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दूसरों की देखभाल करते-करते मैं खुद को भूल गयी थी…

आखिर कितने दिनों तक चलता ये? बीपी और शुगर से ग्रसित होने के बाद रानू को इतनी रियायत दी गई कि वो झाड़ू पोंछे वाली लगा सके। पर इतने से क्या होता?

आखिर कितने दिनों तक चलता ये? बीपी और शुगर से ग्रसित होने के बाद रानू को इतनी रियायत दी गई कि वो झाड़ू पोंछे वाली लगा सके। पर इतने से क्या फ़र्क पड़ता?

“जिंदगी के रण में खुद ही अर्जुन और खुद ही कृष्ण बनना पड़ता है रानू दीदी! अगर कोई आपकी परेशानियां नहीं समझ रहा, तो आपको आगे आना होगा। अपनी परेशानियों को खुद समझना भी होगा और सुलझाना भी होगा। भले आपके सामने आपके अपने ही खड़े हों। अगर वो गलत हों तो उनको समझाइए। ना समझें तो उन्हें साम, दाम, दंड, भेद से समझाइए। आईना नहीं देखतीं क्या आप? कैसी थीं और क्या हो गईं हैं रानू दी आप?” मुक्ता जो कालेज की अपनी एक सीनियर रानू से अरसों बाद मिली थी, उससे कह रही थी।

“मुक्ता, कहना आसान है करना मुश्किल। तुम्हें क्या लगता है मैं अपने हालात से खुश हूं? इतनी कम उम्र में मैं बीपी और शुगर की टेबलेट ले रही हूं। क्या अपनी खुशी से?” रानू ने दुखी होकर कहा।

“वही तो मैं भी कह रही हूं रानू दी! सब छोड़ो और खुद को देखो। खुद का ख्याल रखो।”

दरअसल रानू अपने मां बाप की इकलौती औलाद थी। फूलों सी पली रानू फूलों जैसी खूबसूरत और कोमल भी थी। मां-बाप ने पढ़ाई-लिखाई के बाद बड़े नाजों से सरकारी क्षेत्र के एक हैंडसम और स्मार्ट इंजीनियर जो खुद भी मां-बाप का इकलौती औलाद था, ढूंढ कर रानू की बड़े धूमधाम से शादी रचाई।

शुरुआत काफी अच्छी रही। समय के साथ दोनों दो बच्चों के माता-पिता भी बन गए।

रानू की सास का मायका भी काफी समृद्ध था। उनका एक भाई भी था। संयोगवश काफी यत्नों के बाद भी उनकी कोई औलाद नहीं हुई। इतनी धन-संपत्ति किसी अनाथ को गोद लेकर गंवा देना उन्हें गंवारा नहीं था तो सर्वसम्मति से ये निश्चय किया गया कि रानू के पति को ही गोद ले लिया जाए। वो बुढ़ापे में उनकी देखभाल भी करेगा और संपत्ति भी बाहर नहीं जाएगी।

अब सब लोग रानू के सास-ससुर, मामा-ससुर, मामी-सास और नानी सभी, रानू के ही पास यानि उसके सरकारी क्वार्टर में शिफ्ट हो गए। क्योंकि सब बुजुर्ग हो रहे थे तो उन्हें साथ और संरक्षण की आवश्यकता थी जो गांव में उपलब्ध नहीं थी।

खैर बात यही तक नहीं थी। नानी सास पुराने जमाने की थीं नौकरों का बना छूआ हुआ नहीं खाती थीं। मामी सास ह्रदय रोग से पीड़ित थीं, अपने ससुर को गठिया की बीमारी थी, बाकी बचे सास और मामा ससुर तो बुढ़ापा भी अपने आप में बीमारी से कम थोड़े ही ना है। पांच लोग वे और चार जने रानू! उस पर से गांव के एक दो जनों का आना जाना लगा ही रहता और उसी सरकारी क्वार्टर में सबको एडजस्ट होना था।

उसके बाद शुरू हुई रानू की मशीनी जिंदगी जो तड़के मुर्गे की बांग से पहले शुरू होती और रात को सबके सोने के बाद खत्म होती।

आखिर कितने दिनों तक चलता ये? बीपी और शुगर से ग्रसित होने के बाद रानू को इतनी रियायत दी गई कि वो झाड़ू पोंछे वाली लगा सके। पर इतने से क्या फ़र्क पड़ता?

