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इक दिन सुनेंगे सब, मेरे शब्दों की गूँज और मेरी आवाज़ की ख़नक!

ये तो बस मेरे शब्दों की गूँज थी, मौका मिले तो, कभी सुनाऊँगी, अपनी आवाज़ की खनक को, मैं तो बस यूँ ही लिख देती हूँ, मेरे लेखन में भी एक सबक है!

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तलाश में अपने अस्तित्व के अब तुझे ख़ुद ही निकलना है!

चाहे रास्ते में कांटे हो हज़ार, लोग तम्हें हर मोड़ पर गिराने को हो तैयार, तुम्हें बस अपने काबिल बनना है, गिरने के बाद खुद संभालना है। 

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‘माँ’ के साथ-साथ अपने ‘मैं’ को ज़िंदा रखने का हुनर मैंने आशा से सीखा

आशा का 'माँ' से 'मैं' तक का सफ़र छोटा नहीं था। पूरी ज़िंदगी बीत गयी थी खुद के अन्दर के 'मैं' को पहचान दिलवाने में, अपने अस्तित्व को तलाशने में।

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क्यों नहीं नारी अपने लिए सजती सँवरती?क्यों नारी स्वार्थपरता नहीं अपनाती?

१२ साल से शिव को पाने के लिए अनेकों निर्जल व्रतों के कठिन नियम मानते-मानते इस बार मेरे मन में ये प्रेरणा आई कि क्यों न मैं ये सारे व्रत सिर्फ अपने लिए रखूँ।

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पायल, चुनरी, चूड़ी को तू अब अपनी आवाज़ बना!

मत देख उन उँगलियों को जो उठती तेरी तरफ हैं, पायल को तू अपना श्रृंगार बना, चूड़ी को तू अपनी आवाज़ बना, न बनने दे बंधन उसे क्योंकि नारी तू बस नारी नहीं। 

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नए माहौल में अपनी पहचान कैसे बनानी है, इसका फैसला हमसे से बढ़ कर कोई नहीं कर सकता!

अगर तुम उनके बिना खुशी से अपनी ज़िन्दगी गुज़ार सकती हो तो यहां वापस आ जाओ और अगर उनके बिना नहीं रह सकती तो वहीं रहकर अपनी जगह बनाओ।

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