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दिल में जज़्बात थे अपनी पहचान बनाऊं... अपनी कलम को अपनी आवाज़ बनाऊं...✍️
आज सुप्रिया और अविनाश को एकांत में देखा तो राधा से भी रहा ना गया। पलों को एकांत में बिताने को सोच वो उत्पल के पास गई।
ये तो बता कोई पसंद किया या तेरे लिए किसी बुड्ढे को देखूं? क्योंकि जवान तो तू रही नहीं। तीस की हो चली, पता नहीं कब शादी करेगी।
डाक्टर रत्ना काफी गंभीर होकर कमरे की तरफ़ इशारा करती हैं। राधे अपनी पत्नी की आंखों में आसूं देख समझ नहीं पाता।
क्षितिज में डूबता सूरज देख, शाम होते ही मां तेरी याद आई। अपलक निहारती रहूं तुझे मां, दिल में छटपटाहट सी आई। शाम होते मां तेरी याद आई...
सविता जी का तो अब पारा सातवें आसमान पर था। उन्होंने सुधा से बदला लेने की सोची और जल्द ही उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया।
कासे कहूं अपनी ये बात, सांवरे ना हो सके मोरे आज, बंसी की धुन से जगाई जो आस, रह गई बस सांस में वो आस। कर दो इस जोगन की पूरी अरदास...
शुरुआत करते हैं नये सहर की, भुलाकर पुराने यादों के पहर की। पुराने ख्वाब को खुद से भुलाकर, आज ख़ुद से नई मुलाकात करते हैं...
क्या मम्मी, तुम भी किस गंवार को क्या समझा रही हो? एक हफ्ता हो गया समझाते हुए इस बात को उसको, अभी तक कुछ भी समझ में आया?
पूरी तबीयत के साथ ठूँसे हुए गुटखे को निगलते हुए मैनेजर साहब बोले, "कल मैडम जी इन्वाईटेड हैं। विदेश से आ रही हैं, कल हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में बोलेंगी।"
शादी में सुभ्रदा कहती हैं, "मैं अच्छे से जानती हूं इन तलाकशुदा औरतों को, खुद का घर बसता नहीं और दुसरों का घर तोड़ने में लगी रहती हैं।"
क्या आवाज़ है और रंग-रूप में तो किसी भी नई हीरोइन को मात दे सकती है। चाल तो ऐसी कि इसके आगे अच्छे-अच्छे फेल हो जायें।
हमें शादी में कोई कमी नहीं चाहिए। सगाई की तैयारियां तो बिल्कुल भिखारियों की तरह करी थीं। नाक कटवा दी थी हमारी बिरादरी में तुम लोगों ने...
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