चालीस की रानू पचपन की दिखने लगी थी।

बाजार में मुक्ता ने दूर से देखा तो पहचान ना पाई। खिचड़ी बाल, जैसे तैसे कपड़े और दोनों हाथों में दो झोले थामे। रानू को उसने उसके होंठों के ऊपर वाले तिल जो कभी उसकी सुंदरता में चार चांद लगाते थे, से पहचाना। फिर भी भरोसा ना हुआ तो पूछा, “आप रानू दी हो ना? मैं मुक्ता…”

फिर दोनों थोड़ी देर पास के रेस्तरां में बैठकर बातें करने लगीं। बीस मिनट के दरम्यान रानू ने बीस बार बोला होगा, “घर में सब परेशान होंगे…!”

तो मुक्ता ने रानू को समझाना शुरू किया, “जो आपके साथ हो रहा है ना रानू दी, वही हुआ था कभी अर्जुन के साथ। अर्जुन की तरह आपकी भी लड़ाई आपके अपनों से ही है। अगर आप नहीं लड़ी अपनी खातिर तो उनकी जीत नहीं होगी, आप हार जाएंगी अपनी ही जिंदगी से। जिंदगी बार बार नहीं मिलती रानू दी। वो आपका घर परिवार है। कोई बाहरी आपकी मदद करने नहीं आएगा और ना ही रातों-रात कोई चमत्कार होगा और सब कुछ बदल जाएगा। अब आपको ही कृष्ण बन कर अपने दिल और दिमाग को रास्ता भी दिखाना होगा कि आपके लिए क्या सही है क्या ग़लत है और अर्जुन बनकर उसी रास्ते पर चलकर अपने लिए लड़ना और जीतना भी होगा…आगे तो आप खुद समझदार हैं।”

“शायद तुम सही कह रही हो मुक्ता। कई बार कई फैसले लेने चाहे और सब कुछ बदलना चाहा, पर अर्जुन वाला मन कहता, अपनों से क्या और क्यूं लड़ाई? पर आज तुमने मेरे अंदर के सोए हुए कृष्ण को आवाज देकर जगा दिया है, जो समय समय पर मेरा मार्गदर्शन करता रहेगा। अब मैं भी अपने लिए सोचूंगी और आगे बढूंगी। मुक्ता, थैंक्यू सो मच डियर। चलो इसी बात पर तुम्हें आज पार्टी देती हूं। बोलो क्या खाओगी?” रानू का चेहरा खिल उठा।

“पर आपको देर हो रही थी ना?” मुक्ता ने छेड़ा।

“देर तो मैंने कर दी है अपने साथ। पर कोई नहीं जब जाग गई हूं तो सवेरा भी ले ही आऊंगी अपने जीवन में आगे। पर आज एक पार्टी तो बनती है कृष्ण-अर्जुन के नाम से! मेरे जागने के नाम से! बोल है कि नहीं?” बोलते बोलते रानू के चेहरे पर वही वर्षों पहले वाली हंसी छिटक आई।

दोस्तो, हमारे अंदर भी हमेशा ही वाद-विवाद चला करता है पर अक्सर हमारा अर्जुन हथियार डाल दिया करता है, पर वक्त के साथ चलने के लिए कृष्ण के अनुसार और साथ चलना जरूरी है। आप क्या कहते हैं?

अवश्य बताएं…

इमेज सोर्स : Still from Meri Maggi/Tamil Master Film, YouTube

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