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घरेलु हिंसा – रिश्ते की ऊँच-नीच, एक ढका-छुपा सच

घरेलु हिंसा एक सच है, और आश्चर्य यह कि हिंसा करने वाला दोषी तक नहीं समझा जाता और सहने वाला शर्मिंदगी में घुलता चला जाता है। 

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प्यार और अपनेपन से, दिल की डोर दिल तक

उम्मीद नहीं थी कि नील फोन पर अपनी पसंद की लड़की को चुनकर, उसके सामने रिश्ते का प्रस्ताव ले आएगा। सुजाता के लिये ये एक बहुत बड़ा धक्का था।

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बांझपन के लिए केवल औरत ही दोषी है ?

इस समाज में बांझपन के लिए क्या अकेली औरत ही दोषी है? साथ ही साथ यह भी सोचा जाना चाहिए कि क्या औरत ही औरत की दुश्मन हो सकती है?

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परिवार की अहमियत – दूरियाँ नज़दीकियाँ बन गईं

रमेश को ये जिंदगी ज़्यादा अच्छी लगने लगी। उसने रेखा से कहा, "अब तो सब ठीक हो गया है। अब तो अपने घर चलो।"

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घरेलू हिंसा : पितृसत्तात्मक समाज का प्रभाव? एक हिस्सा?

घरेलु हिंसा के ज़्यादातर मामले घर की चारदीवारी से बाहर नहीं आते। जब घरेलू मामले घरेलू बनकर अपना गला घोंट दें, तो कानून सिर्फ कानून बनकर रह जाते हैं। 

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महिलाओं के आपसी सहयोग से बदली गाँव ग्वाडिया की तस्वीर

गांव ग्वाडिया की महिलाओं के आपसी सहयोग से परिस्थितियों में परिवर्तन लाने की कोशिश यूँ कामयाब रही। 

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