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माँजी, पीरियड्स होने पर अगर बहू अशुद्ध तो बेटी शुद्ध कैसे?

"रिया! देखो ना मैं नए घर के गृहप्रवेश की पूजा का निमंत्रण देने आयी थी और मेरे पीरियड्स आ गए। जरा सेनेटरी पैड देना। दरवाजे पर रख दो। मैं ले लूँगी।"

“रिया! देखो ना मैं नए घर के गृहप्रवेश की पूजा का निमंत्रण देने आयी थी और मेरे पीरियड्स आ गए। जरा सेनेटरी पैड देना। दरवाजे पर रख दो। मैं ले लूँगी।”

रिया एक आधुनिक विचारों में पली-बढ़ी लड़की थी, जो हमेशा महिलाओं के हक के लिए लड़ती थी। उसकी शादी मुंबई में रहने वाले दीनदयाल उपाध्याय जी के बेटे राकेश से हो गयी। राकेश पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। उसका पूरा परिवार साथ ही रहता था। परिवार में एक बड़ी बहन सुनीता, दादी और मम्मी-पापा रहते थे।

रिया लखनऊ से शादी के बाद सीधा मुंबई आयी, तो बहुत खुश थी। उसे लगा कि ससुराल के सभी लोग आधुनिक विचार के होंगे। लेकिन उसका भ्रम बहुत जल्दी टूट गया। राकेश के परिवार वालों की कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क था।

कुछ दिन बाद सासु मां कमरे में आयी और कहा, “बहु इस घर के कुछ नियम हैं, जो तुम्हें पहले से पता हो तो अच्छा होगा।”

रिया ने कहा, “जी मां जी कहिए?”

“बेटा! कुछ ज्यादा नहीं बस यहीं कि यहाँ सिर्फ साड़ी पहननी है और ससुर जी के सामने हमेशा सिर पर पल्लू रहना चाहिए। और सबसे जरूरी बात मासिक में कुछ भी नहीं छूना”, सासु मां ने कहा।

रिया को अपने कानों पर यक़ीन नहीं हो रहा था कि मुंबई जैसे महानगर में रह कर भी इन लोगों की सोच इतनी पुरानी है। रिया को तुरंत अपने मायके की याद आ गयी। जहाँ उसकी भाभी जो पसंद हो वो कपड़े पहनती थी। क्योंकि रिया के माता-पिता का मानना था कि बड़ों की इज्ज़त मन से होती है, कपड़ों से नहीं। और मासिक में भी आम दिनों की हीं तरह दिनचर्या थी।

ननद की शादी हो चुकी थी। उनका ससुराल भी मुम्बई में था। उनका खुद का ब्यूटी पार्लर था। रिया साड़ी पहन के ही घर के काम करती। जिस दिन कामवाली बाई नहीं आती थी, उस दिन तो उसके सिर पर घर के सारे काम आ जाते। घर तो ज़्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन सबकी पसंद का खाना अलग-अलग ही बनाना पड़ता था।

रात में रिया ने राकेश को अपनी सास की कही हुई बात बतायी और कहा, “ये सारे नियम तो लोग अब गांवों में भी नहीं मानते और मुंबई जैसे शहर में रह कर ऐसा कौन सोचता और करता है?”

राकेश ने कहा, “रिया हम मुंबई में जरूर रहते हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति का पूरा पालन करते हैं। वरना मैं अरेंज मैरिज क्यों करता? मैं भी लव मैरिज कर लेता।”

लेकिन राकेश…

“अच्छा सो जाओ! मुझे सुबह ऑफिस भी जाना है।”

रिया को पीरियड आया तो उसने अपनी सास को बताया। सासु मां ने कमरे से राकेश के कपड़े निकाल लिए और कहा, “राकेश की किसी भी चीज़ को हाथ मत लगाना। पीरियड के समय उसे उसके कमरे में जैसे कैद कर दिया। पहले दिन खाना भी मुश्किल से ही मिला। और रात में राकेश भी हॉल के सोफे पर सोया। रिया सोचने लगी अभी पांच दिन और कैसे बीतेंगे? दूसरे दिन बड़ी ननद आयी। बाहर से ही रिया को आवाज़ दी।

“जी, दीदी कहिये।”

“रिया! देखो ना मैं नए घर के गृहप्रवेश की पूजा का निमंत्रण देने आयी थी और मेरे पीरियड्स आ गए। जरा सेनेटरी पैड देना। दरवाजे पर रख दो। मैं ले लूँगी।”

“जी! अभी लायी।” रिया ने सैनेटरी पैड दिया।

उसके बाद रिया ने जो देखा, उसे अपनी आंखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था। थोड़ी देर बाद उसकी ननद ने सबके लिए चाय बनायी। फिर रात का खाना भी बनाया। और पैक कर के अपने ससुराल ले के भी गयी। ये सिलसिला पांचों दिन चला। जैसे-तैसे पांच दिन निकले। लेकिन अब रिया ने ठान लिया था कि वो इस नियम को नहीं निभाएगी।

रिया की सास दिन-रात बेटी-दामाद की तारीफ करते ना थकती।

रिया की सास ने कहा, “बेटी-दामाद हो तो मेरी बेटी-दामाद जैसे… देखा बहू तुम्हारे छुट्टियों में कैसे तुम्हारी ननद ने ससुराल, मायका और पार्लर तीनों सम्भाल लिया।”

“लेकिन माँ जी मेरी कैसी छुट्टियां? वो तो आप ने ही कहा था कि कुछ मत छूना और दीदी तो पीरियड में भी सब-कुछ छू रही थी।”

“हाँ! वही, वो औरतों की छुट्टियां ही तो होती हैं। और बेटियां इसमें अशुद्ध नहीं होती। उन पर ये नियम लागू नहीं होते। अब इन बातों को छोड़ो और जा के तैयार हो जाओ। कोई अच्छी सी साड़ी पहन लेना। सुनीता के ससुराल जाना है गृहप्रवेश में, समझी!”

