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क्या आप भी प्यार के नाम पर अपने पार्टनर को कंट्रोल करते हैं?

प्रेम तो आपको सभी बंधनों से आज़ाद करता है न? ये कैसा प्यार और ये कैसा रिश्ता है जो आपको जकड़ देता है, कैद कर देता है और धीरे-धीरे रोज़ आपका गला घोंटता रहता है?

बचपन में हम सभी को एक निबंध पढ़ाया जाता है। जो हर किसी की हिंदी व्याकरण की किताब में होता है जिसका नाम होता है घरेलू हिंसा। पहले मुझे लगता था किसी को मारना-पीटना ही घरेलू हिंसा होती है और ये ज्यादातर शादी के बाद महिलाओं के साथ होता है .फिर जैस-जैसे क्लास बढ़ती गई इस निबंध के मायने और मेरी समझने की क्षमता भी बढ़ती गई। मैंने जाना की किसी महिला को मारने और पीटने को ही घरेलू हिंसा नहीं कहते।

हिंसा के भी कई प्रकार होते हैं। घरेलू हिंसा के अंदर शारीरक प्रताड़ना तो आती ही है साथ-साथ आर्थिक, लैंगिक और भावनात्मक हिंसा भी आती है।
 
नीना के पति का शराब पीकर घर आना और नीना को प्रताड़ित करना मरना-पीटना हिंसा है। वहीं सुमन का जल्दबाजी में किचन में  काम करते वक्त हाथ जल जाना और  उसके पति का उसको एक थप्पड़ मारना और कहना, “सही से काम कर ना… कहाँ जाना है? अभी हाथ ज्यादा जल जाता तो? अपना ख्याल नहीं रखती… मुझे फिक्र होती है तेरी।” ये भी हिंसा है, न कि कोई फिक्र और प्यार।

मिनी का मुझे कॉल करके ये बताना, “यार! मैं तेरे घर तुझसे मिलने नहीं आ सकती क्योंकि मेरा दोस्त ऐसा नहीं चाहता पर मुझे मिलना है तुझसे। मुझे डर लगता है। यार! अगर मैं आई और उसे पता चल गया तो वो मुझसे कई  दिनों तक बात नही करेगा। गालियां देगा, चिल्लाएगा कहेगा, “तुम मेरे लिए इतना नहीं कर सकती मिनी?”

जब मैंने पूछा, “फिर तो वो तेरे लिए अपने दोस्तों से भी नहीं मिलता होगा?”

तब मिनी ने कहा, “नहीं ! मैं जब भी उसे कोई चीज़ न करने के लिए कहती हूँ न… वो चीज़ें जो मुझे इर्रिटेट करती हैं, तो वो मुझसे कह देता है, अपनी हद में रहो। मैं जो करूँगा तुम वो नहीं कर सकतीं।”

इतना कहने के बाद वह रोने लगी।

यह भी तो हिंसा है भावनात्मक हिंसा। हर किसी को यह अधिकार होता है कि वो अपनी इक्छा और समझ के अनुसार अपना जीवन जी पाए। फिर, प्रेम तो आपको सभी बंधनों से आज़ाद करता है न? ये कैसा प्यार और ये कैसा रिश्ता है जो आपको जकड़ देता है, कैद कर देता है और धीरे-धीरे रोज़ आपका गला घोंटता रहता है?

लड़कियों को घर से बाहर न जाने देना उन्हें एक दायरे तक सीमित कर देना भी घरेलू हिंसा है जिसका शिकार भारत में हर 10 में से 9वीं लड़की होती है।

बचपन में ही जब कुछ माँ-बाप अपनी बच्चियों के साथ ऐसा करने लगते हैं तो उन लड़कियों के अंदर एक हीन भावना जन्म ले लेती है। इसके दो परिणाम होते हैं या तो वे बहुत डरी, सहमी और दब्बू स्वाभाव की हो जाती हैं उनमें विद्रोह की भावना उत्पन्न हो जाती है। वे घर से भाग सकती हैं या खुद को ख़त्म करने के बारे में सोच सकती हैं।
 

यह सच में चिंता का विषय है कि कैसे आपकी सोच, आपके विचार, आपकी पाबंदिया किसी को मरने पर मजबूर कर सकती हैं?

 ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि लोग इस बात को समझें कि हर किसी के पास मनोरंजन का, शिक्षा का, अपना जीवन जीने का और खुद की रक्षा का अधिकार है। आप किसी को भी, चाहे वो लड़की हो या लड़का हो इन अधिकारों से वंचित नहीं रख सकते।

इमेज सोर्स : Still from HAR PAL GEO DRAMAS, YouTube

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