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मैं स्कूटी की चाभी नहीं जिसे इस्तेमाल किया और फेंक दिया…

"अरे! शादी के बाद ससुराल वालों को नौकरी करानी होगी तो वो लोग तुझे आगे पढ़ाएंगे। वरना उनकी मर्जी। शादी के बाद अपने घर जाकर अपनी मर्जी चलाते रहना।"

“अरे! शादी के बाद ससुराल वालों को नौकरी करानी होगी तो वो लोग तुझे आगे पढ़ाएंगे। वरना उनकी मर्जी। शादी के बाद अपने घर जाकर अपनी मर्जी चलाते रहना।”

“रुक जा रीना आज तू कॉलेज नही दीदी के साथ पार्लर जाएगी। कल तुझे लड़के वाले देखने आने वाले हैं”, रीना की माँ गीताजी ने कहा।

हाथ मे स्कूटी की चाभी लिए, रीना के कदम अपने माँ की बात सुनकर रूक गए। पलटकर देखा तो उनके साथ रीना की दादी पापा, दीदी, भैया-भाभी भी मौजूद थे।

तब रीना ने कहा, “माँ! ये अचानक शादी की बात कहाँ से आ गयी? अभी मेरा ग्रेजुएशन बाकी है। और अभी तो कल से परीक्षा भी शुरू होने वाली है।”

“रीना! देख बात साफ है, हम ने तेरी दीदी की शादी तो अठारह साल की उम्र में ही कर दी थी लेकिन तुझे मौका दिया। लेकिन अब हम तेरी भी शादी कर के गंगा नहा लेना चाहते हैं। ताकि फिर हम भी सही समय से जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाएँ।”

रीना कुछ कहती, उससे पहले दादी ने कहा, “देख रीना, लड़कियों की शादी इसी उम्र में अच्छी लगती है। और तुझे पढ़ाई करने से कौन रोक रहा है? तेरे होने वाले ससुराल वाले बहुत सम्पन्न परिवार से हैं। तो तू अपनी आगे की पढ़ाई ससुराल जाकर पढ़ना।”

“लेकिन माँ-पापा मैंने आप लोगों से पहले की कहा था कि जब तक मेरी पढ़ाई पूरी ना हो मेरी शादी की चर्चा मत कीजिएगा। पहले मुझे अपने पैरों पर खड़े होना है। उसके बाद शादी करनी है”, रीना ने कहा।

दादी ने रीना के पापा अमर से कहा, “तू क्यों चुप बैठा है? समझा इसको कि हमको कौन सा बेटी का धन खाना है जो इसको बैठाकर पढ़ाते रहें।”

“अरे! शादी के बाद ससुराल वालों को नौकरी करानी होगी तो वो लोग तुझे आगे पढ़ाएंगे। वरना उनकी मर्जी। शादी के बाद अपने घर जाकर अपनी मर्जी चलाते रहना।”

रीना बचपन से ही जिद्दी स्वभाव की थी। एक बार जो ठान ले वो कर के ही मानती थी। बचपन से बड़े होने तक उसने हमेशा घर मे आदमी औरतों में भेदभाव देखा था जिसकी वजह से उसे बहुत गुस्सा आता था। वो बचपन से ही अपनी मां से पूछती, “माँ खाने से लेकर पहनने ओढ़ने तक हर छोटी छोटी चीज के लिए हमें हमेशा पूछ कर ही क्यों करना होता है? क्यों हम पापा, दादा, भैया की तरह अपनी मन का क्यों नहीं कर सकते?”

आज जब दादी ने वही बात फिर दोहराई कि ‘ससुराल वालों की मर्जी’ तो रीना को बहुत गुस्सा आया। उसने अपने गुस्से पर काबू रखते हुए कहा, “वाह, दादी क्या बात कही आप ने। जब मेरे अपने घर वाले ही मुझे नही पढ़ाना चाहते, जिस घर में मैंने जन्म लिया जब मैं वहीं अपने मन से कोई काम या निर्णय नही ले सकती तो ससुराल जाकर क्या खाक कुछ कर पाऊंगी?”

