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काश लौट आए वो गुज़रा ज़माना…

न काम की चिंता, न घर की फिक्र, वो बारिश के पानी में नहाना, वो कागज़ की किश्ती चलाना, बहुत याद आता है गुज़रा ज़माना।

न काम की चिंता, न घर की फिक्र, वो बारिश के पानी में नहाना, वो कागज़ की किश्ती चलाना, बहुत याद आता है गुज़रा ज़माना।

बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना,
आगँन में बैठकर धूप सेंकना,
माँ का अंगीठी पर मक्का की रोटियाँ बनाना,
उन्हीं कोयलों पर फिर शकरकंदी भूनना,
हाँ बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना।

वो गलियों में दौड़ लगाना,
दोस्तों के साथ समय बिताना,
बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना।

न काम की चिंता, न घर की फिक्र,
वो बारिश के पानी में नहाना,
वो कागज़ की किश्ती चलाना,
बहुत याद आता है गुज़रा ज़माना।

वो माँ का बात-बात पर चिल्लाना,
पिता से हमारी शिकायतें लगाना,
पापा से छुप छुपकर सारे काम करना,
बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना।

दोस्तों के संग साइकिल दौड़ाना,
रज़ाई में छुप छुपकर कॉमिक्स पढ़ना,
एक-एक रुपये में पानी पूरी खाना,
पिक्चर देखने के लिए लाइन लगाना,
बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना।

काश लौट आए वो गुज़रा ज़माना,
मिल जाए वो दोस्तों का ताना बाना,
बहुत बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना।

इमेज सोर्स : Still from the Short Film, Kheer, TTT, YouTube

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SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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