रिया तैयार होकर निकली तो सासू मां ने याद दिलाया, “अरे! ये क्या बहु सिर पर पल्लू तो रखो।”

“जी।” रिया ने ना चाहते हुए भी सिर पर पल्लु रखा।

पूरा परिवार सुनीता के ससुराल पहुंचा। सब एक दूसरे से मिले। तब तक सुनीता की सास आ के बोली, “ये क्या रिया? अब कौन सिर पर पल्लु रख के ऐसे खड़ा होता है बेटा? हमने तो सुनीता को भी अपनी बेटी की हीं तरह रखा है। चाहे तो अपनी सास ननद से पूछ लो।”

“क्यों बहन जी सही कहा ना मैंने?”

“जी सही कह रही हैं आप। मैंने बहुत समझाया पर ये मानी हीं नहीं। छोटे शहर से आ के मुंबई जैसे शहर को अपनाने में समय तो लगेगा हीं।”

रिया ने जैसे हीं बोलना चाहा तब तक राकेश ने आ के उसका हाथ दबाते हुए बोला, “आंटी, माँ बिलकुल सही कह रहीं हैं। लेकिन आप चिंता मत कीजिये अगली बार जब रिया आप को मिलेगी तो आप उसे बदला हुआ ही पाएंगी।”

रिया अपमान का घुंट पी के मुस्कुराती रही।

पार्टी खत्म होने के बाद जैसे ही सब घर पहुंचे वैसे हीं राकेश ने कहा, “रिया रूको! तुम क्या करने जा रही थी? वो तो अच्छा हुआ कि मैं वहाँ आ गया वरना आज मां का और हमारे घर का तमाशा ही बन जाता। अगली बार से मैं ऐसे गलती बर्दाश्त नहीं करूँगा।”

“सही कह रहा है बेटा! ये छोटे शहरों की लड़कियों में संस्कार की हीं कमी होती है। खुद को किसी हीरोइन से कम नहीं समझती। बड़े शहरों में आते ही इन्हें पंख लग जाते हैं।”

“शटअप मिस्टर राकेश!” की तेज आवाज से आज घर गूंज उठा। सभी रिया की तरफ देखने लगे।

अब रिया ने कहा, “राकेश तुमको क्या लगता है, कि मैं तुमसे डर के वहाँ चुप रह गयी? तो ये तुम्हारी गलतफहमी है। मैं तो तुम्हारी माँ के साथ-साथ तुम्हारा भी असली चेहरा देखना चाहती थी। और क्या कहा तुमने? तुम्हारी माँ और तुम्हारे परिवार की इज्ज़त और मेरी इज़्ज़त का ख्याल कौन रखेगा? वो किसकी जिम्मेदारी है? खैर! उसकी उम्मीद तुमसे करना मूर्खता है। क्योंकि जिसने अपनी पत्नी को परिवार माना हीं नहीं उससे उम्मीद भी क्या रखना? मैं अपना और अपने सम्मान का ख्याल खुद रख सकती हूं।”

“और माँजी, आपने और पापा ने मेरी विदाई के वक़्त क्या कहा था? मेरे घरवालों से कि आप चिंता मत कीजिये। ये बहु नहीं हमारी बेटी है? तो क्या ऐसा व्यवहार करते हैं आप के यहाँ लोग बहुओं को ला के? क्या दादी ने भी आप के साथ ऐसा ही किया था? ये दोहरा चरित्र क्यों? दो औरतों के लिए दोहरा रवैया क्यों? बेटी-बहु में इतना फर्क क्यों? जिस पीरियड के आने से बहू अशुद्ध हो गयी तो उसी पीरियड से बेटी शुद्ध कैसे हो सकती है? क्या सुनीता दी औरत नहीं है?”

“माँ जी नियमों की आड़ में अत्याचार मैं नहीं सहूंगी। और हाँ! आज तो मैं दीदी के ससुराल में चुप रह गयी। लेकिन अगली बार ऐसा हुआ तो मैं चुप नहीं रहूँगी।”

कह के रिया अपने कमरे में चली गयी। वहाँ मौजूद सभी भाव विहीन सिर झुकाए चुपचाप अपने कमरों में चले गए।

प्रियपाठकगण, बहुत बार ऐसा होता है जहाँ नियम की आड़ में बहू पर अत्याचार किये जाते हैं, लेकिन कोई इसका विरोध नही करता। और जो विरोध करता है उसे लोग बतमीजी, बेशर्म बहू का तमगा लगाकर समाज में बदनाम करते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि हम महिलाओं को हर ऐसे नियम का विरोध करना चाहिए, जो इस पितृसत्तात्मक समाज मे हम महिलाओं में ही भेद डालकर राज करने की दृष्टि से बनाई गई है। हर किसी को इसका विरोध खुल कर करना चाहिए। जिससे ये अत्याचार बंद हो।

ये कहानी काल्पनिक है। अगर इससे किसी की भावना आहत हो तो माफी चाहूंगी।

इमेज सोर्स: Still from HelathPhone Hindi ad, YouTube

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