इतना सुनकर अमर जी ने कहा, “रीना! दादी से बात करने का ये कौन सा तरीका है? वो बिल्कुल सही कह रही है। और लड़कियों को ही घर गृहस्थी, बच्चों की जिम्मेदारी संभालनी होती है। तुम्हारी भाभी, दीदी, और मां सब यही कर रही हैं। कभी किसी ने कोई शिकायत नहीं की। कम से कम उन लोगों को देखकर तो कुछ सीख लेती।”

तब रीना ने अपनी नजरें घुमाकर अपनी भाभी, दीदी और माँ की तरफ देखा, जिनकी नजरों में सही गलत जानते परखते हुए भी गलत का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी।

तब उसने कहा, “पापा! शायद आपको नहीं पता, इन लोगों को ही तो देखकर मैंने सीखा है कि अगर एक औरत को आत्मसम्मान से जीना है तो उसका आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है।

जानते हैं पापा, जब से होश संभाला है। बस तब से यही देखा है, कैसे माँ हमेशा एक कोने में दुबकी रहती थी। आप सब को उनकी जब जरूरत होती प्यार से बुलाते और जब जरूरत पूरी तो दुत्कार दी जाती। जैसे ये मेरी स्कूटी की चाभी है। जैसे मैं इससे काम लेकर उसे वहीं टांग देती हूँ, उसी तरह पहले मेरी माँ, अब भाभी और दीदी!

ये सब भी सबके लिए खुशियों की चाभी ही तो बन कर रह गयी हैं। होश संभाला तब से सिर्फ यही देखा। छोटे बड़े घर के सारे काम कर माँ घर के किसी कोने में दुबकी रहती। कभी स्वतंत्र होकर कोई निर्णय नहीं लिया चाहे वो खुद के कपड़े पहनने के हो या मायके अपने माता-पिता से मिलने जाना हो हर बार वो आप सब का मुँह ताकती रहती।

पापा! बेटी के पिता होने का मतलब ये नहीं कि आप अपनी बेटी का बड़े घर ब्याह कर के जिम्मेदारियों से हाथ खड़ा कर लें और शाबाशी में खुद ही खुद की पीठ थपथपा लें।

एक बात बताइए पापा क्या आप ने कभी पूछा दीदी से, कि बिटिया तू ससुराल में खुश तो है ना? तुझे कोई तकलीफ तो नहीं? लेकिन अफसोस आपने ऐसा कुछ नहीं किया। क्यों?

दीदी के घर मे बहुत सारे लोग हैं, सब बड़े नामचीन और समाज मे प्रतिष्ठित लोग है। उस बड़े मकान में बहुत पैसा ऐशो-आराम सब कुछ है, लेकिन मेरी प्यारी भोली-भाली दीदी किसी से अपने दिल की बात नहीं कह सकती, अपनी मर्जी से कोई काम नहीं कर सकती। हँसना भी चाहे तो खुल कर हँस नहीं सकती, सोने-जेवरात से सोलह-श्रृंगार में सजी बस दीदी अपने ससुराल में एक कठपुतली है, जिसे जो जब जैसे चाहे नचाता है। शराब के नशे में चूर जीजाजी को अपनी जरूरत पूरी करने के बाद दीदी के साथ क्या हो रहा है उससे उनका कोई सरोकार नहीं। गाली-गलौज, अपमान और ताने देना तो आम बात है।”

बड़े-बड़े दीवार से घिरा वो बड़ा मकान जहाँ औरतों के पैरों में झूठे समाज को दिखाने के लिए औरतें रीति-रिवाज की बेड़िया बंधी हों, ऐसे घर में रहने का क्या फायदा? जहाँ आप खुलकर सांस भी नहीं ले सकते? छोटी छोटी गलतियों पर घर की औरतों के साथ मारपीट और गाली गलौज किया जाए। उन्हें बार बार अपमानित किया जाए। अपने ही मायके आने और माता-पिता से मिलने के लिए इजाजत लेनी पड़े?

वही हाल भाभी का भी है। पढ़ी-लिखी भाभी को भी आप लोगों ने नौकरी नहीं करने दी क्यों क्योंकि घर के कामों की जिम्मेदारी कौन उठायेगा? क्यों भाभी को कोई छूट नहीं दी गयी। अब तो ये उनका ही घर है ना? फिर क्यों उनको बात बात में दूसरे घर से आयी लड़की कह कर ताने दिए जाते हैं?

