कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हम औरतें भी ना कैसी कैसी धारणा बना लेती हैं कि यदि हमारी शादी हो गई है, हमारी मांग में सिंदूर, माथे पर लगी बिंदी को देखकर कोई भी हमारा बुरा नहीं कर सकता।
हमारा इंटरेस्ट तो फिल्मी हस्तियों पर ज़्यादा है, उनकी बातें हमें इफ़ेक्ट करती हैं। नेताओं और ढोंगी बाबाओं की बातें प्रभावित करती हैं। मृत समाज है हमारा।
बस करो अब! बंद करो अब हमें जज करना, हमारे नेचर से हमारे करैक्टर को जज करना, हमारे पहनावे से हमारे ज़मीर को जज करना बंद करो!
शर्मिंदगी और हार का दर्द, बेबसी, घृणा और क्रोध जो भीतर कढ़ कर ज़हर बन गया है, मुझे हर नर में एक गिद्ध नज़र आता है, नारी में मांस का लोथड़ा, बस और कुछ नहीं
"कितने नादान हो कि जानते भी नहीं कि लांघ कर तुम्हारी सारी लक्ष्मण रेखाओं को...ध्वस्त कर तुम्हारे अहं की लंका, कब से घुल चुका है वो उल्लास इन हवाओं में..."
क्या सब उस छठे आरोपी, जो अब नाबालिग नहीं रहा, के अगले अपराध का इन्तज़ार कर रहे हैं? फिर उसके बाद ही उसे सजा देंगे? यही न्याय है क्या?
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