मुझसे यह सवाल पूछते हैं मेरे अपार्टमेंट के लोग ख़ासकर के महिलाएँ। मेरे पति यहां काम नहीं करते हैं, देश के बाहर काम करते हैं। मैं यहां अपनी बेटी के साथ अकेले रहती हूं। कल हमारे अपार्टमेंट में सरस्वती पूजा थी। वहाँ सारी महिलाएं बैठी हुईं थीं। मैं भी अपनी बेटी को लेकर वहां गई, पूजा करने के लिए।

उनमें से एक ने मुझसे पूछा, ‘आपके हस्बंड कहाँ रहते हैं?’

उनके पूछने का अंदाज कुछ ऐसा था जैसे कि उन्होंने मुझे यहां छोड़ रखा है और वहां पर मज़े कर रहे हों।

मैंने कहा, ‘वह दुबई में काम करते हैं।’

‘अच्छा’!’ बड़ी ही अजीब तरीके से उन्होंने यह बात कही।

‘आप अकेले रहते हो ? बड़ी मुश्किल होती होगी ना सब कुछ संभालने में अकेले? आखिर एक औरत कैसै रह सकती है बिना पति के? बताइए?’

मैंने पलट कर बहुत ही धीरे, लेकिन मेरी आवाज़ में एक दम था, कहा ‘अब भाभी जी मैं हर बात तो आपको नहीं बता सकती ना। वो तो हस्बंड-वाइफ की पर्सनल बात है ना। वह क्यों गए, मैं यहां क्यों हूं, क्या हुआ, क्या नहीं, यह मैं आपको बता कर क्या करूं? मैं तो आपसे नहीं पूछती कि इस समय आपके हसबंड आपके पास क्यों नहीं बैठे? आपकी बेटी आपसे ठीक से बात क्यों नहीं करती?’

‘अक्सर आपकी घर से चिल्लाने, रोने-धोने की आवाज़ क्यों आती है? काश, एक औरत होने के नाते आपने यह समझा होता कि मुझे आप सबके साथ की जरूरत है। काश, आप ने यह कहा होता कि बहन अगर कुछ ज़रुरत हो तो हमें बुला लेना। अपने आप को अकेला मत समझना।’

‘लेकिन सबसे ज़्यादा दुख की बात तो यह है कि हम औरतें ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं और उन्हें किसी भी बात से ताना मारने से नहीं चूकतीं। अकेली हूं लेकिन असहाय नहीं।’

‘क्या बिना मर्द के एक औरत अपनी जिंदगी नहीं गुज़ार सकती है?’ यह सुनकर उनकी आंखें नीचे हो गईं। मैंने वहां पर पूजा की और मैं घर आ गई।

दरवाजा बंद किया ही था कि डोर बेल की आवाज आई। दरवाज़ा खोला तो देखा कि वही आंटी जी खड़ी हुई थीं और उनके साथ अपार्टमेंट की और भी महिलाएं थी। उन्होंने कहा, ‘बेटा हमें माफ कर दो। तुमने ठीक कहा, हम औरतों को ही औरतों का साथ देना चाहिए, तभी ही हम सब मज़बूत हो सकते हैं।’

‘कुछ भी, कभी भी ज़रुरत हो, तो बेझिझक हमारे पास आ जाना।’

मूलचित्र : Pexel

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