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भारत की पहली नेत्रहीन आईएएस ऑफ़िसर के तौर पर, प्रांजल पाटिल महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं। यह है उनके आगे बढ़ने और आसमाँ को छूने की कहानी!
चाहे रास्ते में कांटे हो हज़ार, लोग तम्हें हर मोड़ पर गिराने को हो तैयार, तुम्हें बस अपने काबिल बनना है, गिरने के बाद खुद संभालना है।
आशा का 'माँ' से 'मैं' तक का सफ़र छोटा नहीं था। पूरी ज़िंदगी बीत गयी थी खुद के अन्दर के 'मैं' को पहचान दिलवाने में, अपने अस्तित्व को तलाशने में।
टूट गयी जो गुड़िया वक़्त के आघात से, उसको फिर से गढ़कर नयी सी कर रही हूँ, समय को बदलकरसाथ समय के चल रही हूँ, ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ।
चंदर आपके दिए खाने की भीख या दया को मेहनत की कमाई में बदल रहा है। उसके सम्मान की दौड़ में मेरे जूते उसे जीत दिलाएंगे। आप उसे ये जूते दे दो।
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