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मेरी बेटी को आज मेरी ज़रूरत कुछ ज़्यादा है…

अपनी शांत और प्यारी बिटिया को ऐसे आक्रोश में देख एक पल तो रूचि भी सिहर उठी। बिना कुछ सवाल ज़वाब दिये रूचि कमरे से बाहर आ गई।

अपनी शांत और प्यारी बिटिया को ऐसे आक्रोश में देख एक पल तो रूचि भी सिहर उठी। बिना कुछ सवाल ज़वाब दिये रूचि कमरे से बाहर आ गई।

“क्या हुआ मेघा शाम हो गई है। आज खेलने नहीं जाना क्या?” बिस्तर में मुँह छिपाये अपनी चौदह साल की बिटिया को देख रूचि ने कहा।

“नहीं मुझे कहीं नहीं जाना मम्मा। मैं घर में ठीक हूँ।”

“लेकिन क्यों बेटा? तुम्हें तो खेलना और दोस्तों से मिलना-जुलना कितना पसंद हैं।” 

“नहीं पसंद मुझे किसी से मिलना और आप भी जाओ मेरे कमरे से मम्मा। मुझे नहीं करनी कोई बात और ना ही कहीं जाना है।” अचानक से आक्रोश में मेघा भर उठी।

अपनी शांत और प्यारी बिटिया को ऐसे आक्रोश में देख एक पल तो रूचि भी सिहर उठी। बिना कुछ सवाल ज़वाब दिये रूचि कमरे से बाहर आ गई।

“क्या हुआ आज भी मेघा का मूड ठीक नहीं क्या?” रूचि को परेशान देख रूचि के पति रमन ने कहा।

“ये उम्र ही ऐसी है रूचि। हॉर्मोनल चेंज होते हैं। बच्च बड़े होते हैं। इसमें इतना क्या परेशान होना?”

“बात सिर्फ हॉर्मोनल चेंज की नहीं है। बात शायद उसके आत्मविश्वास से जुड़ी है।”

मन ही मन रूचि अपनी बेटी को ले चिंता से भर उठी। कुछ ऐसा ही तो वो भी महसूस करती थी सालों पहले और शायद आज भी। रूचि के सामने उसका पिछला जीवन एक चलचित्र की भांति घूमने लगा।

“ऐ मोटी, तू कुछ लगाती नहीं क्या? कैसा काला रंग हो गया है? जाने कैसे इसकी शादी होगी? थोड़ा डाइटिंग किया कर। क्या दिन भर हाथी के जैसे खाती रहती है। तुझसे क्या होगा कुछ भी नहीं।” और भी जाने कितनी बातें कितने ताने हर दिन रूचि सुनती थी।

बचपन से रूचि थोड़ी मोटी और सांवले रंग की थी। जब तक रूचि बच्ची थी लोगो की बातों पे कभी ग़ौर नहीं किया। लेकिन युवावस्था में प्रवेश करते ही लोगो की चुभती बातों ने रूचि के आत्मविश्वास को झकझोर दिया।

पढ़ने में होशियार दोस्तों के साथ हँसती खेलती एक टीनऐज लड़की रूचि अब गुमसुम और चिढ़ी चिढ़ी सी रहने लगी। तानों के डर से दोस्त पीछे छुट गए अपने शरीर से नफरत सी हो गई थी रूचि को।

सबसे कट चुकी रूचि को तब किसी ने नहीं समझा। किसी ने रूचि के घायल मन पे प्यार का मलहम नहीं लगाया। अपनी समस्या से खुद लड़ती रूचि को भाग्यवश रमन जैसे सुलझे इंसान का साथ मिला लेकिन इन सब में रूचि अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण साल कुछ बनने के बजाय खुद से जूझते हुए बर्बाद कर दिए।

‘नहीं, नहीं। अब मैं मेघा को दूसरी रूचि नहीं बनने दूंगी। माना रंग रूप मेघा ने अपनी माँ का पाया है लेकिन भाग्य, वो मैं मेघा का खुद जैसा नहीं बनने दूंगी। नहीं टूटने दूंगी अपनी बच्ची का आत्मविश्वास।’

और उसी पल चल पड़ी रूचि अपनी बेटी के पास उसे ये बताने कि शारीरिक सुंदरता किसी के सफलता का पैमाना नहीं हो सकता। वो जैसी है बहुत सुन्दर है। वो खुद को स्वीकार कर आगे बढ़ जीवन में कुछ बन सकती है। वो उन सब के जुबान को बंद कर सकती है जो मेघा को सिर्फ उसके बाहरी रूप देख जज करते हैं।

रूचि समझ चुकी थी कि मेघा के घायल मन को उसकी माँ के उस प्रेम और साथ की जरुरत है जो बचपन में कभी रूचि को मिल है नहीं पाया था।

इमेज सोर्स : Still from PATI, PATNI AUR WOH, SIT, YouTube

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