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Smithing words, in forge of thoughts.
जली थी मैं भी कहीं-कहीं उस आग में, जो सब ने तुम पर बरसाई थी, उस आग की झुलस से काश मैं उन्हें भी जला पाती, और लिपटा कर तुम्हें खुद से, तुम्हें छुपा पाती...
बस एक झलक ही दिख पाती है अश्रु धारा में, तोड़ के वह बांध चलो तुमको भी कुछ नहला दूं और बन के एक धारा खुद को भी बहने दूं या हर बार की तरह इस बार भी रहने दूं?
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