पर तुम पुरुष हो ना, तुम स्वीकार थोड़े ना करोगे

तुम मेरी फ़िक्र करो, ना करो, मेरे रहते घर से बेफिक्र हो तुम, जानती हूँ मैं, और मानते हो तुम भी, पर पुरुष हो ना, स्वीकार थोड़े ना करोगे।  जानती हूँ मैं, और भीतर ही भीतर मानते हो तुम भी, कि सच्ची हितैषी हूँ तुम्हारी, पर पुरुष हो ना, स्वीकार थोड़े ना करोगे… मैं पुरुष … पर तुम पुरुष हो ना, तुम स्वीकार थोड़े ना करोगे को पढ़ना जारी रखें