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दादी, हमें आप लोगों की ज़रूरत नहीं है…

माँ बहुत कोशिश करतीं थीं कि आंसू ना बहे, खासकर बच्चों के सामने मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता था तो आंसू अपने आप ही निकल आते...

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माँ बहुत कोशिश करतीं थीं कि आंसू ना बहे, खासकर बच्चों के सामने मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता था तो आंसू अपने आप ही निकल आते…

“मुझे अभी पढ़ना है मम्मा…! पापा हमेशा मुझे पढ़ाना चाहते थे।”

“चाहते थे नैना! चाहते हैं नहीं। कहने को तो एक छोटा सा लफ्ज़ होता है, “हैं और थे” मगर इसमें इतनी दूरियाँ होतीं हैं कि….”

“मम्मा प्लीज! आप दुखी मत हो। आप जो चाहेंगी वही होगा”, नैना ने मां को बहलाया।

“पापा ही नहीं, मैंने भी हमेशा यही चाहा था कि मेरे दोनों बच्चे खूब पढ़-लिख कर काबिल बनें मगर होता तो वही है जो ऊपर वाला चाहता है। छ: महीने में ही हमारी दुनिया खत्म हो गई। छ: महीने पहले तक ये दुनिया, ये रिश्ते, सब कितना अच्छा लगता था और अब देखो…”

“मम्मा! आप इस तरह ना रोया करें। आप रोएंगी तो हमारा क्या होगा? आप ही हमारी दुनिया हो आप माँ भी हो और पापा भी। आप ऐसे परेशान रहेंगी तो बीमार हो जाएंगी फिर हम क्या करेंगे?” नैना ने मां के आंसू पोंछे।

माँ बहुत कोशिश करतीं थीं कि आंसू ना बहे, खासकर बच्चों के सामने मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता था तो आंसू अपने आप ही निकल आते…

“मैं ठीक हूँ। बस आजकल थोड़ा  परेशान हूँ। तुम्हारे चाचा आए थे। बोल रहे थे शनि की पढ़ाई और तुम्हारी शादी पर बहुत खर्च आएगा इसलिए गाँव वाली जमीन उनके नाम कर दें। अब मेरी समझ में नहीं आ रहा है अगर गाँव की जमीन देवर जी ले लेंगे तो हमारा क्या होगा? हम हमेशा तो किराये के घर में रह नहीं सकते।

मैंने सोचा था अगर यहाँ कुछ नहीं हो सकेगा तो गाँव ही जाकर रह लेंगे।  कम से कम किराए का मसला तो नहीं रहेगा। मगर फिर सोचती हूँ वहाँ कभी रही नहीं हूँ, नए सिरे से सब कैसे करुंगी? तुम्हारी दादी भी वहाँ नहीं रहतीं, नहीं तो मैं जाकर रह लेती। कुछ समझ में नहीं आ रहा है…

शनि अभी छोटा है उसको इतनी समझ भी नहीं है कि अपने बारे में कुछ सोच सके। आगे की पढ़ाई में पता नहीं कितना खर्च आएगा। क्या देवर जी जमीन लेने के बाद उसकी पढ़ाई पर खर्च करेंगे?”

“माँ! इसलिए तो बोल रही हूँ मुझे शादी नहीं करनी। शनि बच्चा है”, नैना ने उनका हाथ पकड़ कर कहा।

“कैसे बोलते थे चाचा जी, मेरे भाई की निशानी हो तुम दोनों। मैं अपने बच्चों की तरह पालूंगा तुम दोनों को। कभी कोई कमी नहीं आने दूंगा। अच्छे से स्कूल में एडमिशन करवा दूंगा, जितना चाहे उतना पढ़ना। मेरे भाई की फैमिली को कभी कोई दिक्कत नहीं होगी।

छ: महीने में ही भाई के हिस्से पर नज़र पड़ गयी? रिश्ते के कितने रंग होते हैं माँ! जब तक पापा थे ये लोग हमसे  प्यार का दिखावा तो करते थे। दादी भी हमारे घर आतीं तो थीं। अब देखिए उनको ये भी फिक्र नही कि घर का किराया और घर का खर्चा कैसे चलेगा…”

“दादी क्या करें?” माँ ने बीच में ही टोका, “उनको भी तो अपने बेटे-बहू के साथ ही रहना है। हमारे पास तो कभी इतना पैसा नहीं था कि खुद का घर खरीद सकते मगर तुम्हारे चाचा के पास तो अपना घर भी है और एक घर किराये पर दे रखा है। दादी ने चाचा से बात की है कि किरायेदार को निकाल कर हमें वहाँ रहने दें। देखो चाचा क्या बोलते हैं…”

“अच्छा! इसका मतलब दादी ही बोलीं होंगी मेरी शादी करवा दें। फिर आप और शनि चाचा के दूसरे वाले घर रहेंगी। मुझे तो लगता है ऊपर जो एक कमरा बना है वही हमें दिलवाएँगी…”

