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An ordinary girl who dreams
रिंकी को मम्मी की धड़कन महसूस हो रही थी। दिल का एक हिस्सा जैसे टूट रहा हो अंदर और चेहरे पर जाने कौन सी शक्ति ले कर बैठी थीं।
बचपन के दिन केवल सुहाने नहीं होते हैं , बचपन का अल्हड़पन बयां करती कविता।
जीवन में शून्य हो कर भी जीवन में खुश रहने की महत्ता सिखाती कविता
औरों को लगा तू खुशकिस्मत है, पर तेरी किताब में लिखा क्या था?
"आपकी तरह मेरे पास भी कोई रास्ता नहीं है, ये सब रोकने का - पर वक़्त अब रहा भी नहीं है सिर्फ़ बेबस होने का"- सोई इन्सानियत को अब जगाना होगा।
कौन है यह मैं? क्या यह वही मैं है जो बदलाव लाना चाहता है पर हिचकिचाता भी है? सोचिये ज़रा!
राम कुछ कह नहीं पा रहा था पर सब समझ रहा था। उसने अपने बाबा से कहा, "बाबा, मुझे नहीं चाहिए आज़ादी|" आखिर क्या हुआ जो राम ने ऐसा कहा?
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनों की ख़ुशी के साथ-साथ, समाज के प्रति भी अपना धर्म बख़ूबी निभाते हैं। ऐसी ही एक वीरांगना थी लीनी।
"यहाँ का कोई भी रिवाज़ समझ नहीं आता, जहाँ हर दिन कोई आता है - और मुझे थोड़ा और छीन कर ले जाता है ...." क्या आपको ऐसा रिवाज़ समझ आता है?
"ये गुब्बारे टूटने वाले सपनों की तरह होते हैं", मगर वो गुब्बारा मिलते ही मानो उसे दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना मिल गया हो। ऐसा क्या था उस गुब्बारे में?
जहां एक तरफ हम अपनी बेटियों को पढ़ाने की और स्वतंत्र बनाने की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर, उन्हें अपने निर्णय ख़ुद लेने से रोकते हैं। ऐसा ख़्याल मुझे वट-सावित्री की कथा पढ़ते-पढ़ते आया।
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