हां लेकिन भइया, आप, जीजाजी आप सबका जब जो मन करता है वो करते हैं, क्योंकि आप सब पुरूष है आपको कोई ताने भी नहीं देता और हमारे समाज मे पुरुष वर्ग किसी भी तरह के सामाजिक और पारिवारिक बेड़ियों में नहीं बंधे हैं। बेड़ियां तो इस समाज और परिवार ने सिर्फ और सिर्फ हम औरतों लिए बनाई हैं!

आप कह रहे है ना कि दीदी, माँ और भाभी को देखकर मैं कुछ सीख लू तो आज जो मेरे अंदर इन बेड़ियों को तोड़ने का ज़िद है, वो इन लोगों की हालत देखकर ही जन्मी है। मैं दुल्हन बनकर सोलह श्रृंगार करने से पहले पढ़-लिखकर अपना आत्मविश्वास और आत्मसम्मान कमाऊंगी, अपनी पहचान बनाऊँगी, जिससे मुझे इन लोगों की तरह बात बात में बेकार, बददिमाग, बेवकूफ लाचार और बेचारी कहकर ना कोई अपमानित कर सके, ना लज्जित। मैं अपना आशियाना खुद बनना चाहती हूँ और अपनी जरूरत भी खुद पूरी करना चाहती हूँ।”

सब के सब चुप थे क्योंकि बात तो सही कही थी रीना ने तब रीना की दीदी ने आगे बढ़कर कहा, “पापा रीना गलत तो नहीं बोल रही। और एक बेटी अपने मन की बात अगर अपने पिता से ही नही कह पाएगी तो किससे कहेगी?”

फिर पीछे से रीना की भाभी ने कहा, “बाबूजी, रीना सही कह रही है। कृपया उसको पढ़ने दें। शादी का बाद में सोचिएगा। बड़े बुजुर्ग लोग कहते हैं कि जिस औरत के साथ उसके पिता और पति मजबूती के साथ खड़े रहते हैं, उस औरत को कोई कभी नहीं अपमानित कर सकता। और एक पिता तो अपने बेटी के जीवन का मजबूत स्तम्भ होता है।”

अमर ने रीना की तरफ देखा। तो रीना ने कहा, “पापा मैं कॉलेज जा रही हूं। और आप इसे मेरी जिद समझे या आग्रह मैं बिना आत्मनिर्भर बने शादी नहीं करूंगी।”

कहते हुए रीना वहाँ से कॉलेज के लिए चली गयी।

प्रिय पाठकगण, उम्मीद करती हूँ मेरी ये रचना आप सब को पसंद आएगी। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि आज भी अधिकतर घरों में ये लड़का लड़की में भेदभाव होता है। ज्यादातर लोग अपनी बेटियों से कह देते है ससुराल जाकर पढ़ना या नौकरी करना या अधिक पढ़ लिया तो योग्य लड़के नही मिलेंगे। जब कि सत्य तो ये है कि एक लड़की की ससुराल जाने के बाद  जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। ससुराल वाले घर के काम से लेकर बच्चे तक कि सारी जिम्मेदारी लड़कियों पर डाल देते हैं।

फिर कुछ महीनों बाद वो लोग लड़कियों के आगे पोते पोतियों का मुँह देखने की मांग रखने लगते है। ऐसे में ससुराल जाकर औरतों का पढ़ना नामुमकिन हो जाता। इसलिए हर माता-पिता को चाहिए कि हमें बेटा बेटी का ये भेद मिटाकर दोनो को समान शिक्षा का अधिकार देना चाहिए। बेटे और बेटी दोनो को आत्मनिर्भर और शिक्षित बनाकर ही उनके लिए योग्य जीवनसाथी की तलाश करें।

आप सभी पाठकों की क्या राय है? क्या वाकई लड़कियां ससुराल जाकर पढ़ पाती हैं? क्या माता-पिता की जिम्मेदारी सिर्फ बेटियों की शादी करना ही मात्र है?

इमेज सोर्स: Still from Short Film Jhanak, Udbhavi Upadhyay/YouTube

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