“तो इसमें गलत क्या है? दो लोगोंं के लिए एक कमरा बहुत है… तुम्हारी शादी…”

“मम्मी आपको पता है मैं अभी 17 साल की हूँ। वो लोग कैसे मेरी शादी के बारे में सोच सकते हैं।  पापा हमेशा मुझे पढ़ाना चाहते थे। उनको गए छ: महीने ही हुए और सब…”

अब वो बाकायदा से रोने लगी थी।

पापा उसे परी कहते थे। बहुत ज्यादा तो नहीं कमाते थे मगर अपनी परी की हर ख्वाहिश पूरी करते।  कहते, “मेरी परी पढ़ाई में बहुत तेज़ है मैं उसे आफिसर बनाऊंगा, फिर जब तुम बड़ी सी गाड़ी खरीदोगी तो मुझे आगे बैठाना और तुम चलाना। पता है जब तुमने पहली बार क्लास में टाप किया था तभी मैंने सोच लिया था मेरी बेटी जितना पढे़गी मैं उतना पढ़ाऊँगा।”

“पापा! गाड़ी आप चलाइएगा, क्योंकि मुझे तो चलानी आती नहीं…”

उसकी बात पर पापा हंस पड़े थे।

“मैं खुद अपनी बेटी को चलाना सिखाऊंगा। ठीक है ना?” उन्होंने उसे गुदगुदी करते हुए कहा था।

सब कैसे एक झटके में खत्म हो गया। पापा कुछ लेने घर से निकले थे। उसने भी साथ चलने के लिए बोला था मगर पापा को किसी से मिलना भी था इसलिए अकेले ही चले गए। किसी को नहीं मालूम था वो फिर कभी पापा के साथ कहीं नहीं जा पाएगी। कैसे जाते-जाते पलट कर आए थे और बोले थे, “नैना शनि से लड़ाई ना करना तुम उसे बहुत परेशान करती हो अब बड़ी हो जाओ और मम्मा का कहना भी माना करो। शिकायत बहुत मिलती है तुम्हारी मगर मैं हमेशा उन्हें ही समझा देता हूँ।  समझदार बन जाओ अब…”

“ओके पापा जी। जैसा आप कहें। जल्दी आइएगा और वो आज पाव भाजी खाने का बड़ा मन है पापा प्लीज़…”

उसने बाकी इशारे से कहा था। पापा उसकी बात पर मुस्कुराए थे मगर मम्मा की तेज़ आवाज आई, “खबरदार अगर बाहर से कुछ आया। मैंने खाना बना लिया है।”

“जाने दो ना उसका बहुत मन है। हम दोनों तुम्हारा बनाया खाना खा लेंगे और ये दोनों…”

“बिगाड़ डालिए आप। हाथ से निकल जाएगी, ऐसे ही उसकी हर बात मानते रहेंगे आप तो…”

“जब तक मैं हूँ उसकी जिद पूरी कर रहा हूँ फिर कौन करेगा?” उन्होंने एकदम से कहा था।

“कैसी बातें करते हैं आप? कहाँ जा रहे हैं? फालतू बातें मुंह से ना निकाला करिये। दोनों बाप बेटी हमेशा मुझे परेशान करते रहते हैं”, माँ ने गुस्से में कहा था।

“अरे मैं इसकी शादी की बात कर रहा हूँ यार! तुम तो उल्टा ही सोचती हो। ससुराल में कौन हर जिद पूरी करेगा?”

“पापा! आप बहुत खराब हैं। मैं आप से बात नहीं करती। जाइए!” अब वो नाराज होने लगी।

“ओहो! क्या करुं मैं इन दोनों का? कभी इनकी माँ को मनाऊं, कभी बेटी को मनाऊं। पता नहीं क्या होगा दोनों का। वो वहीं बैठ गए। जाओ मैं अब नहीं जाता। इस तरह तुम दोनों नाराज रहोगी तो भला कैसे जाऊँ?”

“अच्छा माफ कर दीजिए। अब जल्दी जाइए और जल्दी आइए। टाइम ना लगाइगा”, माँ ने कहा तो नैना ने भी हां मे सर हिलाया।

पापा वापस आ गए मगर वो रोड भी पार नहीं कर पाए थे और सब खत्म हो गया।

“क्या सोच रही हो?” मम्मा ने नैना से पूछा।

“कुछ नहीं माँ। किस्मत कब कैसे बदल जाए कह नहीं सकते। मैं सोच रही थी गाँव की जमीन अगर चाचा को चाहिए तो वो ले लें, मगर उसके बदले हमें अपना दूसरा घर दे दें। मेरे ख्याल से गाँव वाला घर और खेत में हमें जो हिस्सा मिलेगा उतने में घर तो आ ही जाएगा। छोटा सा तो घर है। आप पहले सब देखिएगा समझिएगा फिर कोई फैसला करिएगा…

