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यूँ मुझे छोड़ के ना जा

काश, तीस साल की उम्र के बाद, हर साल मेडिकल चेकअप की भी प्लानिंग कर ली होती। पर कभी सोचा ही नहीं मेरे साथ भी कुछ बुरा होगा।

काश, तीस साल की उम्र के बाद, हर साल मेडिकल चेकअप की भी प्लानिंग कर ली होती। पर कभी सोचा ही नहीं मेरे साथ भी कुछ बुरा होगा।

“सुनिए, दो साल से कह रही हूँ माता के दरबार जाना है पर आपको तो काम से ही फुर्सत नहीं है। अगले महीने लॉन्ग वीकेंड है और मुझे वैष्णो देवी जाना है। आप टिकट बुक करवा दीजिए।” स्वाति ने अपने पति से कहा। राहुल लैपटॉप पर काम कर रहा था। “अरे हाँ यार करवा दूँगा। अब प्लीज़ मैं अपना काम कर लूँ?” राहुल ने भी स्वाति को चुप कराने के लिए कह दिया।

राहुल और स्वाति की शादी को ग्यारह साल हो गए थे। एक बेटी और एक बेटा भी थे, पर दोनों को देखकर लगता ही नहीं था कि यह दो बच्चों के माँ-बाप बन गए हैं। स्वाति ३४ वर्ष की आयु में भी एक बच्ची जैसी थी और राहुल शुरू से ही गंभीर स्वभाव का। दोनों विपरीत स्वभाव के थे। स्वाति का बात-बात पर रूठ जाना और राहुल का उसे मनाना। पर दोनों, एक दूसरे के बिना एक पल ना रह पाते थे। स्वाति कभी मायके जाती, तो राहुल तय समय से पहले ही उसे लेने पहुंच जाता। स्वाति मायके में भी अपने पति से दूर न रह पाती।

राहुल अपने गंभीर स्वभाव के कारण कभी प्यार का इज़हार नहीं करता था, पर उसकी हर बात से स्वाति के लिए उसका प्यार झलकता था। स्वाति को भी राहुल के  शब्दों की कभी ज़रुरत नहीं पड़ी। वो अच्छे से जानती थी कि राहुल उसे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करता है। ग्यारह साल बाद अब उनकी लड़ाई आधे घंटे से ज़्यादा  नहीं चलती।

राहुल और स्वाति की बेटी बिल्कुल अपने पापा जैसी थी, गंभीर स्वभाव की धनी। और बेटा, अपनी मां की कार्बन कॉपी, शैतान और बदमाश भी। राहुल बहुत बार मजाक में स्वाति से कहता, “दो बच्चे तो संभल जाते पर तीन-तीन बच्चे ना।” और दोनों, बस खिलखिला के हँसने लगते।

ऐसा लगता था, राहुल और स्वाति की जोड़ी भगवान की बनाई सबसे प्यारी जोड़ी हो। राहुल एक सॉफ्टवेयर कंपनी में मैनेजर था और स्वाति भी अब बड़े अंतराल के बाद स्कूल में काम करने लगी थी। दोनों रोज़ भगवान से पूजा  प्रार्थना करते थे। स्वाति काफी धार्मिक थी और स्वाति को देख-देख कर अब राहुल, स्वाति से एक कदम आगे बढ़कर पूजा-पाठ करता।

भगवान की कृपा से सब ठीक चल रहा था। छोटा सा परिवार बहुत खुश था। पर जल्द ही उनकी खुशियों को शायद किसी की बुरी नज़र लग गई।

एक दिन स्वाति सुबह स्कूल के लिए तैयार हो रही थी तो उसने देखा कि उसके राइट ब्रेस्ट में एक गांठ सी है। पर स्वाति ने इस बात को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया क्योंकि थोड़े दिन में स्वाति और राहुल को एक शादी में दिल्ली जाना था। स्वाति नहीं चाहती थी कि राहुल अभी किसी चिंता में पड़े। और, इससे भी ज़्यादा, उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी। स्वाति ने राहुल को यह बताने में थोड़े दिन का परहेज़ किया।

स्वाति ने लाल रंग की बनारसी कामदार साड़ी खरीदी। राहुल ने अपना शादी वाला सूट पहना। दोनों सामान्य से दिखते थे। ना स्वाति बहुत खूबसूरत थी, ना तीखे नैन- नक्श थे, हाँ गोरी ज़रूर थी। और राहुल भी साँवला और लम्बा था। पर साथ खड़े होते थे तो राम-सीता की जोड़ी लगती थी। खैर, विवाह संपन्न हुआ और राहुल और स्वाति अपने घर आ गए।

स्वाति ने अब भी राहुल को कुछ नहीं बताया। डेढ़ महीने बाद स्वाति ने बहुत हिम्मत करके राहुल को जब अपनी गांठ के बारे में बताया, तो राहुल स्वाति पर बहुत  चिल्लाया, “इतने दिन से क्यों कुछ नहीं कहा? क्यों छुपा के रखा? जानती नहीं हो इसका क्या मतलब हो सकता है?” राहुल के शब्द ज़ुबान पर आकर रुक गए। राहुल दो मिनट के लिए बिल्कुल बेचैन हो गया। उसे अपना संसार उजड़ता हुआ लग रहा था। पर जल्द ही उसने खुद को संभाला और स्वाति को तैयार होने को कहा। राहुल ने ऑफिस से छुट्टी ली और दोनों तुरंत अस्पताल गए। बहुत देर के बाद उनकी बारी आई। डॉक्टर ने स्वाति को चेक किया और कुछ टेस्ट लिख दिए और कहा, “रिपोर्ट आने में सात से दस दिन तक का समय लग सकता है। मैं अभी कुछ नहीं बोल सकती। रिपोर्ट देखने के बाद ही कुछ कहूंगी।”

