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अब बस! बहुत देखे हैं अपने ‘अंग’ की नुमाइश लगाने वाले तुम्हारे जैसे ‘मर्द’…

ना जाने उस दिन मुझमें कहां से वो हिम्मत आई, पास पड़ी एक ईट को उठाकर मैंने जोर से तुम्हें दे मारा। पहली बार तुम्हें कमजोर, घबराया हुआ और डरा हुआ देखा था मैंने...

ना जाने उस दिन मुझमें कहां से वो हिम्मत आई, पास पड़ी एक ईट को उठाकर मैंने जोर से तुम्हें दे मारा। पहली बार तुम्हें कमजोर, घबराया हुआ और डरा हुआ देखा था मैंने…

विमेंस वेब की महिलाओं के खिलाफ हिंसा की #abbas मुहीम में पहला लेख है लेखिका कशिश भारद्वाज का! 

ट्रिगर वार्निंग: इस लेख में चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज /सेक्सुअल हिंसा का विवरण है जो आपको परेशान कर सकता है 

आदरणीय या प्रिय? दोस्त, सखा, भाई, पति, पिता…

समझ नहीं आता कि क्या संबोधन दूं तुम्हें ये पत्र लिखते वक्त! क्या किसी भी संबंध या संबोधन के लायक हो तुम?

मेरे जीवन में तुम्हारी संख्या-रूप-रिश्ते कितने हैं? तुम कौन से धर्म-जाति-वर्ण-राजनितिक खेमे से हो? कमाल की बात है कि यहां तुम सब एक जैसी सोच रखते हो… बिलकुल निचले दर्जे की!

बचपन से लेकर अब तक, तुम्हारे जैसे ना जाने कितने, हर मोड़ पर मुझसे टकराते रहते हैं…

याद है तुम्हें जब मैं 12 साल की थी?

मेला घूमने गई थी। रंग-बिरंगी रोशनी, गुड़िया, खिलौने, खाने-पीने के सामान को देखकर कितनी खुश थी मैं! अपनी मां का हाथ पकड़े, अपनी नई गुलाबी फ्रॉक पहन कर खुशी से फूली नहीं समा रही थी कि अचानक तुम्हारी अंतरात्मा की तरह तुम्हारे काले गंदे स्पर्श ने मेरे बचपन के सुनहरे संसार के टुकड़े कर दिए थे…

कुछ देर तक तो मैं समझ ही नहीं पाई कि मेरे साथ क्या हुआ, जड़ हो गई थी मैं! ब्रेन फ्रीज!

जब मेरी मां ने मेरा उड़ा हुआ रंग देखा और मुझसे पूछा कि क्या हुआ? ऐसा लगा किसी ने नींद में से झिंझोड़ कर उठाया हो और मैं फूट-फूट कर रोने लगी, हिचकियां लेते हुए ना जाने, उस घिनौने एहसास को कैसे टूटे-फूटे शब्दों में बयां किया था मैंने…

मां ने लपक कर मुझे गोद में उठा लिया और मेले से लेकर मुझे ऐसे भागी जैसे किसी बहुत बड़ी आफत से बचा लेना चाहती हो पर वो ये कहां जानती थी कि अब उसकी बेटी बड़ी हो रही है मानसिक और शारीरिक शोषण की ये शुरुआत थी!

स्त्री अंगों के उभार या आकार के चिन्ह थे भी नहीं अभी उस मासूम के कोमल से शरीर, पर थी तो वो एक लड़की, “भोगने की वस्तु!” बस वो ही विकृत सोच वाले समाज के लिए काफी था…

किसी परिचित की शादी में सोती हुई वो छोटी सी बच्ची, जिसको स्त्री और पुरुष के भेद का ज्ञान भी नहीं था उसे उसके ही एक परिचित के हाथ फिर उस घृणित एहसास की तरफ ले गए जिसे शायद वो भूल जाना चाहती थी। पर इस बार उसे मिली किसी को कुछ ना बताने की धमकी भी, ताकि वो परिचत मनचाहे रूप से उस बच्ची का जब तक चाहे शारीरिक शोषण कर सकें।

अब उस बच्ची का आत्मविश्वास भी तोड़ दिया गया…

पर जिंदगी है, रुकती कहाँ है!

10वीं कक्षा की परीक्षा के बाद गर्मी की छुट्टियों में जब एक हॉबी क्लास ज्वाइन की तो रोज घर आकर नए-नए व्यंजन बनाने का मजा ही कुछ और था, पर तुम वो खुशी कैसे देख सकते थे?

