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बुद्धिमती, कर्मठ प्रयत्नशील नारी शक्ति हो तुम, अंतरिक्ष में उड़ने वाली कल्पना चावला हो तुम - नारी एक, रूप अनेक की परिकल्पना को पूर्ण करती है ये सुंदर कविता।
अपनी ताकत का भी करना पड़ता है प्रदर्शन, जब दुश्मन अपने इरादों से बाज ना आए, जब गलतियां बढ़ अपराध बन जाए, शक्ति से कर पथ प्रदर्शन विनय भाव का!
एक नया आशियाँ अब उसने भी बनाया है, मंजिलों की राहों को छोड़ कर, यूँ ही चलते चलते अब इन राहों पर ज़िंदगी जीने के नए बहाने मिल गए हैं।
ऐसा नहीं है कि मैं दोबारा जन्म नहीं लेना चाहती पर इस बार मेरी अपनी कुछ शर्तें होंगी, क्या आप इन्हें मानने के लिए तैयार हैं?
इतिहास गवाह है कई उदाहरण हैं, नारी हर क्षेत्र में आगे बढ़ी है, उनकी वीर गाथायें असाधारण हैं, पहले भी थी मुश्किलें कुछ अब भी खड़ी हैं।
मैं ही तो वह कुंजी हूँ, जो घर आँगन महकाऊँ, पर मेरे भी, कुछ सपने हैं, जिनका तुम सम्मान करो, सिर्फ औरत ही क्यों करे समर्पण, तुम भी कुछ योग्यदान दो।
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