दो महीने बाद-

गोरी, लंबी, लंबे बालों वाली स्वाति अब एकदम नाज़ुक सी हो गई थी। रंग थोड़ा सांवला हो गया था। आंखो के नीचे काले गढ़े हो गए थे। सर पर बाल नहीं रहे। बहुत धीरे-धीरे अब काम करती थी। और राहुल, वह तो अब किसी से बात नहीं करता था। ना खाना ठीक से खाता था, पर स्वाति और बच्चों के सामने सामान्य होने का  ढोंग करता था। रोज़ रात को छत पर जाकर राहुल ज़ोर-ज़ोर से रोता। स्वाति छुप-छुप के उसे देखती, फिर ख़ुद कमरे में चली जाती और सोने का नाटक करती। दोनों एक-दूसरे को हौसला देते थे। एक-दूसरे के सामने, ‘सब ठीक होगा’, इसका दिलासा देते थे। पर दोनों ही अंदर से टूट चुके थे। जी भर रोने के बाद, राहुल स्वाति के पास आ के उससे लिपट के सो जाता। दोनों बिना कुछ बोले एक दूसरे से चिपके रहते पर एक शब्द ना बोलते। सुबह होते ही पहले की तरह दोनों मिल के बच्चों को प्यार से उठाते। बिस्तर पर पड़े-पड़े ही चारों मस्ती करते। दोनों मिल के बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते।

बच्चे भी कुछ देर के लिए भूल जाते सब कुछ, क्यूंकि माँ- बाप का दुःख उन्हें दिख रहा था। बच्चों को आभास था कि घर में कुछ बहुत गलत हो रहा है। उनकी माँ अब पहले जैसी नहीं रही। राहुल अब पूजा नहीं करता था। क्यूंकि भगवान का सबसे सुंदर उपहार तो भगवान उससे छीन रहे थे ना। स्वाति उससे पूजा करने को कहती तो राहुल कुछ बहाना बना देता। स्वाति से वो कितना ज़्यादा प्यार करता था ये तो वो ख़ुद भी नहीं जनता था। घर में नौकरानी लगा दी थी जो कि घर के सारे काम करती और बच्चों की भी देखभाल करती थी। स्वाति की बेटी कोशिश करती की कम से कम उसका भाई खुश रहे। अपने छोटे भाई का ध्यान वह अपनी माँ  की तरह रखती।

स्वाति को ब्रेस्ट कैंसर था। उसका ऑपरेशन हो गया था और दो कीमोथेरेपी भी हो चुकी थी। तीसरी कीमोथेरेपी से पहले अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी स्वाति  सोच रही थी, “अगर मुझे कुछ हो गया तो राहुल और बच्चों का क्या होगा?” स्वाति ये सब सोच के, बिना मरे ही मर जाती। घुट-घुट के उसका बुरा हाल था।

“मेरे बच्चे मेरे बिना कैसे जिएंगे? अभी तो वह बहुत छोटे हैं। और राहुल! वह तो अपनी हर ज़रुरत के लिए मेरे पर निर्भर करते हैं। अभी तो जिंदगी में बहुत कुछ करना बाकी था। राहुल और मैंने हर चीज की प्लानिंग करी। बच्चों को कौन से स्कूल में पढ़ाना है, स्कूल के बाद उन्हें कौन से कॉलेज में दाखिला दिलवाएंगे। अपना बुढ़ापा कहां बिताएंगे। रिटायरमेंट के बाद की प्लानिंग। हर चीज की तो प्लानिंग करी। घर कहां बनाना है, रिटायरमेंट के बाद राहुल और मैं कैसे अपना जीवन यापन करेंगे। हर चीज़ की तो प्लानिंग करी हमने।”

“काश, तीस साल की उम्र के बाद, हर साल मेडिकल चेकअप की भी प्लानिंग कर ली होती। पर कभी सोचा ही नहीं मेरे साथ भी कुछ बुरा होगा। मुझे भी ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है। काश, मैंने पहले सोचा होता। क्यों मैंने ध्यान नहीं दिया, जबकि मुझे पता था कि मेरी प्यारी मौसी की मौत की वजह कैंसर ही थी। मुझे पता था कि कैंसर की मुख्य वजह जेनेटिक्स है।”

दोस्तो, स्वाति बहुत लकी थी कि ऑपरेशन, कीमोथेरेपी और रेडिएशन के बाद ठीक हो गई और शायद अपने परिवार के प्यार और दुआओं के कारण भी। वह अपनी जिंदगी सामान्य तरीके से जीने लग गई। उनकी जिंदगी में तूफ़ान आया तो सही, पर सब कुछ उजाड़ ना सका। तूफ़ान सब कुछ उजाड़ सके, इससे पहले ही उन्हें पता चल गया।

मेरा यह ब्लॉग ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाने की दृष्टि से लिखा गया है। तीस साल के बाद सभी औरतों को अपना इयरली मेडिकल चेकअप ज़रूर करवाना चाहिए। ब्रेस्ट कैंसर एक ऐसा रोग है जो अगर जल्दी डिटेक्ट हो जाए तो उसका इलाज संभव है।

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