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धाकड़ छोरी है…

मैं ना कहती थी कि अपनी सौम्या धाकड़ छोरी है। अब तो मैं यही चाहूंगी कि मेरे राजेश को भी सौम्या बेटी जैसी एक छोरी हो जाये।

सौम्या के फोन की घँटी लगातार बज रही थी। उसने आँखें खोली तो देखा रात के दो बज रहे है। फोन पर उसके मायके की नौकरानी जमुना काकी का नंबर फ़्लैश हो रहा था फोन उठाया देखा तो सत्रह मिस कॉल। 

उसने घबराहट में तुरंत फोन लगाया। फोन जमुना काकी के बेटे रमेश ने उठाया तो सौम्या ने कहा, “रमेश, काकी फोन कर रही थी? क्या हुआ? कोई बात है क्या? माँ पापा सब ठीक तो है?”

“वो दीदी, दअरसल बात ये है कि जमीन विवाद के चक्कर मे आज आपके पापा और गाँव का वो दबंग लड़का रोशन के बीच लड़ाई हो गई । उसने बाबूजी को बहुत मारा है। उनका हाथ टूट गया और सर पर गहरी चोट भी आयी है।”

“क्या? क्या कह रहा है तू, लेकिन झगड़ा  क्यों हुआ?” सौम्या ने गुस्से और दर्द भरी आवाज में पूछा।

“दीदी, आपकी उस नहर वाली जमीन को लेकर झगड़ा है। उसने बोला, यह जमीन छोड़ दो या मुझे बेच दो। आखिर तुम रख कर क्या करोगे इतनी जमीन? कौन सा तुम्हारा बेटा है जो जमीन और पैसा बचा कर रखना चाहते हो? तुम्हारे मरने के बाद तो ये वैसे भी तुम्हारे पटीदार ही लेंगे।”

“जब बाबूजी ने मना किया तो उसने लाठी-डंडे, लात-घूसे से बहुत पिटाई की उनकी। किसी की हिम्मत नही हुई उन्हें बचाने की। साथ ही उसने धमकी दी कि अगर कोई  शिकायत दर्ज करायी तो वो उसके पूरे खानदान का नामोनिशान मिटा देगा।”

“लेकिन ये सब हुआ कब? सुबह तो मेरी वीडियो कॉल पर बात हुई तब सब ठीक था।”

“दीदी दोपहर की घटना है। बाबूजी ने तो आपको बताने से मना किया था लेकिन माँ और मुझसे रहा नही गया। आज बाबूजी बहुत रो रहे थे। उनके आंसू देख सब को रोना आ रहा था। जितनी मुँह उतनी बाते हो रही थी।कोई कहता कि बेटा होता तो आज रोशन की हिम्मत ना होती जमीन पर नजरें डालने की। तो कोई कहता कि अरे! उससे कौन दुश्मनी मोल लेगा? किसको अपनी जान प्यारी नहीं।”

सौम्या की आंखों से झरझर आंसू गिरने लगे। उसने फोन काट दिया। उसके रोने की आवाज सुनकर बगल में सोए उसके पति अमन ने कहा, “सौम्या किसका फोन था? क्या हुआ बताओ तो सही।”

सौम्या ने रोते हुए सारी बात बतायी। तो अमन ने कहा, “तुम रोना बंद करो। मैं अपने कुछ परिचय के दोस्तो से बात करता हूं। वो कल बाबूजी के साथ जाकर पुलिस कंप्लेन कर देंगे।”

रोते हुए सौम्या ने कहा, “अमन! एक बात पूछूँ ? बुरा तो नही मानोगे।”

“नहीं!पूछो क्या पूछना है?”

सौम्या ने कहा, “अगर कोई तुम्हारे पापा के साथ ऐसा करता तो भी तुम यही करते?”

अमन ने तब कहा, “मेरे पापा को अगर कोई हाथ लगाए तो मैं  उसका हाथ उसके शरीर से अलग कर दूंगा। इतना ही नही मुझे खुद को नही पता कि मैं उसकी क्या हालत कर दूंगा। तब जाकर मैं कुछ और करने की सोचूंगा।”

सौम्या ने कहा, “ठीक है, अमन मुझे मेरा जवाब मिल गया।अब मैं आज सुबह ही गाँव जाऊंगी।”

अमन ने कहा, “ठीक है, मैं भी साथ चलूंगा। लेकिन तुम क्या सोच रही हो ये तो बताओ ?”

