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Raashi Katara

Smithing words, in forge of thoughts.

Voice of Raashi Katara

एक श्रद्धांजलि – हाँ! आज मैं शर्मिंदा हूं खुद से!

जली थी मैं भी कहीं-कहीं उस आग में, जो सब ने तुम पर बरसाई थी, उस आग की झुलस से काश मैं उन्हें भी जला पाती, और लिपटा कर तुम्हें खुद से, तुम्हें छुपा पाती...

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क्या इस बार भी रहने दूं?

बस एक झलक ही दिख पाती है अश्रु धारा में, तोड़ के वह बांध चलो तुमको भी कुछ नहला दूं और बन के एक धारा खुद को भी बहने दूं या हर बार की तरह इस बार भी रहने दूं?

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