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किसने बनाया शादी को लड़की के जीवन का एक कंपलसरी सब्जेक्ट?

बुरे वक्त में समाज आगे आ कर मेरे साथ क्यों नहीं खड़ा होता? जब समाज उस वक्त मेरा साथ नहीं दे सकता तो वह कौन होता है जो मेरे जीवन का फैसला ले?

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जब भी किसी समारोह में या किसी रिश्तेदार के घर किसी अवसर पर जाती हूँ, लोग अक्सर मेरी अम्मा से मेरी उम्र पूछते हैं और कहते हैं, ” ब्याह कब रही हो बिटिया का? सयानी हो गई है अब तो!”

जब भी अम्मा से कोई मेरी शादी की बात करता है तो सोचती हूँ, ज़रूरी होता है क्या विवाह करना? मैंने देखा है लड़कियों को कई तरह के उपाय भी  बताए जाते हैं और कहा जाता है, “यह व्रत करो और इन नियमों का पालन करो अगर ऐसा करोगी  तो तुम्हें अच्छा जीवनसाथी मिलेगा।”

ज़रूरी है क्या जीवन में किसी से शादी करना? यह सवाल मेरा पीछा छोड़ता ही नहीं..

कई बार हमें शादी के मायने बताए जाते हैं, शादी की अहमियत बतलाई जाती है। मैं मानती हूँ कि शादी-ब्याह के अपने मायने और अहमियत  होती है लेकिन जीवन में विवाह करना  एक कंपलसरी सब्जेक्ट तो नहीं है? फिर क्यों समाज द्वारा शादी को जीवन का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है?

किसने बनाया शादी को जीवन का एक कंपलसरी सब्जेक्ट?

समाज में तो शादी ब्याह को कुछ इस तरह परिभाषित किया है कि जब किसी लड़के और लड़की को साथ रहने के लिए सामाजिक और धार्मिक मान्यता प्राप्त हो जाए तो वह शादी जीवन का एक पवित्र बंधन है।

क्या जीवन में ऐसी मान्यता प्राप्त करना जरूरी है? समाज में ऐसी सोच रखने वाले लोगों से  मैं पूछना चाहूँगी की यह ऐसी कैसी मान्यता है जो मेरी खुशियों से बढ़कर है?

क्या इस मान्यता के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता है? यदि हम इस मान्यता को ना अपनाएं तो क्या समाज उन बेटियों को अहमियत देना बंद कर देगा जो विवाह को जीवन का एक कंपलसरी सब्जेक्ट नहीं मानतीं।

लड़कियाँ जब समाज के कहे अनुसार सामाजिक और धार्मिक मान्यता प्राप्त कर विवाह के बंधन में बंध जाती हैं तो उन लड़कियों को समाज द्वारा गुड कैरेक्टर का सर्टिफिकेट देकर उन्हें विदा कर दिया जाता और वहीं विवाह के बाद लड़की को उसके पति द्वारा किसी तरह की प्रताड़ना झेलनी पड़े या किसी तरह की अनहोनी हो जाए तो वहीं समाज यह कह कर टाल देता है कि “यह तो अपनी-अपनी किस्मत है।”

उस वक्त  समाज आगे क्यों नहीं आता? उस लड़की की सहायता क्यों नहीं करता? जब समाज उस वक्त उसका साथ नहीं दे सकता तो वह कौन होता है जो उसके जीवन का फैसला ले?

समाज द्वारा तो विवाह की उम्र तक निर्धारित की जा चुकी है यदि उस उम्र तक शादी नही होती है तो अक्सर समाज लड़कियों को हेय दृष्टि से देखता हैऔर उनके कैरेक्टर तक को निर्धारित कर लोग आपस में कई तरह की बातें बनाने लगते हैं।

बेटियों के विवाह के लिए समाज के उतावले होने की वजह?

समाज में लोगों की ऐसी मानसिकता बन चुकी है कि बेटियां कितना भी पढ़ाई कर लें और अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं पर विवाह के बिना वें अधूरी हैं। खासकर तब जब सही उम्र पर विवाह ना हो।

अक्सर लड़कियां समाज, रिश्तेदार या परिवार वालों के दबाव में आकर विवाह कर लेती हैं। उन लड़कियों को समझना होगा जो विवाह दबाव में किया गया हो वह विवाह नहीं समझौता होता है और जीवन के साथ हुए समझौते का परिणाम कभी-कभी असहनीय होता है। ऐसे जीवन का फायदा ही क्या जो हम समझौते में बीता रहे हों?

शादी का असल मतलब होता है जब हम अपने पसंद और एक दूसरे की सहमति के अनुसार साथ जीवन व्यतीत करें ना की दबाव में आकर जबरदस्ती के साथ ना चाहते हुए भी पूरे जीवन से समझौता कर लें। ऐसे  समाज को जीवन में तवज्जो ही ना दे जो आपकी  उम्र और विवाह के निर्णय से आपको सम्मान देता है।

इमेज सोर्स : Still from Marriage Short Film WOMEN EMPOWERMENT, Content Ka Keeda via YouTube 

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