शाम 5 बजे तक सौम्या और अमन गाँव पहुंच गए। पूरा गांव उन्हें देख रहा था। सौम्या ने बैग अपने घर पर रखा और अपने पापा को गले लगाया तो उनके तन से ज्यादा अपमान के चोट का दुःख सैलाब बनकर बहने लगा। उसने अपने पापा के आंसू पोछे और मुस्कुरा कर कहा, “आपकी बेटी आ गई है। बस अब आज के बाद आप कभी नही रोयेंगे। ना ही किसी की हिम्मत होगी आपकी तरफ आंख उठाने की।”

सौम्या के पापा ने कहा, “बेटी, तू अकेली है। कहाँ जा रही है? रुक जा बेटा, मैं दामाद जी को क्या जवाब दूंगा?”

सौम्या ने जाते हुए कहा, “आपको किसी को कोई जवाब नही देना होगा। आप बस मेरा इंतजार कीजिये।”

सौम्या रोशन के दरवाजे पर पहुंची जहां गांव के पुरुषों का जमावड़ा लगा हुआ था। सबके बीच बैठा रोशन ठहाके लगा रहा था। बगल में उसके पिता मूछों पर ताव फेरते सिगार का मजा ले रहे थे। तभी सौम्या ने सबके बीच जाकर लगातार रोशन को एक साथ कई तमाचे जड़ दिए। अचानक पड़े थप्पड़ से वो जमीन पर गिर गया और वहाँ बैठे सभी आदमी सन्न खड़े होकर देखने लगे।

कॉलर पकड़ कर रोशन को सौम्या ने जमीन से उठाकर आंखों में आंखे डाल कर कहा, “ये थप्पड़ मैं चाहती तो तेरे सामने तेरे बाप को भी मार सकती थी। लेकिन तब तेरी और मेरी परवरिश में कोई फर्क नही रह जाता। तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे पापा पर हाथ उठाने की? अब उठा हाथ देखूँ तेरी मर्दानगी कितनी है।

तू शायद भूल गया कि जिस पर तुमने हाथ उठाया उनकी एक बेटी तुझ जैसे ग्यारह बेटे पर अकेले भारी है। ऐसे ब्लैक बेल्ट नही मिला मुझे और अगर डॉक्टर सौम्या किसी की जान बचाना जानती है तो वक्त आने पर किसी की जान ले भी सकती है। चल उठा लाठी! देखूँ तेरी लाठी और तुझमें कितनी ताकत है।”

माहौल में एकदम सन्नाटा छा गया था क्योंकि किसी को भी उम्मीद नही थी कि सौम्या इस तरह का कदम उठाएगी। तमाशबीन बनी भीड़ में आज खुशी थी। सौम्या अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी जिसे पढ़ा-लिखाकर उसके पापा ने डॉक्टर बनाया था। उसकी आत्मरक्षा के लिए जूडो कराटे से लेकर हर वो गुण सिखाये थे, जिससे वो हमेशा निडर आत्मनिर्भर रहकर समाज मे सम्मान के साथ अपना जीवन जिए।

अपने बेटे का ये हाल देख रोशन के पापा ने कहा, “रे छोरी! तेरी ये मजाल जो तू मेरे बेटे को सबके सामने मारे। तेरे बापू ने तुझे शिक्षा ही दी सिर्फ लगता है संस्कार देना भूल गया।”

सौम्या ने तब हँसते हुए कहा, “काका, मेरे बापू ने तो मुझे शिक्षा और संस्कार दोनों दिए। लेकिन तन्ने के दियो अपने बेटे को? ना शिक्षा ना संस्कार कुछ भी ना दियो। अच्छा होता कि थोड़ी तमीज सीखा देते। पर कोई ना मैं कर दूंगी, अब आगे से ये कुछ भी करने से पहले सौ बार सोचेगा और इस थप्पड़ की गूंज आजीवन इसके कानों में रहेगी।”

रोशन ने हाथ उठाने की जैसे ही कोशिश की तब तक वहाँ अमन भी पुलिस के साथ आ चुका था क्योंकि वहाँ का डी.एम उसका मित्र था।

उसने कहा, “हमे तो बड़े दिन से तलाश थी लेकिन कोई गवाही ही देने को तैयार नहीं था। कहते हैं ना कि एक ना एक दिन बुराई का अंत होता ही है।”

सौम्या के पापा आज गर्व से फूले नही समा रहे थे। अमन ने उनको गले लगाकर कहा, “बाबूजी आप अकेले नही हैं। आपकी ये एक बेटी ऐसे कई बेटो पर भारी है।”

तब सौम्या के पापा उसके गले लगकर मुस्कुराने लगे। ताली बजाती जमुना काकी ने कहा, “देखा मालिक, आप बेकार में ही डर रहे थे। मैं ना कहती थी कि अपनी सौम्या धाकड़ छोरी है। अब तो मैं यही चाहूंगी कि मेरे राजेश को भी सौम्या बेटी जैसी एक छोरी हो जाये बस।”

 

इमेज सोर्स: Still from short film A Father’s Day via YouTube

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