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स्वाति के पतिदेव रवि भी अपने मामा, मामी, मौसा, मौसी की ही बातें करते, पर भूल कर भी कोई ससुरजी के भाई बहनों की बातें न करता।
“अरे माँ! बड़े घर की बेटी है, काम करने की आदत नहीं है उसको। कई नौकर चाकर थे उसके यहाँ। मैं ऐसा करता हूँ कि एक मेड रख देता हूँ।”
"माँ सही कहती हैं कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए। और तुम बुआ जी की बातों पर ध्यान मत दो।" साहिल की इस बात से सब सहमत थे।
"बेचारा मेरा बेटा, दिन भर बच्चों से परेशान रहता है। बहुत थक जाता है बहू। रात को ज़रा इसके पैरों की मालिश तो कर देना।"
वैसे आप दोनों तो काफ़ी पढ़े-लिखे दिखते हैं, आपसे तो ऐसी भाषा सीखी नहीं होगी, क्यों?" उन्होंने दोनों के चेहरे को व्यंग्यात्मक मुस्कान से देखा।
अमिता शैलजा से अपने दिल का सारा हाल बयां कर देती और बाद में शैलजा अमिता की सारी बातें चटकारे ले लेकर ऑफिस को बताती।
शादी के बाद शैली जब भी पति संग ससुराल जाती तो सास उसके रंग-रूप का मखौल भी उड़ाती और अब तो छोटी बहू भी आ गई थी।
ज़ुबैदा को ऐसा लगता था कि उसके सपनों को पंख मिल जाएंगे, पर ऐसा हो न सका। पंख तो उस को मिल गए पर उड़ने की आज़ादी नहीं मिल पायी।
रेखा की आँखों से नींद कोसों दूर थी, रात के क़रीब एक बज चुके थे लेकिन रेखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
क्यों बहू मेड की क्या ज़रुरत है? वैसे हम कुल मिलाकर चार लोग ही तो हैं और हाँ हम मेड के हाथों का बना हुआ खाना नहीं खा सकते।
संयम को माँ-बाप समझाते तो उल्टा वो उन्हें समझाने लग जाता कि आजकल की लड़कियाँ कितनी तेज़ होती हैं और किस तरह उन्हें क़ाबू में रखना चाहिए।
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