आज भी मुझे याद है कि अधेड़ उम्र के तुम दोपहर के सन्नाटे में मुझे अकेला देखकर, मेरी छाती को दबोचने लपक पड़े थे और तुम से बचने के लिए मैं नाली में गिर गई थी। पैर छिल गया था मेरा। खून निकलने लगा था। हाथ में भी चोट आई थी पर तब भी तुम अपनी काली गंदी सोच लेकर मेरी छाती पर बाज की तरह झपट पड़े।

ना जाने उस दिन मुझमे कहां से वो हिम्मत आई, पास पड़ी एक ईट को उठाकर मैंने जोर से तुम्हें दे मारा।

तुम घबरा कर वहां से भागे, मैंने शोर भी मचाया। लोगों को देख कर तुम दुम दबाकर भाग निकले।

पहली बार तुम्हें कमजोर, घबराया हुआ और डरा हुआ देखा था मैंने…

पहली बार मुझे अपनी शक्ति का एहसास हुआ था!

तुम तो भाग गये थे, पर मैं उस दिन पहली बार अपने अन्दर की हिम्मत और ताकत से मिली थी जो आज भी मेरे साथ है…

कुछ दिन पहले तुम मुझे बस में भी मिले थे जब अपनी कोहनी से तुम मेरे वृक्ष स्थल को छू लेना चाहते थे तब भी मैंने तुम्हारा डटकर सामना किया था। और अभी एक वेटिंग रूम में तुम मुझे तब मिले जब तुमने एक 22-23 साल की लड़की के सामने पैंट खोलकर अपना लिंग निकाल दिया था?

अपने शारीरिक अंग पर इतराते हुए मैं पहले भी तुम्हें कई बार देख चुकी हूं लेकिन अब मैं तुम से डरती नहीं। अब मैं तुम्हारी पुलिस कंप्लेंट करने से घबराती नहीं!

फिर तुम मुझे कई रूप में मिले, कई जगह मिले, सोशल मिडिया, बस, बाजार या ट्रेन। कभी बेवजह घूरते हुये, कभी अपनी उम्र का फायदा उठाने की ताक में मेरी कमर को सहलाने के बहाने, कभी सीटी बजाते, कभी अश्लील इशारे-फिकरे कसते हुए। कभी फ्लाइंग किस देते हुए, कभी भीड़ का फायदा उठाकर मेरे शरीर को मसलने के लिए और हां एक बार तुम मुझे पागल की तरह भी मिले थे, जो पागलपन में भी शारीरिक शोषण करने की कोशिश में था।

किसी राजनीतिक या धार्मिक मेले में भी तुम अपना ओछापन दिखाने में देर नहीं करते। शर्म की बात ये है तुम से कई घर भी अब सुरक्षित नहीं हैं।

और हां ये भी जरूरी नहीं है कि तुम अपने कर्मों की तरह नीच और आवारा ही दिखो, या किसी खास व्यवसाय से जुड़े हुए हो तुम।

ना!

ऑफिस में, स्कूल,व्यापार, यात्री, सोशल वर्कर, हॉस्पिटल, सोशल मीडिया इनफुलेंसर, पत्रकार या विद्यार्थी… उम्र,पढ़ाई लिखाई या ऊंचा ओहदा कुछ मायने नहीं रखता। तुम कहीं भी किसी भी तरह भेड़ की खाल में भेड़िए की तरह छुपे हो सकते हो।

तुम वो हो जो लाशों को ना छोड़ो! छी!!!

तब से लेकर अब तक इसी कोशिश में रहती हूं कि चाहे वो मैं हूं या मेरे सामने कोई बच्चे, लड़का या लड़की/महिला, किसी को भी शारीरिक शोषण का सामना ना करना पड़े और मैं उन्हें समझा सकूं कि अपने आप से घृणा करना या अपने आप को शारीरिक तौर पर कमजोर समझने की जरूरत नहीं है।

जरूरत है तो बस हिम्मत कर एक बार जोर से दहाड़ देने की! हिम्मत कर एक बार डटकर तुम्हारा सामना करने की क्योंकि तुम बहुत ही भीरू हो, तुम केवल कमजोर पर वार करते हो और मैं कमजोर नहीं हूं!

अब बस! और नहीं!

 एक लड़की!!!

इमेज सोर्स: Still from short film Lady At Night/Machan Media, YouTube

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