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गुजरात की इस दुल्हन के अनुसार शादी इंतज़ार कर सकती है, एग्ज़ाम नहीं…

शिवांगी के अनुसार जब उनकी शादी तय हुई तो परीक्षा के डेट्स नहीं आये थे और जब आये तो शादी और परीक्षा के डेट टकरा गए।

शिवांगी के अनुसार जब उनकी शादी तय हुई तो परीक्षा के डेट्स नहीं आये थे और जब आये तो शादी और परीक्षा के डेट टकरा गए।

सोशल मीडिया पे इंडिया टाइम्स के एक बेहद दिलचस्प वीडियो मेरी नज़र पड़ी और इस वीडियो के दिलचस्प होने की वजह यह थी कि इस वीडियो में एक लड़की दुल्हन की ड्रेस में परीक्षा लिखती नज़र आ रही थी।

मेरी तरह आप भी यही सोच रहे होंगे ना कि भला कोई लड़की दुल्हन की ड्रेस में क्यों परीक्षा देने जायेगी? अगर आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो आपको बताती चलूँ कि ये दिलचस्प वाक्या गुजरात के राजकोट का है।

माय मैरिज कैन वेट नॉट माय एग्जाम(मेरी शादी थोड़ा इंतज़ार कर सकती है लेकिन मेरी परीक्षा नहीं)

यहाँ यूनिवर्सिटी एग्जाम के दौरान जब दुल्हन के अवतार में परीक्षा देते सब ने शिवांगी बगथरिया को देखा तो देखते रह गए। इंडिया टाइम्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक शिवांगी बगथरिया एक अंडर ग्रेजुएट (स्नातक) हैं और दुल्हन की ड्रेस में बैचलर ऑफ़ सोशल वर्क के पांचवे सेमेस्टर की परीक्षा देने शांति निकेतन कॉलेज पहुंची थीं।

शिवांगी के अनुसार जब उनकी शादी तय हुई तो परीक्षा के डेट्स नहीं आये थे और जब आये तो शादी और परीक्षा के डेट टकरा गए। हालांकि शिवांगी ने परीक्षा देने का निर्णय लिया और जिसका दोनों परिवारों ने भी समर्थन किया। शिवांगी परीक्षा देने अपने पति के साथ परीक्षा केंद्र पहुंची थी।  उनके पति के अनुसार जब उन्हें पता चला कि शादी और परीक्षा एक ही दिन है तो विचार कर उन्होंने शादी के मुहूर्त को थोड़ा लेट करवा दिया जिससे शिवांगी परीक्षा दे सके।

“माय मैरिज कैन वेट नॉट माय एग्जाम” इस कैप्शन के साथ वायरल हुआ ये वीडियो वाकई बेहद सराहनीय है।

मेरी इस बात से तो आप सब जरूर सहमत होंगे कि किसी भी समाज के विकास में महिला शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। महात्मा गाँधी जी ने कहा है कि, “जब एक पुरुष पढ़ता है तो सिर्फ एक व्यक्ति शिक्षित होता है और जब एक स्त्री पढ़ती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है।”

एक शिक्षित नारी ही समाज में खुशहाली और शांति का स्रोत होती है। कहा जाता है कि परिवार हमारा प्रथम पाठशाला होता है और माँ हमारी प्रथम गुरु, तो ऐसे में माँ का शिक्षित होना आवश्यक क्यों नहीं?

समय के साथ ये बात सिद्ध हो चुकी है कि पुरुषों के साथ साथ स्त्री शिक्षा भी बहुत महत्वपूर्ण है।  आज बहुत सी लड़कियां जब खुद या किसी मज़बूरी में आ अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं, ऐसे में शिवांगी जैसी लड़कियां एक उदाहरण पेश करती हैं कि जीवन में सिर्फ शादी नहीं शिक्षा भी जरुरी है।

लड़कियों की शिक्षा में परिवार का रोल

लड़कियों की शिक्षा में परिवार का भी बहुत महत्वपूर्ण रोल हो जाता है बिना परिवार के सहयोग से लड़कियों की शिक्षा संभव नहीं। समय के साथ लड़कियों की शिक्षा के प्रति कुछ लोगों की सोच में बदलाव जरूर आया है लेकिन आज भी कई परिवार है जो लड़कियों की शिक्षा को ज़रुरी नहीं समझते और ये पूर्ण रूप से गलत विचार है।

माता-पिता हो या परिवार के अन्य सदस्य सभी को बालिका शिक्षा के लाभ को समझाना और उन्हें इस विषय में शिक्षित करना बहुत अवश्यक है। ये जिम्मेदारी ना सिर्फ सरकार की है साथ ही हमारी भी है।

“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” अभियान बालिका शिक्षा की दिशा में एक बेहद अच्छी पहल है। इसके अनुसार हम परिवार और समाज के रूप में तभी विकसित हो पायेंगे जब हमारी बेटियां शिक्षित होंगी और इसके लिये आवश्यक है कि माता-पिता बेटे-बेटी का भेद मिटा शिक्षा का अवसर अपने सभी बच्चों को दें।