और मम्मा मैं अभी शादी किसी कीमत पर नहीं करुंगी। मुझे पढ़ना है, कुछ बनना है। अपने पापा का ख्वाब पूरा करना है। शनि को पढ़ाना है, उसको अपने पैरों पर खड़ा होने दीजिये फिर मैं अपने शादी के बारे में सोचूंगी…”

“बड़ी मास्टरनी बन रही है? जबान तेरी कैसे चलती है? मेरा बच्चा जब तक था तुम लोगों ने सुकून से जीने नहीं दिया। हमेशा फरमाइश! तुम लोगोंं का हमेशा कुछ ना कुछ घटा ही रहता था। मेरा बच्चा हमेशा काम में डूबा रहता। तुम्हारी लोगोंं की फिक्र में चला गया। अब क्या चाहती हो दूसरा भी चला जाए? खबरदार अगर अपने चाचा को कोई दिमागी परेशानी दी तो…

जितना बोला है उतना करो। हमने लड़का देख लिया है। उनको दहेज भी नहीं चाहिए। शादी करो और अपनी माँ का बोझा कम करो। शनि का क्या है? वो तो लड़का है, ऐसे ही पल जाएगा। चार अक्षर पढ़ ली तो ज्ञान बाट रही हो? माँ को दिमाग दे रही हो? बहुत हो गया। अच्छा हुआ हम चले आए और इसकी बातें सुन लीं…

सही कहते हो तुम बेटा। उन्होंने साथ आए चाचा से कहा। यही अपनी माँ को पट्टी पढ़ा रही है। नहीं तो वो ऐसी नहीं थी। वो सब की बात मानने वाली थी, तुमने ही…”

“हाँ दादी आप बिल्कुल सही कह रहीं हैं मैं ही अपनी माँ को बिगाड़ रही हूँ। मेरी माँ तो एकदम सीधी है, जानती हूँ मैं। इसलिए तो आप लोगों ने जो पढ़ाया वो पढ़ गयीं। गाँव की जमीन आप कभी नहीं देना चाहतीं थीं। अगर दे दिया होता तो पापा बेच कर यहाँ खुद का घर ले लेते। कितना परेशान रहते थे मेरे पापा। मम्मा से नफ़रत थी ना आप लोगों को क्योंकि पापा ने उनको पसंद किया था और चाची की बहन को मना कर दिया था। मगर पापा तो आपके सगे बेटे थे। आपसे बहुत प्यार करते थे तभी तो इतनी कम कमाई होने के बाद भी हर महीने आपको पैसे देते थे चाहे थोड़ा ही सही।

हम तो आपके पोता-पोतीं हैं। हमसे क्या दुश्मनी है आपकी? हम तो आपके सगे बेटे के बच्चे हैं फिर भी? दो बच्चों में इतना फर्क क्यों?” आज नैना कैसा धमाका रही थी।

“मतलब तुम्हें सब? दादी हकलाईं। “जरूर इसी ने…”, उन्होंने मम्मी को गुस्से से देखा।

“जी नहीं! मुझे पापा ने ही सब बताया था। मैं शिकायत करती थी कि आप हमारे पास क्यों नहीं रहतीं इसलिए उन्होंने सब बता दिया था…

और दादी जब पापा की जिंदगी में आप लोग हमारे नहीं हुए तो अब क्या होंगे। मेरी मम्मा का मायका कमज़ोर है, मेरे मामा नहीं हैं। नाना के पास बहुत पैसे भी नहीं है मगर उन्होंने हमें अपने पास बुलाया तो है। पहले तो नहीं सोचा था मगर अब हम वहीं रहेंगे। पापा ने जाते जाते कहा था मैं समझदार बन जाऊं देखिए बन रही हूँ ना…

मैं ना तो अभी शादी करुंगी ना तो अपने पापा का हिस्सा ऐसे जाने दूंगी। आप लोग चाहे खुशी से दीजिये, चाहे कोर्ट से। इस बार मैं अपनी मम्मा को उनका हक़ दिलवा कर रहूंगी। अब आप लोग जा सकते हैं। और हाँ हम आपके दिए हुए घर में भी नहीं रहेंगे। हम तीनों को अब किसी की जरूरत नहीं…”

वो अपनी माँ को देखने लगी जिनके चेहरे पर जरा भी गुस्सा नहीं था बल्कि फक्र था। उनकी बेटी ने वो कर दिखाया था जो आज तक वो नहीं कर पाईं थीं। हालांकि नैना के पापा ने कितनी बार कहा था, “ऐसे खामोश होकर कुछ ना सुना करो। शादी करके लाया हूँ तुमको। कोई पछतावा नहीं है मुझे। बल्कि प्राउड फील करता हूँ जब तुमको देखता हूँ।”

बहुत दिनों बाद नैना ने अपनी माँ के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और बहुत इतमिनान देखा था…

इमेज सोर्स: Still from The Video Call/PCVC Online, YouTube

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