लड़कियों की शिक्षा के मार्ग में आने वाली कुछ महत्वपूर्ण बधाएं

पारिवारिक समस्या: कई परिवार आज भी शादी को शिक्षा से अधिक महत्व देते हैं। उनकी नज़रो में लड़कियों को दूसरे घर ही जाना है तो उच्च शिक्षा देने का क्या लाभ? ऐसी विचारधारा बिलकुल स्वीकार योग्य नहीं होती।
सामाजिक समस्या: असामाजिक तत्व, बलात्कार, बाल विवाह कुछ ऐसी सामाजिक समस्या हैं जो बालिका शिक्षा के राह में पत्थर के रूप में काम करती हैं। खास कर ग्रामीण इलाकों में लोग अपनी बच्चियों की गरिमा बनाये रखने के लिये स्कूल बंद करवा देते हैं। जबकि उचित कदम तो ऐसे समस्याओं से लड़ उन्हें दूर करना है।
लड़कियों के स्कूल की कमी: ये समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलती है। अक्सर लड़कियों के स्कूल बहुत कम होते हैं और जो होते हैं वो दूर होने के कारण सिर्फ पास की लड़कियां ही जा पाती हैं दूर की नहीं और लड़कियों की शिक्षा में ये समस्या बहुत बड़ी है।
महिला शिक्षिका की कमी: महिला शिक्षिका की कमी खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी समस्या होती है। परिवार लड़कियों को ऐसे विद्यालय में भेजनें से कतराते हैं जहाँ महिला शिक्षिका ना होकर पुरुष शिक्षक होते हैं।
गरीबी: भारत देश में गरीबी अभी भी एक बड़ी समस्या है। गरीबी के कारण भी कई बार लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती हैं। गरीबी के कारण लड़कियों की पढ़ाई या तो छूट जाती है या पढ़ाई छोड़ने को मजबूर कर काम करने का दबाव डाला जाता है।

लड़कियों को शिक्षित होना क्यों आवश्यक है

महिलाएं समाज की आत्मा होती हैं। एक शिक्षित महिला घर पे रहे या बाहर काम करे वो अपने बच्चों को बेहतर ही बनायेंगी। महिला शिक्षित होंगी तो देश शिक्षित होगा, ये बात तो हम जानते समझते हैं, लेकिन ये भी सच्चाई है कि देश और दुनिया में आज भी 65 मिलियन लड़कियां हैं जो शिक्षा से दूर हैं। महिला शिक्षा की स्तिथि में सुधार के लिये आवश्यक है कि महिला शिक्षा के लिये उचित और आवश्यक कदम उठाये जाएँ।
बेहतर स्वास्थ्य और साफ सफाई : स्वास्थ्य महिलाओं के जीवन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है।  अगर महिला शिक्षित होंगी तो अपने और अपने बच्चों की देखभाल बेहतर कर पायेंगी।
महिलाओं के सामाजिक बहिष्कार को रोकना: अशिक्षित महिला अपने हक़ ले लिये आवाज़ उठा ही नहीं पाती क्यूंकि उन्हें अपने हक़ और क़ानून की जानकारी ही नहीं होती। वहीं शिक्षा से महिलाएं अपने हक़ को जान अपने खिलाफ अन्याय को रोक पायेंगी।
समाज में गरिमा और सम्मान मिलना: एक शिक्षित महिला ही अपनी गरिमा और सम्मान को बचाने के लिये आवाज़ और कठोर कदम उठा सकती है।
आत्मनिर्भर बनना: आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला अपने परिवार को हर तरह से सहयोग देने के साथ खुद के साथ होने वाले अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठा सकती है।

लड़कियों की शिक्षा आज के समय की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को अगर हमें सही मायने में हासिल करना है तो इसके लिये शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है। शादी ज़रुरी है लेकिन इसके लिये शिक्षा को छोड़ देना आप कहाँ तक उचित मानेगे? शिक्षा ही एकमात्र हथियार है जो लड़कियों को सशक्त बना सकती है और समाज में उनकी स्तिथि मजबूत बना सकती है।

समय के साथ लोगो की सोच में परिवर्तन आया है और इस बदले दृश्टिकोण ने समान रूप से लड़के और लड़कियों को अपनी क्षमता साबित करने का मौका दे रहा है और ये दृश्टिकोण लैंगिग समानता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये शिक्षा का ही असर है कि पहले जहाँ लड़कियां अपनी शादी को ले उत्साहित होती थीं, वो दिन उनके लिये बेहद खास होता था लेकिन आज लड़कियां अपनी प्राथमिकता खुद तय कर रही हैं।

शिक्षा को प्रथम स्थान पे रख गुजरात की शिवांगी ने एक अनमोल उदाहरण पेश किया है और उनके इस निर्णय में उनके होने वाले पति और परिवार का साथ सोने पे सुहागा है। समाज में ऐसे उदाहरण एक सराहनीय कदम है और निश्चित रूप से लड़कियों की शिक्षा को ले कर कई लोगों की सोच को भी बदल सकते हैं।

इमेज सोर्स: इंडिया टाइम्स 

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